भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का हिंदुओं के लिए बड़ा महत्व है। इस दिन बलराम जयंती मनाई जाती है। इस दिन हल छठ व्रत, ललही छठ, हलषष्ठी व्रत, रखा जाता है। आइये जानते हैं ललही छठ मुहूर्त और पूजा विधि क्या है –
जन्माष्टमी से दो दिन पहले ललही छठ व्रत संतान और परिवार के लोगों की शांति तरक्की और दीर्घायु के लिए रखा जाता है। यह व्रत पुत्रवती स्त्रियां करती हैं। मान्यताओं के अनुसार जो महिलाएं सच्चे मन से ये व्रत रखती हैं तो उसकी संतान दीर्घायु होती है, उसे तरक्की मिलती है। धन ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। पुत्र के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। आइये जानते हैं ललही छठ व्रत मुहूर्त, पूजा विधि
कब है ललही छठ
भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी का आरंभ 24 अगस्त दोपहर 12.41 बजे हो रहा है और षष्ठी तिथि का समापन 25 अगस्त को सुबह 10.24बजे हो रहा है। उदया तिथि में यह व्रत 25 अगस्त अर्थात कल दिन रविवार को रखा जाएगा। इस दिन बलराम, हल और ललही माता की पूजा की जाती है। यह निराहार व्रत रखा जाता है, इस दिन हल से बोई अन्न या सब्जी बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। भैस के दूध का सेवन किया जाता है। इस व्रत के दिन महिलाएं भैंस के दूध से बने दही और महुआ को पलाश के पत्ते पर खाती हैं।
- ललही छठ पूजा सामग्री
भैंस का दूध, घी, दही और गोबर
महुए का फल, फूल और पत्ते
ज्वार की धानी, ऐपण
मिट्टी के छोटे कुल्हड़
देवली छेवली. तालाब में उगा हुआ चावल
भुना हुआ चना, घी में भुना हुआ महुआ
लाल चंदन, मिट्टी का दीपक, सात प्रकार के अनाज
धान का लाजा, हल्दी, नया वस्त्र, जनेऊ और कुश
- ललही छठ व्रत विधि
- ललही छठ वाले दिन अर्थात कल दिन रविवार को सुबह जल्दी उठकर महुए की दातून से दांत साफ कर लें।
- इसके बाद स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद पूजा घर में भैंस के गोबर से दीवार पर छठ माता का चित्र बनाएं।
- साथ ही हल, सप्त ऋषि, पशु, किसान का भी चित्र बनाएं।
- अब घर में तैयार ऐपण से इन सभी की पूजा की जाती है।
- फिर चौकी पर एक कलश रखें। इसके बाद भगवान गणेश और माता पार्वती की प्रतिमा को स्थापित करें और उनकी विधि विधान पूजा करें।
- इसके बाद एक मिट्टी के कुल्हड़ में ज्वार की धानी और महुआ भरें।
- इसके बाद एक मटकी में देवली छेवली रखें। फिर हल छठ माता की पूजा करें।
- इसके बाद कुल्हड़ और मटकी की विधि विधान पूजा करें।
- फिर सात तरह के अनाज जैसे गेहूं, मक्का, जौ, अरहर, मूंग और धान चढ़ाएं।
- इसके बाद धूल के साथ भुने हुए चने चढ़ाएं।
- फिर आभूषण और हल्दी से रंगा हुआ वस्त्र भी चढ़ाएं।
- फिर भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन किया जाता है।
- अंत में छठ की कथा पढ़ें और माता पार्वती की आरती उतारें।
- पूजा स्थान पर ही बैठकर महुए के पत्ते पर महुए का फल और भैंस के दूध से निर्मित दही का सेवन करें।