इसे राम लक्ष्मण द्वादशी के नाम से भी पुकारते हैं
राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
पौराणिक मान्याता के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की बारहवीं तिथि को चंपक द्वादशी कहते हैं. शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान गोविंद विट्ठलनाथ जी (भगवान श्री कृष्ण) का चंपा के फूलों से पूजन व शृंगार किया जाता है. शास्त्रों में इस पर्व को राघव द्वादशी या रामलक्ष्मण द्वादशी के नाम से भी संबोधित किया गया है. इस दिन विष्णु के अवतार श्रीराम तथा शेषनाग के अवतार श्री लक्ष्मण की मूर्तियों की पूजा की जाती है।
विधिवत पूजन करने से सम्पूर्ण होती है सभी मनोकामनाएं
ऐसी मान्यता है कि चंपक द्वादशी के दिन चंपा के फूलों से भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से इंसान को मोक्ष प्राप्त होता है. साथ ही उसे विष्णु लोक में जगह मिलती है. इस दिन का बहुत महत्व होता है. ऐसा भी बताया जाता है कि इस विधि से भगवान श्री कृष्ण खुश होते हैं और सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. साथ ही इस दिन किए गए विधिवत पूजन से व्यक्ति के सारे कार्य सिद्ध होते हैं. ऐसा भी बताया जाता है कि जो कार्य लंबे समय से रुके पड़े हैं, वो जल्द ही संपूर्ण हो जाते हैं।
इस तरह करें पूजा
इस दिन भगवान विट्ठलेश श्रीकृष्ण की विधिवत पूजा की जाती है. इस दिन उनकी चंपा फूलों से पूजा होती है. श्री कृष्ण खुश होते जाती है. अगर आपके पास चंपा के फूल उपलब्ध ना हों तो पीले-सफेद फूलों का इस्तेमाल कर सकते हैं. उसकी माला चढ़ा सकते हैं. इस उपाय को आप दोपहर के समय करें. ताकि आपको इसका पूरा लाभ हो।
क्यों मनाते है चंपक द्वादशी
इस शुभ और विशेष दिन चंपा के फूलों के साथ ईश्वर का पूजन व श्रृंगार पूरी श्रद्धा के साथ किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने से भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह इस जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है और वह सीधा वैकुंठ धाम जाता है। इस दिन पूरी श्रद्धा व नियम के साथ पूजा करने से व्यक्ति की सभी प्रकार की मनोकामनायें पूरी हो जाती है। इस दिन मंदिरों में खास रौनक देखने को मिलती है और भक्तों की बहुत भीड़ होती है। यदि आप मंदिर में जाने हेतु समर्थ ना हो तो घर पर भी पूजा अर्चना कर सकते हैं।
चंपक द्वादशी की उपासना
चंपक द्वादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर अपने नित्य कर्मों से संपन्न होकर घर के मंदिर में जाकर भगवान कृष्ण और राम-लक्ष्मण की उपासना करें। पूजा की थाल में कुमकुम, चंदन, चावल, धुप दीप रखें। इसके पश्चात दीपक और अगरबत्ती जलाकर भगवान को चंपा के फूलो की माला पहनाकर और मस्तक पर चंदन का तिलक लगायें। और इसके बाद पंचामृत का प्रसाद भगवान जी को चढायें।
पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करें :-
वंदे नवघनश्यामम् पीत कौशेयवाससम्।
सानंदम् सुंदरम् शुद्धम् श्रीकृष्णम् प्रकृतेः परम्॥
क्यों चढ़ाते हैं कान्हा को चंपा के फूल?
पुराणों में ऐसा कहा गया है हिंदु देवी-देवताओं की संख्या बहुत अधिक है और हर दिन देवी देवता को समर्पित है। ईश्वर की कामना करने से जीवन सुखी बनता है। चंपक द्वादशी निर्जला एकादशी के बाद मनाई जाती है और इसका भी बहुत ही अधिक महत्व है। ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष द्वादशी को चंपक द्वादशी नाम से जाना जाता है और इस दिन विशेष रुप से भगवान कृष्ण जी की उपासना की जाती है और उन्हें चंपा के फूल चढ़ाये जाते हैं क्योंकि यह उन्हें बहुत ही प्रिय थे। यदि चंपा के फूल नहीं हैं तो कोई भी सफेद रंग के फूल उनको अर्पित कर सकते हैं।
राम लक्ष्मण द्वादशी का महात्म्य
ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में राजा दशरथ ने राम लक्ष्मण द्वादशी का व्रत किया था उन्हों अपने पुत्रों के रुप में प्राप्त करने के लिये । और इसी व्रत के महात्मय के कारण उन दोनों का जन्म उनके यहां हुआ। और तभी से ये व्रत भक्तों द्वारा रखा जाने लगा ताकि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो। भक्त इस दिन भगवान विष्णु के मंदिर जाते है ताकि भगवान की पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद ले सकें।
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