एक DM ऐसा भी… जमीन पर सुनी दास्तां और फोन पर खुद कर रहे फॉलोअप

  • राजा गणपति आर: एक नौजवान आईएएस अफसर, जिसकी चर्चा खुद कर रहे लोग
  • अब गरीब तबके को भी हुआ भरोसा, डीएम से बातकर निपटा लेंगे अपना मसला
यशोदा श्रीवास्तव
यशोदा श्रीवास्तव

हेलो! मैं डीएम बोल रहा हूं। एक हफ्ते पहले आपने अपने जमीन के कब्जे की शिकायत की थी,क्या हुआ,कोई कार्रवाई हुई,मौके पर कोई अफसर गया था, आप संतुष्ट हैं? इस वक्त सिद्धार्थनगर जिले के दूर-दराज से जिलाधिकारी के पास अपना दुखड़ा सुना चुके किसी न किसी फरियादी के पास डॉ. राजा गणपति आर. का फोन पंहुच रहा है। उनके इस कदम से जिले के कई अधिकारियों में हड़कम्प है, तो कई खुद को उनकी लाइन में खड़ा करने की पुरजोर कोशिश में जुटे हुए हैं।

लहू न हो तो क़लम तर्जुमां नहीं होता,

हमारे दौर में आँसू ज़बाँ नहीं होता। 

जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा,

किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता।

उर्दू के बड़े फनकार वसीम बरेलवी की यह गजल इस समय नेपाल सीमा पर बसे उत्तर प्रदेश के आखिरी जिले सिद्धार्थनगर के जिलाधिकारी (DM) पर बिल्कुल सटीक बैठ रहा है। वो आम लोगों से मिलते हैं, उनके साथ जमीन पर बैठ जाते हैं और उनके जैसा बनकर उनकी समस्याओं को निपटाने की कोशिश करते हैं। उनकी इस नेक पहल की चर्चा अब सिद्धार्थनगर से निकलकर राजधानी के राजनीतिक गलियारों में हो रही है। उनकी चर्चा कुछ उसी तरह जारी है जैसे झारखंड जैसे छोटे राज्य के डीसी आदित्य रंजन की हुई थी। झारखंड के छात्रों के इन्हींर सपनों को साकार करने के लिए इस IAS अफसर ने अनूठी पहल शुरू की है। छात्रों को डिजिटल साक्षर बनाने के लिए झारखंड के कोडरमा जिले के तत्कालीन डीसी आदित्यर रंजन ने उन्हें कंप्यूटर की ट्रेनिंग खुद देनी शुरू की थी। साथ ही उन्हों ने जिला प्रशासन की तरफ से ‘एक्सीलेंट 200’ की शुरुआत की, जिसमें चयनित विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मुफ्त कोचिंग व पाठ्य सामग्री की व्यवस्था की जा रही है। साथ ही संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के साथ-साथ अन्य सिविल परीक्षाओं की बारीकियां बताई जा रही हैं। आदित्य कहते हैं- ‘शिक्षा से सपनों को पंख लगते हैं, और इन पंखों से उड़ान भरकर हर सपने को पूरा किया जा सकता है।’

बताते चलें कि सिद्धार्थनगर नेपाल सीमा पर स्थित उत्तर प्रदेश का एक ऐसा जिला है, जहां के लोग पहली बार किसी आला हाकिम के फोन से अपनी शिकायतों के निस्तारण की स्थिति बता पा रहे हैं। बतौर डीएम राजा गणपति आर. की यह पहली तैनाती है। वे यहां अभी 28 जून को आए हैं। इसके पहले वे स्वास्थ महकमें में बतौर निदेशक प्रशासन स्वास्थ्य भवन में तैनात थे। डीएम पद पर ज्वाइनिंग के दिन से ही वे लोगों में अंग्रेजों के जमाने की लाट साहबी की डरावनी भावना से मुक्त कर लोकसेवक की अनुभूति कराने की कोशिश में लग गए हैं। जनता का हित सर्वोपरि की भावना से वे हर रोज अपने दफ्तर में समय से दाखिल होते हैं जहां सौ सवा सौ फरियादियों को सुनते हैं। उनसे दरख्वास्त लेते हैं और उसके निस्तारण के लिए संबंधित अधिकारी को लिखते हैं या फोन पर निर्देश देते हैं।

मुमकिन है ऐसा करने वाले यूपी में और भी आला अफसर हो सकते हैं, लेकिन राजा गणपति औरों से इसलिए अलहदा हैं कि ये न सिर्फ शिकायतकर्ता से फोन पर उसकी समस्या के निस्तारण के बावत पूछते हैं,जरा भी हीला-हवाली करने वाले संबंधित अधिकारी की जमकर ‘क्लास’ लेते हैं। डीएम कार्यशैली का असर जिले के तहसीलों तक पड़ता हुआ दिख रहा है, जहां अफसर से लेकर कर्मचारी तक न केवल ‘राइट टाइम’ हुए हैं, उनमें जनता के प्रति व्यवहार में भी बड़ा बदलाव देखने को मिलने लगा है। इस बीच खबर यह भी है कि कामचोर व बिल्कुल ही न सुधरने के संकल्प वाले तमाम अधीनस्थ अपने तबादले की जुगत में लग गए हैं।

सिद्धार्थनगर के जिलाधिकारी राजा गणपति आर.और उनकी पत्नी

अभी कुछ रोज पहले जिला बाढ़ की चपेट में था। जाहिर है ऐसे वक्त में नेता ही खुद को जनता का भगवान सिद्ध करने की होड़ में होते हैं। लेकिन यहां तो डीएम को ही लोग भगवान मान बैठे। उन्होंने लोगों को एहसास कराया कि बाढ़ पिकनिक का नजारा नहीं होता,सेवा और ईमानदारी से राहत का वक्त होता है। कहना न होगा कि मात्र दो महीने में ही लोग अपने जनप्रतिधियों को भूलकर डीएम के पास जाना ज्यादा आसान मानने लगे हैं। राजा गणपति आर. की अनूठी कार्यशैली से लोगों में भय है कि डीएम को कहीं किसी की नजर न लग जाय! क्योंकि जनता को उलझाकर रखने वाले नेताओं को जरूरतमंदों को फौरी न्याय देने वाले अफसर रास नहीं आते। लक-दक खादी के वस्त्रों में लिपटा नेता जहां वातानूकुलित (AC) कमरों में राजा-महाराजा की तरह दरबार लगाता है। वहीं आईएएस अफसर राजा गणपति गरीबों की झोपड़ी में जमीन पर बैठकर उनकी बात सुनते हैं।

प्रयागराज के करछना तहसील में एसडीएम के पद पर अपनी तैनाती के दौरान किए गए उनके कार्य पूरे प्रदेश में नज़ीर के तौर पर देखें जाते रहे। तहसील स्तरीय जितने काम थे सब के सब प्राथमिकता के आधार पर निपटाने में यह तहसील प्रदेश में अग्रणी रहा। जनता इनके कार्यों से इतना खुश थी कि इनके स्थानांतरण की खबर पर सड़कों पर उतर आई और तब तक डटी रही जबतक इनका स्थानांतरण रुक नहीं गया। एक अफसर के प्रति जनता का ऐसा प्रेम उमड़ना भी एक नजीर है। राजा गणपति आर. कहते हैं कि जनता के हितार्थ सरकार द्वारा इतनी योजनाएं हैं कि यदि उसे ही ईमानदारीपूर्वक लागू करवा दिया जाए तो खुशहाली ढूंढने किसी जंगल में जाने की जरूरत ही नहीं। साफ है कि सरकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाना और उसे लागू करना न केवल इस नौजवान अफसर का संकल्प है,वे इसके लिए पूरी निष्ठा से लगे भी रहते हैं।

सोचिए कोई अफसर युवाओं को सड़क किनारे दौड़ता देख कैसे गांव गांव में ओपन जिम और पार्क बनवाए देता है। जी हां! अपने सीडीओ पद की तैनाती के दौरान राजा गणपति आर ने इटावा में ऐसा कर दिखाया। इटावा में अपने 18 महीने की तैनाती के दौरान इन्होंने जिले के ग्रामीण इलाकों का कायाकल्प कर दिया। इटावा आज यदि पार्क ओपन जिम,तालाबों का सुंदरीकरण, वृक्षारोपण, सड़क, बिजली-पानी सारी सुविधाओं से चकाचक है तो यह निश्चित ही राजा गणपति आर. की देन है। वे चार साल तक निदेशक प्रशासन शिक्षा व स्वास्थ्य के पद पर भी रहे। इस दौरान उन्होंने यहां ईमानदार कार्यशैली को बढ़ावा दिया। स्वास्थ्य निदेशालय को भ्रष्टाचार मुक्त करने का भी भरपूर प्रयास किया‌। इस महकमें में रहते हुए उन्हें कर्मचारी संगठनों के विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन निर्बाध गति से वे अपना काम करते रहे। इनकी आईएएस पत्नी अभी लखनऊ में ही तैनात थे और निदेशक अल्पसंख्यक की भूमिका निभा रही हैं।

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