टोलाघाट संगम का शिव मंदिर सामाजिक समरसता का केंद्र

हेमंत कश्यप/ जगदलपुर

“छत्तीसगढ़ का एक गढ़ है पाटन। यहां से महज छह किमी की दूरी पर खारुन नदी व सोनपुर नाला के संगम पर स्थित है 36 साल पुराना शिव मंदिर। यह स्थल सामाजिक समरसता के संगम के साथ-साथ बेहतर पिकनिक स्पॉट और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए चर्चित हो चुका है। 74 फीट ऊंचे इस मंदिर का निर्माण हर घर से एक-एक रुपए चंदा लेकर तथा श्रमदान कर 12 पाली निषाद समाज द्वारा 52 वर्षों में किया गया है। शिव मंदिर टोलाघाट को छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के नक्शे में शामिल करने यहां लक्ष्मण झूला बनाने का निर्णय लिया गया है।”
बारह पाली ने किया निर्माण
दुर्ग से 33 किमी दूर तहसील मुख्यालय पाटन है. पाटन से सिकोला होकर रायपुर जाने वाले मार्ग पर छह किमी दूर खारुन नदी और सोनपुर नाला के संगम स्थल पर ठकुराइन टोला नामक गांव है. ठकुराईन टोला, परसदा, आमदी, कन्हेरा, टेकारी, खट्टी, ढोर्रा, लमकेनी, सुपकोन्हा, सोनपुर, खमरिया, डंगनिया, पाटन, अटारी, खट्टी, बठेना, चंगोरी, चीचा, तुलसी, खुड़मुड़ी, पेण्ड्री और सेलूद सहित 22 गांवों में निषाद समाज के लगभग 700 परिवार निवासरत हैं. निषाद समाज इन गांवों में बसे स्वजातियों की एकजुटता को 12 पाली के नाम से संबोधित करता है. पूर्व जनपद सदस्य चिंताराम निषाद बताते हैं कि समाज के लोगों को रायपुर के हटकेश्वर शिवालय महादेव घाट रायपुर और राजिम के कुलेश्वर मंदिर से टोलाघाट में मंदिर बनाने की प्रेरणा बियानबे साल पहले 1930 में मिली थी.
तन-मन-धन से बना मंदिर
बताया जाता है कि वर्ष 1930 में निषाद समाज की पहली बैठक ठकुराईन, टोला में हुई थी. जिसमें यह निर्णय लिया गया था कि मंदिर निर्माण के लिए 22 गांवों में बसे निषाद समाज के लोग प्रत्येक घर से सालाना एक रुपये चंदा देंगे तथा प्रत्येक गांव क्रमबद्ध श्रमदान करेगा. इस निर्णय के बाद वर्ष 1931-32 में टोलाघाट स्थित संगम में मंदिर बनाने नींव डाली गई थी. समाज के पहले अध्यक्ष बुधराम निषाद (परसोदा), महामंत्री माहरूराम निषाद (खट्टी), कोषाध्यक्ष पचकौड़ निषाद (ठकुराइन टोला) थे. लगातार 52 वर्षों तक मंदिर निर्माण कार्य चलता रहा और फरवरी 1984 में पूर्ण हुआ. मंदिर निर्माण के बाद भी 12 पाली में बसे निषाद समाज के लोग प्रतिवर्ष 12 रुपये वार्षिक चंदा दे रहे हैं. इतना ही नहीं जिसके घर में विवाह होता है. वह भी मंदिर के लिए सौ रुपये अनिवार्य रूप से भेंट करता है. बताया गया कि मंदिर निर्माण से लेकर सामाजिक भवन निर्माण तक एक करोड़ पैंतालीस हज़ार रुपये से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है.
नदी तट विराजे देवी-देवता
वर्ष 1984 में संगम में शिव मंदिर पूर्ण होने के बाद खारून नदी के तटों पर विभिन्न भक्तों द्वारा देवी-देवताओं के 15 से अधिक मंदिरों का निर्माण करवाया गया है. कुर्मी समाज द्वारा राम मंदिर, यादव समाज ने कृष्ण मंदिर, गोपाल वर्मा द्वारा एकादश मंदिर, पंजाब सनातन सभा ने गुरुद्वारा, साहू समाज द्वारा कर्मामाता मंदिर एवं धर्मशाला. इसके अलावा श्रीधर निषाद (खट्टी), दशरथ साहू, फूलसिंह साहू, सुंदरलाल साहू, संतराम सिन्हा व हृदयराम द्वारा शिव मंदिर बनवाया गया है. इसके अलावा खेदुराम निषाद ने रामेश्वर, लीलाराम निषाद ने काली और भैरव, गोंड आदिवासी समाज द्वारा बूढ़ादेव मंदिर का निर्माण करवाया गया है. शिवालय के ठीक नीचे नंदीराज की विशाल प्रतिमा भी स्थापित की गई है. अन्य समाज के लोग भी शिव मंदिर संवर्धन हेतु स्वेच्छा से दान करते आ रहे हैं.
दीवानजी ने की थी प्राण प्रतिष्ठा
संगम में पहले बड़े बड़े शिलाखंडों से 24 फीट ऊंचा मजबूत चबूतरा बनाया गया. तत्पश्चात उस पर 50 फीट ऊंचा शिवालय तैयार किया गया है. विक्रम संवत 2040 की महाशिवरात्रि (वर्ष 1984) को इस शिवालय में छत्तीसगढ़ के संत कवि पवन दीवान ने शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की थी. इस मौके पर टोला घाट में पहला तीन दिवसीय महाशिवरात्रि मेला आयोजित किया गया था. अब इस मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित कर ली गई हैं. मंदिर का संचालन निषाद समाज 12 पाली द्वारा ही किया जा रहा है.
दर्शनीय है टोलाघाट
खारून नदी और सोनपुर नाला के संगम पर निर्मित शिव मंदिर लोगों को बरबस राजिम में महानदी-पैरी और सोंदूर नदी के
संगम पर दृढ़ता से खड़े कुलेश्वर मंदिर की याद दिलाता है. लोग टोलाघाट को दूसरा राजिम मानने लगे हैं. बारिश के दिनों में जब बाढ़ का पानी मंदिर के चबूतरे को डूबोने लगता है. तब ऐसा प्रतीक होता है जैसे कोई रथ पानी के ऊपर चल रहा है. लोग इस दृश्य को देख सम्मोहित रह जाते हैं. यहां प्रति वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला आयोजित किया जाता है. मेला व्यवस्था शिव मंदिर समिति करती है. टोलाघाट में प्रति वर्ष सैकड़ों प्रवासी पक्षी भी आते हैं. इन मेहमानों की सुरक्षा ग्रामीण स्वयं करते हैं. इन सब के चलते लोग बड़ी संख्या में पिकनिक मनाने यहां आते हैं. टोलाघाट आने के लिए रायपुर, दुर्ग, अभनपुर आदि स्थानों से पक्की सड़कें हैं. क्षेत्र के अधिकांश लोग राजिम न जाकर टोलाघाट संगम में अपने प्रियजनों की अस्थियां विसर्जित करने लगे हैं. टोलाघाट की प्रसिद्धि तेजी से बढ़ी है इसलिए शिव मंदिर टोला घाट प्रक्षेत्र को छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के नक्शे में शामिल कर इसे बेहतर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग भी उठ रही है.

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