
सीख जाएँ तो वाह-वाह… नहीं तो जय राम जी की
अयोध्या से चंद्रप्रकाश मिश्र
राम। मर्यादा पुरुषोत्तम राम। श्रीहरि भगवान राम। कहीं शबरी के राम। कहीं विभीषण के राम। सर्वत्र भक्तों के राम, उससे भी आगे भक्तराज हनुमान जी के राम। सात समंदर पार भी जय-जय श्रीराम। लेकिन भारत में ही राम को लेकर बेवजह बहस हो रही है। उस बहस को तूल पकड़ा रहे हैं यू-ट्यूबर यानी स्वनाम धन्य पत्रकार।
वो पहुँच जाते हैं किसी पंडित, मौलवी, संत, महंत और नेता के पास। उनके मुँह में ऐसी उंगली घुसेड़ते हैं कि वो उनके मतलब का मसाला उगल ही देते हैं। बस, कुछ सोशल मीडिया के कुतर्की ‘जंग-बहादुर’ जुट जाते हैं अपने मतलब के लोगों में उसे पसारने में। थोड़ी देर में उनकी ख़बर उस ठीहे तक पहुँच जाती है, जहां से जनता का मन-मिजाज और मतलब बदलने लगता है। लेकिन वो ये भूल रहे हैं राम आम जनता के राम हैं। वो उस शबनम शेख़ के भी राम हैं, जिनके दर्शन के लिए 1400 किमी. से ज़्यादा की दूरी वह पैदल चल देती है। वो उन युवाओं के राम हैं, जिनकी अक्षत बाँटने के लिए छुट्टी ली और बिना लाज-शर्म के सिर पर मटकी लेकर निकल पड़े है
इसी बीच पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का एक पत्र भी वायरल हुआ। सोमनाथ मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा में जाने का उन्होंने बड़ा ही वाजिब कारण बताया। उन्होंने पत्र में लिखा, इस देश को चलाने के लिए अभी IIT-IIM और अस्पतालों की आवश्यकता है। कुछ दिनों में ही वो जिन्ना की मज़ार पर पहुँच गए, लेकिन तब देश का विकास आड़े नहीं आया। ठीक है, तब देश को ज़रूरत थी, अब भी है। लेकिन अब मोदी विकास की इबारत रोज़ लिखते हैं। मां के जनाज़े से निकलकर सरकारी कार्य निपटाने में जुट जाते हैं। उनकी काबीना के नितिन गडकरी रोज़ नया इतिहास लिखते हैं। तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी ने अपनी लोकसभा की ओर रुख़ किया। लोगों के मिले, अच्छा लगा। ये सुखद है, जननेता को जनता के बीच रहना चाहिए। नहीं तो वही होगा, जो लोकसभा चुनाव 2024 के रण में हुआ। बड़ी-बड़ी हस्तियाँ बह गईं। कइयों की कश्ती डूब गई।
अयोध्या के सांसद भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। वो राम नाम की दुहाई भी जनता के बीच जाकर लगाते तो जीत जाते। वो जनता से कट गए, जनता उनसे कट गई। अयोध्या-मथुरा-काशी, अबकी बार अवधेश पासी का नारा काम कर गया। वो जनता से जुड़ गए, जनता उनसे जुड़ गई।

इस विरोध के साथ ही वो गड़े मुर्दे उखड़ने लगते हैं, जिसे सनातनियों ने अपने हृदय के कोर में दबा रखे हैं। सर्वोच्च न्यायालय भी राम को लेकर बरसों सुनवाई करता है। राम की चर्चा आम हो गई। इसी बीच चुनाव निपट गया तो राम और अयोध्या की चर्चा सोशलमीडिया वीरों ने जमकर की। अयोध्या को पानी पी-पीकर कोसा। लोग अयोध्या को अनायास ताने देने लगे। कहने लगे कि अयोध्या ने राम को धोखा दिया। अयोध्या राम की थी, है और आजन्म रहेगी। राम ने उन्हें सबक़ दिया, जो राम के नाम पर अलसाये बैठे थे। लोगों को दुख-दर्द से दूर ख़ुद की दुनिया में खोए थे। क्या अयोध्या का दर्द किसी ने सुना, जाना और समझा। जवाब मिलेगा-न। अब जब आप हमारे दर्द से दूर हो जाओगे तो हम आपसे कैसे सट जाएँ। जवाब दे पाएँगे, नहीं। अब थोड़ी दास्ताँ अयोध्या की भी सुनिए।
‘मैं अयोध्या हूँ। वह अयोध्या जिसने निर्माण और विध्वंस के हज़ार क़िस्सों को सरयू के पानी में बहते हुए देखा है। वह सरयू जिसने मेरे हर आंसू को अपने पानी से छिपाया है और मेरी हर खुशी को लहरों की उथल-पुथल से प्रकट किया है। मैं वह अयोध्या हूँ, जो कभी निराश नही हुई। मुझे साकेत कहा गया, मुझे कौशल की राजधानी बनाया गया तो मुझे अवध जागीर के फैज़ाबाद का दिल कहा गया, मगर मैं तो पहले से आख़िर तक अयोध्या ही तो हूँ।
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मैं वह अयोध्या हूँ जिसके आंगन में राम ने जन्म की पहली थाप दी। मैंने कौशल्या के मां बनने की मुस्कान को देखा है। एक बालक, जिसे अपने भाई बहन से अथाह प्रेम था, उन राम को अपने आंगन में बड़ा होते देखा है। मुझे ऐसे अपशब्दों का सामना नही करना पड़ा, जो अब हो रहा है। आज एक अदद कुर्सी तुमसे क्या छीनी, तुम छिन्न-भिन्न हो गए। तुम त्यागी अविनाशी अयोध्या को क्या ही जानोगे। सच तो यह है कि मुझे अपशब्द कहने वाले ही मेरे योग्य नही हैं, मगर मैं अयोध्या हूँ, तुम्हारे इस दुस्साहस को भी क्षमा करूंगी, क्योंकि मेरा हृदय मेरे राम जैसा है।
मेरे बारे में एक बात और जान लो, मैं तुम्हारे दस रुपये की पानी की बोतल और बीस रुपये के नमकीन और चंद टुकड़ों के टूरिज़्म से जीवित नही रहती हूं। मैं अयोध्या हूँ, तुम जब नही थे, मैं तब भी गर्व से जीती थी, अब होकर भी न हो, तब भी गर्व से ही जीऊंगी। मैं और मेरी सरयू का पानी इतना सक्षम है कि हर अयोध्यावासी को हर विपरीत स्थिति में उनका साथ निभाए।
आज भी हूँ, कल भी रहूँगी, तुम मेरे पर्याय को कभी नही समझोगे। तुम अपने अहंकार, कुर्सी की लालच और नफरत की आग में जलो, मगर मैं दुनिया को मर्यादा, प्रेम, सहिष्णुता, बराबरी और त्याग का संदेश देती रहूँगी। मैं अयोध्यापुरी थी, अयोध्याजी हूँ और सदैव अयोध्याधाम रहूंगी।’
समय है, चेतिए। जनता के बीच रहिए। साल 2027 का चुनाव ज़्यादा दूर नहीं है। नेता को जनता खोजती है। उनसे जवाब माँगती है। दुख-सुख बाँटना चाहती है। लेकिन नेता भी असहाय है। कमजोर हो चला है। थाने पर सुनवाई नहीं। एसडीएम भी फ़ोन रखने के बाद मुस्कुराकर कहता है- रोज़ चार फ़ोन अनायास करते रहे हैं विधायक जी। नौकरशाह सरकार चला रहे हैं। उनका क्या? सत्ता बदलने के साथ ही उनका मिज़ाज बदल जाएगा। वो बोतल के जिन्न हैं, जी आका! कहकर बदल जाएँगे। बाक़ी सरकार को सबक़ मिला है। सीख जाएँ तो वाह-वाह… नहीं तो जय राम जी की।