चरण सिंह के करीबी ब्रम्हदत्त की पुस्तक “फाइब हेडेड मांस्टर” में है इमरजेंसी का सच

यशोदा श्रीवास्तव

18 वीं लोकसभा के चुनाव से लेकर मोदी के नेतृत्व में सरकार गठन तक किसी एक मुद्दे को लेकर बवाल मचा तो वह था संविधान! चुनाव के दौरान कांग्रेस की ओर से संविधान की रक्षा का कंपेयन चलाया गया तो भाजपा की ओर से कांग्रेस से ही संविधान को खतरा बताया गया। मोदी ने संविधान की रक्षा का दावा करने वाली कांग्रेस को ढेर करने के लिए 50 साल पुराने आपातकाल का जिन्न ढूंढ लिया जिसकी राष्ट्रपति के अभिभाषण से लेकर मोदी और लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला के भाषणों तक में जमकर लानत मलानत की गई।निशाने पर कांग्रेस रही। कांग्रेस के माथे पर आपातकाल का कलंक धुल न जाय इसलिए हर साल के 25 जून को संविधान हत्या दिवस ही घोषित कर दिया जिसकी आधिकारिक जानकारी गृहमंत्री अमित शाह ने देश को दे दी है। आपातकाल से संविधान की हत्या कैसे हुई यह समझ से परे है लेकिन हाकिम की नजर में हुई तो हुई।
आपातकाल के बहाने जब संविधान की हत्या की बात आ गई तो यह भी सवाल उठता है कि तो फिर इसका समर्थन जेल में बंद रहते आर एस एस के तत्कालीन उच्च पदाधिकारी बाला साहब देवरस ने क्यों किया था? भले ही इसका बड़ा निहितार्थ रहा हो। अभी हाल ही लालू यादव ने एक अखबार को दिए इंटर व्यू में कहा कि तब जेल में बंद किसी राजनैतिक बंदी के साथ खराब बर्ताव नहीं किया गया। भाजपा की परिभाषा के अनुरूप आपातकाल यदि भयावह काल था तो मात्र ढाई साल बाद हुए उपचुनाव में देश की जनता ने इंदिरा गांधी को भारी बहुमत के साथ सत्ता क्यों सौंप दी? और जब 1978 में स्वयं इंदिरा गांधी और उसके बाद राहुल गांधी ने “जिसे आपातकाल के बारे में कोई जानकारी भी नहीं रही होगी”भी आपातकाल के लिए देश से माफी मांग ली है। फिर 25 जून को संविधान हत्या दिवस क्यों?
जानकारों का कहना है,इसके पीछे कुछ और नहीं सिर्फ गांधी परिवार को नीचा दिखाना भर है। भाजपा यदि यह सोचती है कि इससे उसे राजनीतिक फायदा होने वाला है तो यह दूर की बात है क्योंकि इमरजेंसी से अनजान आज की पीढ़ी ने अयोध्या के लल्लू सिंह सहित भाजपा के कुछ और नेताओं के मुंह से साफ साफ सुना है कि हमें संविधान बदलना है इसलिए चार सौ पार सीटें चाहिए। हैरत है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ने आपातकाल की निंदा में खूब गला फाड़ा लेकिन अपने इन नेताओं के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला। आज की पीढ़ी को आपातकाल नहीं यह याद रहेगा।
इमरजेंसी पर कोई टिप्पणी या लेख स्व.ब्रम्हदत्त की पुस्तक “फाइब हेडेड मांस्टर”का जिक्र के बिना अधूरा है। देहरादून के मूल निवासी ब्रम्ह दत्त यूपी की राजनीति में बड़ी शख्सियत थे। वे चौधरी चरण सिंह की पार्टी बीकेडी (भारतीय क्रांति दल)के नेता तथा यूपी विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष थे। जून 19 75 में लगी इमरजेंसी में वे भी पूरे 19 महीने जेल में थे। उस वक्त कांग्रेस के विरोध में जितने भी दल थे सभी के बड़े नेता या भूमिगत थे या जेल में थे। कहा जाय तो जेल में ही इंदिरा गांधी का सर “जिंदा या मुर्दा” हासिल करने की तर्ज पर उनके खिलाफ विपक्षी गठबंधन की नींव पड़ी जिसमें संघ के लोग शामिल थे। इस गठबंधन का नाम जनता पार्टी रखा गया।ब्रम्ह दत्त को यह नागवार लगा। उन्होंने चौधरी चरण सिंह से कहा विपक्षी एकता में संघ की विचार धारा वाले जनसंघ को शामिल करना ठीक नहीं है। आर एस एस एक फासिस्ट संगठन है जिसका सरकार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दखल खतरनाक होगा।चरण सिंह नहीं मानें क्योंकि उन्हें आशा थी कि वे प्रधानमंत्री बन जाएंगे। इस मतभेद के चलते उन्होंने चरण सिंह का साथ छोड़ दिया और प्रणब मुखर्जी के जरिए कांग्रेस में आ गए।1977 में चुनाव हुआ,जनता पार्टी की सरकार बन गई। ब्रम्ह दत्त चूंकि विधान परिषद में थे ही,इसलिए कांग्रेस ने भी उन्हें विधान परिषद में विपक्ष का नेता बनाए रखा।
इसी वक्त ब्रम्ह दत्त ने फाइब हेडेड मांस्टर नामक पुस्तक लिखी जिसमें जनता पार्टी और जनसंघ के पांच प्रमुख नेताओं को पांच सिरों वाला राक्षस बताते हुए लिखा है कि ये आपस में ही एक दूसरे को खा जाएंगे। उन्होंने अपनी पुस्तक में इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के फैसले को वक्त की जरूरत बताते हुए साफ लिखा है कि जनता पार्टी की सरकार ढाई साल में गिर जाएगी और भारी बहुमत से कांग्रेस सत्ता में लौटेगी। बता दें कि ब्रम्ह दत्त कोई भविष्य वक्ता नहीं थे लेकिन राजनीतिक मामलों में उनका आकलन अमूमन सही होता था।
जनता पार्टी के धराशाई होने से लेकर मध्यावधि चुनाव और भारी बहुमत से सरकार में कांग्रेस की वापसी का उनका अनुमान सच साबित हुआ।
ब्रम्ह दत्त के बेहद करीबी और यूपी की राजनीति में वरिष्ठ कांग्रेस नेता नर्वदेश्वर शुक्ल कहते हैं कि चुनाव में हार के बाद इंद्रा गांधी को लंदन जाते समय उन्हें ब्रम्ह दत्त ने अपनी पुस्तक की पांच प्रतियां भेंट की थी। पालम हवाई अड्डे के वीआईपी कक्ष में ही उन्होंने पुस्तक को सरसरी तौर देखा तो उनकी नजर जनता पार्टी सरकार के मध्यावधि चुनाव की संभावना पर पड़ी,उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा यह कैसे संभव है?इस पर ब्रम्ह दत्त ने कहा ,मैडम यह मेरा आकलन है। बताने की जरूरत नहीं कि ब्रम्ह दत्त आगे के कांग्रेस सरकार में यूपी और केंद्र में पावरफुल मिनिस्टर रहे हैं।
बता दें कि आपातकाल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा 1975 में लगाया गया था।इसकी पृष्ठभूमि में था जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में चल रहा संपूर्ण क्रांति आन्दोलन जिसमें देश भर के छात्र,युवा,कामगार,मजदूर किसान सब शामिल थे। हैरत है कि आज जब सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा में शहीद जवानों को बड़ा देश भक्ति मान कर सरकार अपने कार्यकाल का विस्तार कर ले जाती हैं वहीं 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े करने के बाद भी इंद्रा गांधी अपनी देश भक्ति साबित करने में विफल रहीं,उसी वक्त देश का विपक्ष इंदिरा हटाओ का अभियान शुरू कर दिया था। इमरजेंसी लगाने के और भी कारण हो सकते हैं लेकिन बड़ा कारण था 15 जून 1975 को दिल्ली के राम लीला मैदान में आयोजित बड़ी जनसभा में जेपी का पुलिस और सेना से सरकार का आदेश न मानने का आवाहन। जेपी के नेतृत्व में देश भर में इंदिरा विरोधी लहर थी लिहाजा भारी आरजकता की संभावना अधिक थी। यह संभावना तब और बलवती हो गई जब बहुत निम्न आधार पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा रद की गई इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को उच्चतम न्यायालय ने 24 जून 1975 को बहाल रखा। उच्चतम न्यायालय के इस फैसले के बाद देश के हालात बेकाबू हो गए थे जिससे पार पाने के लिए इंदिरा गांधी को आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। आपातकाल पूरे 21 महीनें लागू था जिसे स्वयं इंदिरा गांधी ने ही खत्म किया।

 

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