वैवस्वत सप्तमी आज, ऐसे करें सूर्यदेव का पूजन

  • यह व्रत जीवन की सभी परेशानियां दूर करने वाला माना जाता है
  • यश, कीर्ति बढ़ती है साथ ही सेहत संबंधी समस्या हो जाती है दूर

राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद

प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को वैवस्वत (विवस्वत सप्तमी मनाई जाती है। इस बार शुक्रवार, 12 जुलाई 2024 को वैवस्वत सप्तमी मनाई जा रही है। इस दिन सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु और सूर्य देवता का पूजन करने का विधान है। मान्यतानुसार यह व्रत जीवन की सभी परेशानियां दूर करने वाला माना जाता है। आषाढ़ शुक्ल सप्तमी के दिन सूर्यदेव की पूजा करने से जीवन सारी परेशानियां दूर होती हैं, जहां भाग्य का साथ मिलने लगता है, वहीं यश, कीर्ति बढ़ती है तथा सेहत संबंधी सारी समस्या दूर होने लगती है।

मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल सप्तमी पर जो मनुष्य वैवस्वत मनु के साथ भगवान सूर्यदेव की उपासना करता हैं उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

वैवस्वत सप्तमी पूजा विधि  

  • आषाढ़ शुक्ल सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
  • अपने माथे पर लाल चंदन का तिलक लगाएं।
  • तत्पश्चात तांबे के कलश में जल भर कर उसमें लाल फूल, रोली, अक्षत और चीनी डालें।
  • इसके बाद सूर्यदेव कोॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य चढ़ाएं।
  • शाम को सूर्यास्त से पूर्व एक बार फिर सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
  • शाम को गुड़ का हलवा बना कर सूर्यदेव को अर्पित करें और इसे प्रसाद के रूप में बांटें।
  • शाम को सूर्यदेव की पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाएं तथा दक्षिणा दें।
  • सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ अवश्‍य करें।  

वैवस्वत सप्तमी मंत्र

1. ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः

2. ॐ आदित्याय नम:

3. ॐ सप्तार्चिषे नम:

4. ॐ ऋगमंडलाय नम:

5. ॐ सवित्रे नम:

6. ॐ वरुणाय नम:

7. ॐ सप्तसप्त्ये नम:

8. ॐ मार्तण्डाय नम:

9. ॐ विष्णवे नम:

10. ॐ सूर्याय नम:

11. ॐ घृणि सूर्याय नम:

12. ॐ घृणिं सूर्य्य: आदित्य:

13. ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ

14. ॐ घृणि: सूर्यादित्योम

15. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।

इस प्रकार है सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु की मूल कथा

मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि सत्यव्रत नाम के राजा एक दिन कृतमाला नदी में जल से तर्पण कर रहे थे। उस समय उनकी अंजुलि में एक छोटी सी मछली आ गई। सत्यव्रत ने मछली को नदी में डाल दिया तो मछली ने कहा कि इस जल में बड़े जीव जंतु मुझे खा जाएंगे। यह सुनकर राजा ने मछली को फिर जल से निकाल लिया और अपने कमंडल में रख लिया और आश्रम ले आए।

रात भर में वह मछली बढ़ गई। तब राजा ने उसे बड़े मटके में डाल दिया। मटके में भी वह बढ़ गई तो उसे तालाब में डाल दिया अंत में सत्यव्रत ने जान लिया कि यह कोई मामूली मछली नहीं जरूर इसमें कुछ बात है तब उन्होंने ले जाकर समुद्र में डाल दिया।

समुद्र में डालते समय मछली ने कहा कि समुद्र में मगर रहते हैं वहां मत छोड़िए, लेकिन राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि आप मुझे कोई मामूली मछली नहीं जान पड़ती है आपका आकार तो अप्रत्याशित तेजी से बढ़ रहा है बताएं कि आप कौन हैं।

तब मछली रूप में भगवान विष्णु ने प्रकट होकर कहा कि आज से सातवें दिन प्रलय (अधिक वर्षा से) के कारण पृथ्वी समुद्र में डूब जाएगी। तब मेरी प्रेरणा से तुम एक बहुत बड़ी नौका बनाओ औ जब प्रलय शुरू हो तो तुम सप्त ऋषियों सहित सभी प्राणियों को लेकर उस नौका में बैठ जाना तथा सभी अनाज उसी में रख लेना। अन्य छोटे बड़े बीज भी रख लेना। नाव पर बैठ कर लहराते महासागर में विचरण करना। 

प्रचंड आंधी के कारण नौका डगमगा जाएगी। तब मैं इसी रूप में आ जाऊंगा। तब वासुकि नाग द्वारा उस नाव को मेरे सींग में बांध लेना। जब तक ब्रह्मा की रात रहेगी, मैं नाव समुद्र में खींचता रहूंगा। उस समय जो तुम प्रश्न करोगे मैं उत्तर दूंगा। इतना कह मछली गायब हो गई।

राजा तपस्या करने लगे। मछली का बताया हुआ समय आ गया। वर्षा होने लगी। समुद्र उमड़ने लगा। तभी राजा ऋषियों, अन्न, बीजों को लेकर नौका में बैठ गए। और फिर भगवान रूपी वही मछली दिखाई दी। उसके सींग में नाव बांध दी गई और मछली से पृथ्वी और जीवों को बचाने की स्तुति करने लगे। मछली रूपी विष्णु ने उसे आत्मतत्व का उपदेश दिया। मछली रूपी विष्णु ने अंत में नौका को हिमालय की चोटी से बांध दिया। नाव में ही बैठेबैठे प्रलय का अंत हो गया।

यही सत्यव्रत वर्तमान में महाकल्प में विवस्वान या वैवस्वत (सूर्य) के पुत्र श्राद्धदेव के नाम से विख्यात हुए। वही वैवस्वत मनु के नाम से भी जाने गए। सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु ही मनु स्‍मृति के रचयिता हैं।

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