- आयुर्वेद में इसे कहा जाता है शिवलिंगी
- बारसूर के नागफनी क्षेत्र में इसकी झाड़ियां ज्यादा
हेमंत कश्यप/जगदलपुर। बस्तर को शिवधाम कहा जाता है और यहां शिवजी विभिन्न रूपों में पूजे जाते हैं। दुनिया का सबसे छोटा प्राकृतिक शिवलिंग बड़ी संख्या में बस्तर में ही पाया जाता है।आयुर्वेद में इसे शिवलिंगी कहा जाता है। आयुर्वेदिक शास्त्र इसे पुत्रदाता और ईश्वरलिंगी भी कहता है ।
बस 5 मिमी लंबा बारिश के बाद आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के किनारे शिवलिंगी की बेल काफी मात्रा में नजर आती हैं। इसमें लाल रंग के फल होते आते हैं। फल को मसलने से जो बीज प्राप्त होता है वही शिवलिंगी कहलाता है।
शिवलिंगी का रंग रुप बिल्कुल शिव लिंग की तरह होता है, इसलिए इसे शिवलिंगी कहा जाता है। यह मात्र 5 मिलीमीटर तक लंबा होता है। इसका वानस्पतिक नाम ब्रायोनिया लैसीनोसालिन है। यह कुकुरबिटेसी कुल का पौधा है।
सबसे बड़ा और छोटा शिवलिंग यहीं बस्तर के लिए यह सौभाग्य की बात है कि छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा मानव निर्मित शिवलिंग चित्रकोट में है, वही दुनिया का सबसे छोटा प्राकृतिक शिवलिंग भी बस्तर में सर्वाधिक पाया जाता है। लोग इसे कुमकुम के साथ सहेज कर रखते हैं और बड़ी श्रद्धा से पूजा करते हैं। शिवलिंगी के बीज को काफी औषधीय माना जाता है। आयुर्वेद में इसे बुखार दूर करने की औषधि से लेकर पुत्रदाता तक माना गया है।
बेटियों को भेंट करती हैं मां बताया गया कि बांझ महिला को हर समाज में उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है, इसलिए बस्तर के कई गांव में आज भी मां अपनी बेटियों को नि: संतान होने के दंश से बचाने औषधि के रूप में बिलईपोटी अर्थात शिवलिंगी और धन के रूप में सिहाड़ी बीज भेंट करती हैं। सिहाडी बीज से माला तैयार कर पहना जाता है।