नेत्र रोग दूर करने की रामबाण उपासना है चक्षु उपनिषद

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता

चक्षु उपनिषद सभी प्रकार के नेत्ररोगों को शीघ्र समाप्त करने वाला और नेत्रों को तेजयुक्त करने वाला चमत्कारी मन्त्र है। यह केवल पाठ करने से ही सिद्ध हो जाता है। इसेचक्षु उपनिषद्’, ‘चक्षुष्मती विद्या’, याचाक्षुषी विद्याके नाम से भी जाना जाता है।

चाक्षुपोनिषद्याचाक्षुषी विद्या’ (मन्त्र)

विनियोगॐ अस्याश्चाक्षुषी विद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिर्गायत्री छन्द: सूर्यो देवता चक्षू रोग निवृत्तये विनियोग:

ॐ चक्षु: चक्षु: चक्षु: तेज: स्थिरो भव। मां पाहि पाहि। त्वरितं चक्षूरोगान् शमय शमय। मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय। यथा अहम् अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय। कल्याणं कुरु कुरु। यानि मम पूर्व जन्मोपार्जितानि चक्षु:प्रतिरोधक दुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय।

ॐ नम: चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय। ॐ नम: करुणाकरायामृताय। ॐ नम: सूर्याय:। ॐ नमो भगवते सूर्यायाक्षितेजसे नम:। खेचराय नम:। महते नम:। रजसे नम:। तमसे नम:। असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो भगवान् चक्षु शुचिरुप:। हंसो भगवान् शुचिरप्रतिरुप:

चाक्षुपोनिषद्याचाक्षुषी विद्याका हिन्दी अर्थ

इस चाक्षुषी विद्या के अहिर्बुध्न्य ऋषि हैं, गायत्री छन्द है, भगवान सूर्य देवता हैं, नेत्ररोग को दूर करने के लिए इसका जप होता है।

ॐ हे चक्षु के अभिमानी सूर्यदेव ! आप चक्षु में चक्षु के तेजरूप में स्थिर हो जाएं। मेरी रक्षा करें, रक्षा करें। मेरी आंख के रोगों का शीघ्र शमन करें शमन करें। मुझे अपना सुवर्ण जैसा तेज दिखला दें। जिससे मैं अंधा न होऊँ, कृपया वैसे ही उपाय करें, उपाय करें। मेरा कल्याण करें, कल्याण करें। देखने की शक्ति में बाधा करने वाले जितने भी मेरे पूर्वजन्मों में अर्जित पाप हैं, सबको जड़ से उखाड़ दें, जड़ से उखाड़ दें।

ॐ नेत्रों को तेज प्रदान करने वाले दिव्यरूप भगवान भास्कर को नमस्कार है। ॐ करुणाकर अमृतस्वरूप को नमस्कार है। ॐ भगवान सूर्य को नमस्कार है। ॐ आकाशबिहारी को नमस्कार है। परम श्रेष्ठस्वरूप को नमस्कार है। ॐ सबमें क्रियाशक्ति उत्पन्न करने वाले रजोगुणरूप भगवान सूर्य को नमस्कार है। अंधकार को अपने भीतर लीन करने वाले तमोगुण के आश्रय भगवान सूर्य को नमस्कार है।  हे भगवान आप मुझको असत् से सत् की ओर ले चलिए। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलिए। मृत्यु से अमृत की ओर ले चलिए। उष्णस्वरूप भगवान सूर्य शुचिरूप हैं। हंसस्वरूप भगवान सूर्य के तेजोरूप की समता करने वाला कोई नहीं है।

कैसे करेंचाक्षुषी विद्याका प्रयोग

रविवार के दिन प्रात: सूर्य के सामने नेत्र बंद करके खड़े या बैठ जाएं और भावना करें किमेरे समस्त नेत्ररोग दूर हो रहे हैं। इस तरह रविवार से शुरू कर रोजानाचाक्षुपोनिषद्के बारह पाठ करें क्योंकि बारह आदित्य (द्वादशादित्य) बताए गए हैं। यह प्रयोग बारह रविवार तक का होता है। तांबे के लोटे में रोली (लाल चंदन), अक्षत, लाल कनेर पुष्प (कनेर न हो तो लाल गुड़हल या लाल गुलाब) डालकर सूर्य को अर्घ्य देकर नमस्कार कर पाठ आरम्भ करना चाहिए। रविवार के दिन सूर्यास्त से पहले बिना नमक का एक बार भोजन करना चाहिए।

चाक्षुषी विद्या’  के पाठ का फल

इसचाक्षुषी विद्याके श्रद्धाविश्वासपूर्वक नित्य पाठ करने से आंखों के समस्त रोग दूर हो जाते हैं। नेत्रज्योति स्थिर रहती है। इसका नित्य पाठ करने से कुल में कोई अंधा नहीं होता। इस चाक्षुष्मती विद्या के द्वारा आराधना किए जाने पर प्रसन्न होकर भगवान सूर्य नेत्र पीड़ितों के कष्ट दूर कर उन्हें पूर्ण नेत्रज्योति प्रदान करते हैं।

Religion

जीवन का आखिरी सवाल, क्या मोक्ष का हो सकता है पूर्वाभास?

राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद जयपुर। मोक्ष एक परम आकांक्षा है, परंतु उसके लिए पात्रता भी आवश्यक है। इस पात्रता की परिभाषा भी समझनी होगी। मोक्ष का वास्तविक अर्थ है जन्म और मृत्यु के आवागमन से मुक्ति और परमब्रह्म में विलीन होना। यह भी तथ्य है कि एक जैसे तत्व ही एक दूसरे में विलय […]

Read More
Religion

अमावस्या पर इन चीजों का करें दान, पितर होंगे प्रसन्न

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता हर महीने कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के अगले दिन अमावस्या तिथि पड़ती है। किसी भी माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को यह कार्य किए जाते हैं। अमावस्या के दिन स्नान और दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार के पाप का नाश होता है। […]

Read More
Religion

मासिक शिवरात्रि आज, जानें तिथि-शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

आषाढ़ महीने की मासिक शिवरात्रि है बेहद खास इस व्रत से होती है अनंत फल की प्राप्ति जयपुर से राजेंद्र गुप्ता त्रयोदशी की तहर ही कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि भी भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। इस दिन भक्त व्रत […]

Read More