
- निलंबित करने के बजाए विशेष ड्यूटी लगाकर दोषियों को बचाया
- मामूली घटनाओं पर निलंबन और बड़ी घटनाओं पर नहीं हुई कोई कार्यवाही
राकेश यादव
लखनऊ। प्रदेश कारागार विभाग को महिमा अपरंपार है। इस विभाग में कार्यवाही में भी पक्षपात किया जा रहा है। जेल के अंदर कट्टन मिलने पर जेलर को निलंबित कर दिया जाता है। वही नियमों में शिथिलता और मातहतों पर कोई अंकुश नहीं रख पाने वाले जेलर को अन्यत्र जेल में विशेष ड्यूटी लगाकर बचा लिया जाता है। विभाग के आला अफसरों की पक्षपातपूर्ण कार्यवाही से विभागीय अधिकारियों और कर्मियों में खासा आक्रोश व्याप्त है। विभाग के आला अधिकारी इस मसले पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक करीब एक पखवारा पूर्व प्रदेश की गाजियाबाद जेल अस्पताल में भर्ती एक पूंजीपति बंदी का केक काटकर धूमधाम से जन्मदिन मनाया गया। इसकी शिकायत किसी कर्मी ने विभाग के मुखिया से कर दी। मुखिया ने इसकी जांच परिक्षेत्र के डीआईजी ने की। जांच रिपोर्ट में बंदियों और मातहतों पर कोई नियंत्रण नहीं होने की बात कही। इसके बाद विभाग के मुखिया ने गाजियाबाद के जेलर और डिप्टी जेलर को निलंबित करने के बजाए अन्यत्र जेलों में विशेष ड्यूटी लगाकर बचा लिया।
सूत्रों का कहना है कि इससे पूर्व डीआईजी प्रयागराज की रिपोर्ट पर बांदा जेल में कट्टन्न मिलने पर जेलर वीके वर्मा को निलंबित कर दिया गया था। इसके अलावा आपत्तिजनक वस्तुएं मिलने पर जेलर योगेश कुमार को भी निलंबित कर दिया गया था। इसके साथ ही फिरोजाबाद जेल बंदी की पीट पीट कर हत्या के मामले में और लखनऊ जेल में बंदीरक्षक की मौत, मोबाइल फोन पर धमकी, साइन सिटी मामले में पावर ऑफ अटॉर्नी जैसी कई सनसनीखेज घटनाएं होने के बाद किसी भी दोषी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। गाजियाबाद जेल में मातहतों पर कोई नियंत्रण नहीं होने जैसी घटना के बाद दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने के बजाए उनकी अन्यत्र जेलों में ड्यूटी लगाकर उन्हें बचा लिया गया। उधर इस संबंध में जब आईजी जेल पीवी रामाशस्त्री और डीआईजी जेल मुख्यालय आरएन पांडेय से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनसे बात नहीं हो पाई।
गलती एक जैसी, एक दोषी, एक निर्दोष
गाजियाबाद जेल की घटना से पूर्व कैदियों की समयपूर्व के मामले में फतेहगढ़ सेंट्रल जेल और कानपुर देहात जिला जेल में एक समान गलती हुई। दोनों ही जेलों के अधिकारियों की त्रुटि को शासन ने पकड़ा। शासन ने एक जैसी गलती करने वाले अधिकारियों में एक जेल के अधीक्षक को तो निलंबित कर दिया, किंतु दूसरे के खिलाफ आजतक कोई कार्यवाही नहीं की गई। निलंबन के खिलाफ न्यायालय की शरण में गए अधीक्षक को लंबी लड़ाई के बाद राहत जरूर मिल गई। विभाग में पक्षपातपूर्ण कार्यवाही का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई मामले प्रकाश में आ चुके है।