वृंदावन में है भगवान शिव का गोपेश्वर मंदिर
वृंदावन के गोपेश्वर मंदिर में भगवान शिव गोपी के रूप में विराजमान हैं और विश्व का यह पहला मंदिर है जहां पर महादेव का श्रंगार महिलाओं के रूप में होता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के प्रौपत्र ने करावाया था. वैसे तो इस मंदिर में हर दिन श्रद्धालु पूजा करने आते हैं लेकिन महाशिवरात्रि के दिन जल चढ़ाने के लिए भक्तों की यहां लंबी-लंबी कतारें लग जाती हैं.
भगवान कृष्ण ने शरचद पूर्णिमा के दिन महारास करने का निश्चय किया और जब उन्होंने अपनी बंसी बंजाई तो उनकी कामबीज नामक बंसी की धुन सुनकर सभी गोपिकाएं भागी-भागी मधुबन में आ गईं.
भगवान शिव के वैसे तो आपने अनेकों नाम और अनेकों रूपों के बारे मे सुना होगा. देवों के देव महादेव को उनके भक्त महाकाल, विश्वनाथ तो कोई केदारनाथ के रूप में पूजता है. हालांकि ब्रज वैसे तो कृष्ण की की लीला नगरी के नाम से प्रसिद्ध है लेकिन यहां पर महादेव ने भी द्वापरयुग में लीला की है. इतना ही नहीं वृंदावन में महादेव का एक ऐसा मंदिर है, जिसकी अलग रूप में ही पूजा होती है. भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा के वृंदावन में भगवान शिव गोपी के रूप में विराजे हैं और मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में भगवान कृष्ण और राधा ने उनकी सबसे पहले पूजा की थी.
दिन में दो स्वरूप में देते हैं दर्शन
इतना ही वृंदावन के गोपेश्वर मंदिर में महादेव अपने भक्तों को दिन में दो स्वरूप में दर्शन देते हैं. जहां भक्त सुबह के समय महादेव का जलाभिषेक करते हैं तो शाम को भोलेनाथ का 16 श्रृंगार कर उन्हें गोपी के रूप में पूजा जाता है.
महादेव ने भी किया था महारास
मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण ने शरद पूर्णिमा के दिन गोपिकाओं के साथ महारास करने का निश्चय किया और जब उन्होंने अपनी बंसी बंजाई तो उनकी कामबीज नामक बंसी की धुन सुनकर सभी गोपिकाएं भागी-भागी मधुबन में आ गईं. इसी बीच उनकी बंसी की धुन को सुनकर तीनों लोक भी गुंजायमान हो गए और जब यह धुन महादेव ने सुनी तो वह भी मां पार्वती सहित धरती पर महारास में शामिल होने के लिए आ गए. हालांकि महादेव को गोपियों ने अंदर नहीं जाने दिया, क्योंकि गोपियों ने कहा कि हे भोलेनाथ यह महारास है और यहां श्रीकृष्ण के अलावा किसी पुरुष को प्रवेश में नहीं मिलेगा. इसके बाद महादेव ने महारास में शामिल होने के लिए गोपी को वेश धारण किया लेकिन जब वह महारास में शामिल होने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उन्हें पहचान लिया. इसके बाद उन्होंने महादेव को कहा कि आओ आओ मेरे गोपेश्वर नाथ. इसके बाद फिर श्रीकृष्ण ने भोलेबाबा के साथ मिलकर महारास किया।