भारत नेपाल सीमा पर तार बाड़ और पासपोर्ट जैसी व्यवस्था की मांग के पीछे कौन?

यशोदा श्रीवास्तव

भारत नेपाल की खुली सीमा पर कटीले तार लगाने के साथ ही भारत वासियों को नेपाल आने जाने के लिए वीजा पासपोर्ट जैसी व्यवस्था अनिवार्य करने संबंधी मांग को लेकर प्रमुख विपक्षी दल और सरकार आमने सामने हैं। हैरत है कि लोकतंत्र बहाली के बाद नेपाल में सत्तारूढ़ हुई सरकारें लोकतंत्र की मजबूती के लिए कम अपने पड़ोसी भारत के खिलाफ जरूर कुछ न कुछ ऐसा करती रही हैं जिससे दोनों देशों के बीच खटास ही पैदा हो। इधर डेढ़ साल में ही नेपाल में गठबंधन की तीन सरकारें आईं गईं।

अभी जो प्रचंड की सरकार है वह तीसरे गठबंधन की सरकार है। इस छोटी अवधि में प्रचंड नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकार में थे और उसके पहले ओली के साथ उनका गठबंधन हो चुका है। अब फिर वे ओली के साथ हैं। बता दें कि केपी शर्मा ओली की सरकार जब भी सत्ता में होती हैं,वह कुछ न कुछ ऐसा जरूर करती हैं जो भारत के खिलाफ होता है। ओली की छवि चीन परस्त और भारत विरोध की है।
सत्तारूढ़ दल के सहयोगी एमाले सांसद और पार्टी के मुख्य सचेतक महेश बर्तौला के इस मांग से नेपाली राजनीति का माहौल गरमाया हुआ है। वहीं गृहमंत्री रवि लामीछाने की ओर से इस मामले पर चुप्पी साधे रहने से यह मामला और गहराता जा रहा है। महेश बर्तौला के मांग का समर्थन एमाले के एक और सांसद रघु जी पंत ने भी किया है।

1950 की भारत नेपाल मैत्री संधि के विपरीत यह मांग गृह मंत्री को संबोधित एमाले सांसदों ने नेपाली संसद में उठाई है। एमाले सांसदों के इस मांग को नेपाली संसद में ही विरोध किया जा रहा है। नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व पीएम शेर बहादुर देउबा ने एमाले सांसद के इस मांग को अव्यवहारिक बताते हुए कहा है कि वे और उनकी पार्टी ऐसा कदापि नहीं होने देगी। वहीं पूर्व मंत्री और मधेश क्षेत्र के बड़े नेता हृदयेश त्रिपाठी ने कहा है कि एमाले सांसदों की यह मांग भारत नेपाल संबंधों पर असर डालने वाला है। उन्होंने इस तरह की मांग करने वालों को अपरिपक्व मानसिकता का बताया है। कहा कि ऐसी बेतुकी मांगे तराई वासियों की मंशा के विपरीत है। इसका विरोध होना चाहिए। हृदयेश त्रिपाठी ने कहा कि भारत नेपाल सीमा पर बढ़ रहे अपराध और जरायम के चलते तारबंदी जरूरी बताया गया है तो इससे कहीं ज्यादा अपराध और तस्करी चीन बार्डर पर हो रहा है।

रत नेपाल संधि के तहत दोनों देश एक दूसरे देश के नागरिकों के आवागमन पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते। इस सुविधाजनक संधि के नाते ही दोनों देशों के बीच रोटी बेटी का रिश्ता कायम रह सका है। इतना ही नहीं आज भी भारत और नेपाल के ढेर सारे लोगों की संपत्तियां एक दूसरे देश में है। नेपाल में बड़े व्यापार और उद्योग पर भारत के व्यापारियों का कब्जा है। कटीले तारों के बाड़ तक तो ठीक है लेकिन पासपोर्ट और वीजा जैसी व्यवस्था लागू हो जाने का बड़ा नुक्सान नेपाल का ही होगा। सीमावर्ती उसके बाजारों पर बड़ा असर पड़ेगा,सीमावर्ती क्षेत्रों में करीब दो सौ से अधिक कैसिनों और रिसार्ट बंद होने के कगार पर पंहुच जाएंगे और लुंबिनी स्थिति बुद्ध की जन्म स्थली बीरान हो जाएगी। ऐसा होने पर नेपाल आर्थिक रूप से कम जोड़ ही होगा। हृदयेश त्रिपाठी कहते हैं कि भारत नेपाल सीमा की भौगोलिक समझ नहीं रखने वाले सत्तारूढ़ दल के सांसदों की ऐसी बेतुकी मांगों का पुरजोर विरोध जरूरी है।

मनाया गया 12वां पासपोर्ट सेवा दिवस

 

रत नेपाल की खुली सीमा किसी एक देश के लिए एक तरफा खतरा नहीं है।उत्तर प्रदेश के सात जिले नेपाल सीमा को स्पर्श करते हैं। यहां से घुसपैठियों की खबरें ज्यादा आती है। बिहार नेपाल बार्डर से भी घुसपैठ की खबरें आती है। सच तो यह है कि खुली सीमा से ज्यादा खतरा भारत को ही है लेकिन मैत्री संधि के तकाजा के चलते भारत ने नेपाल सीमा पर तार बाड़ या पासपोर्ट जैसी व्यवस्था कभी नहीं सोची।
यह सच है कि भारत नेपाल के बीच लंबी खुली सीमा सुरक्षा एजेंसियों के लिए सदैव चुनौती बनी रहती है।इस सीमा पर सैकड़ों ऐसे रास्ते हैं जो नदी नाले और झाड़ झंखाड़ से भरे है जहां से आतंकी, तस्कर अथवा अन्य अवांछनीय तत्वों का आना जाना जारी है। यहां कोई सुरक्षा व्यवस्था भी नहीं है। जबतक बार्डर रोड नहीं बन जाता तब तक यहां पेट्रोलिंग भी संभव नहीं है।

उत्तराखंड से लेकर बंगाल तक लगभग 1755 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी इस खुली सीमा का बेजा फायदा तीसरे देशों के नागरिक उठा रहे हैं। विदेशी नागरिक लगातार नेपाल से भारत में घुसपैठ की कोशिश करते रहते हैं। पूर्व में नेपाल सीमा से यासीन भटकल, अब्दुल करीम टुंडा, जब्बार, जावेद कमाल,वसीम,बब्बर खालसा का सुखबिंदर सिंह,भाग सिंह,अजमेर सिंह, मुंबई बम कांड का आतंकी टाइगर मेमन आदि कुख्यात आतंकी पकड़े जा चुके हैं। इतना ही नहीं भारत की आर्थिक व्यवस्था ध्वस्त करने के लिए जाली भारतीय मुद्रा नेपाल के रास्ते भारत भेजा जाता रहा। दाउद इब्राहिम सहित तमाम भारतीय दुश्मनों को नेपाल में पनाह मिलता रहा।

इसके इतर इस खुली सीमा से भारत से नेपाल गए शायद ही कोई बड़ा अपराधी पकड़ा गया हो जो नेपाल में कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बना हो। इतना सबकुछ के बाद भी भारत ने दोनों देशों के आवागमन पर रुकावट जैसी बात नहीं सोची,वहीं नेपाल के मौजूदा सरकार के सांसद यदि यह मुद्दा उठा रहे हैं तो जाहिर है इसके पीछे किसी तीसरे देश का दिमाग है।

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