- वशिष्ठ जी के वंशज- पराशर पुत्र हैं ,कृष्ण द्वैपायन व्यास
- वेद का विस्तार किया वेदव्यास ने, महाभारत के रचयिता भी व्यास
- लेखन मे मददगार रहे सिद्धि -बुद्धि स्वामी गणेश
- गुरु पूर्णिमा में होगा गुरु पूजन
बीके मणि त्रिपाठी
गुरु पूर्णिमा-व महर्षि वेदव्यास जयंती, आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा, 21जुलाई को है। इस तारीख को व्यास जी का पूजन और श्रद्धालुओ द्वारा अपने गुरु का पूजन होगा।
कृष्ण द्वैपायन व्यास
27 कल्प बीत चुके यह 28वां कल्प है। हर कल्प में व्यास हुए इस कल्प के व्यास का नाम कृष्ण द्वैपायन व्यास है। ये वशिष्ठ जी के वंश में ही जन्में में पाराशर ऋषि के पुत्र हैं। इनकी माता का नाम मत्स्यगंधा (योजना गंधा) सत्यवती था। वास्तव मे राजा सुधन्वा के कोई संतान नहीं थी। एक बार राजा आखेट को वन में गए थे, उस बीच उन्हे़ संदेश मिला कि रानी ऋतुकाल में हैं। राजा ने अपना तेज एक पत्ते में लपेट कर शिकारी पक्षी को दिया। जिसे रानी के पास वह तेज पहुंचाना था। पर रास्ते में दूसरे शिकारी पक्षी से उसका स़घर्ष होगया । तेज नदी मे गिर गया,जिसे एक मछली ने निगल लिया। एक मछुआरे ने जाल फेंका तो अन्य मछलियों के साथ वह मछली भी जाल में फंस गई । मछली चीरने पर उस मछली के शरीर से दो संतानें हुईं,मत्स्यराज और मत्स्यग़धा। जिन्हें मछुआरे ने राजा को सौंप दिया।पुत्र मत्स्य राज को लेकर राजा ने बेटी मछुआरे को वापस कर दी। वही सत्यवती कहलाई।
एक बार ऋषि पाराशर उस नदी को पार कर रहे थे,नाव सत्यवती चला रही थी। कालज्ञ ऋषि ने देखा कि कुछ पल के लिए विलक्षण ग्रह योग मिल रहा है ,जिसमें गर्भाधान हुआ तो जन्मा बालक अवतारी पुरुष होगा। उन्होंने मत्स्य गंधा से प्रार्थना की,बदले में उसे योजन गंधा और अक्षत यौवना बना दिया और कौमार्य भंग न होने का आशीर्वाद दिया। वही मत्स्यगंधा कालांतर में ऋषि के आशीर्वाद से दिव्य गंध वाली सत्यवती( योजनगंधा) कहलाई। महाराजा शांतनु से सत्यवती का विवाह हुआ। जिन्हें चित्रांगद और विचित्र वीर्य पैदा हुए। शांतनु की पहली पत्नी गंगा थी जिनसे ज्येष्ठ पुत्र देवदत्त (भीष्म) पैदा हुए थे ।
गुरु पूर्णिमा आज, दशकों बाद गुरु पूर्णिमा पर बन रहे हैं ये अद्भुत योग… जानें…
गुरुपूजन का महत्व
गु- अंधकार, रु- प्रकाश, जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाय वह है गुरु। गुरु, मंत्र शक्ति से अंतर्मन में ज्ञान दीप जला कर प्रकाश से भर देता है। बुद्धि में ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग सुझा देता है। चलना तो स्वय़ं पड़ेगा। जिस तरह कमरे में अच्छी सजावट हो लाखों के सजावट के सामान, झाड़ फानूस, सोफे कालीन सब लगे हो, पर कमरे में बिजली न हो तो ये सुखकर सामान हाथ-पैर तोड़ने वाले हमारे लिए दुखदायी बन जाते हैं। परंतु बिजली का स्विच ऑन करते ही वे सुख के साधन बन जाते हैं। ठीक इसी प्रकार हमारी प्रकृति और पूर्व जन्म की साधना का पता न होने से किस देवी देवता की पूजा करें,किसका मंत्र जपें यह सुनिश्चित नहीं होता। प्रत्येक गुरु, शिष्य का परीक्षण कर इष्ट देवता और इष्ट मंत्र सुनिश्चित करते हैं और वहीं मंत्र दीक्षा देते हैं जिसस उसका (शिष्य) का कल्याण हो। एक मंत्र और इष्ट के ध्यान से उसका आमुष्मिक कल्याण होजाता है।
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को विष्णु स्वरूप भगवान वेद व्यास का अवतरण हुआ। जिन्होंने वेद, पुराण, उपनिषद आदि की रचना कर लोक को ज्ञान का प्रकाश दिया। इसलिए यह तिथि गुरुपूर्णिमा भी कहलाई।
सर्वाधिक अनुकूल हैं ग्रह गोचर
इस वर्ष अधिकांश ग्रह अपने घर में या दीप्त अवस्था में हैं। सूर्य शुक्र के साथ कर्क में है, बुध सिंह में आ जाएंगे । वृष में मंगल और वृहस्पति, मीन में राहु, कुंभ में वक्री शनि, कन्या में केतु, चंद्र धनु से मकर में जाएगा का विशेष योग होने से यह विलक्षण संयोग बना है।