शारदीय नवरात्रि: मां शैलपुत्री के इस पूजा विधि से मिलेगी सुख समृद्धि और ऐश्वर्या बरसेगी मां शैलपुत्री की कृपा

आचार्य पंडित सुधांशु तिवारी

प्रश्न कुण्डली विशेषज्ञ/ ज्योतिषाचार्य

इस साल नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर 2024 को होगी। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित किया जाता है और मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री राजा हिमालय की पुत्री हैं। इसलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल धारण करती हैं। यह वृषभ(बैल) पर विराजती हैं। चलिए नवरात्रि के पहले दिन पर मां शैलपुत्री की पूजाविधि, कलश स्थापना का मुहूर्त, मंत्र और विशेष भोग के बारे में जानते हैं।

मां शैलपुत्री का प्रिय भोग

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को गाय के दूध से बनी मिठाई का भोग लगा सकते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गाय के घी का भोग लगाने से रोगों से छुटकारा मिलता है। मां शैलपुत्री को दूध, शहद, घी, फल और नारियल का भोग लगाना बेहद शुभ माना जाता है।

इन मंत्रों का करें जाप

 नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए उनके बीज मंत्र ‘ऊँ शं शैलपुत्री दैव्ये नमः’ का जाप कर सकते हैं।

मां शैलपुत्री के पूजन का महत्व

जीवन के समस्त कष्ट क्लेश और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए एक पान के पत्ते पर लौंग सुपारी मिश्री रखकर मां शैलपुत्री को अर्पण करें. मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और कन्याओं को उत्तम वर मिलता है. नवरात्रि के प्रथम दिन उपासना में साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं. शैलपुत्री का पूजन करने से मूलाधार चक्र जागृत होता है और अनेक सिद्धियों की प्राप्ति होती है. मां शैलपुत्री की पूजा से आरोग्य की प्राप्ति होती है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है.

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त

ज्योतिषाचार्य पंडित सुधांशु तिवारी जी बताते हैं कि इस बार दिनांक 3 अक्टूबर 2024 दिन गुरुवार से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ होंगे. इस दिन यदि प्रतिपदा तिथि की बात करें तो 52 घड़ी दो पल अर्थात अगले दिन प्रात: 2:58 बजे तक प्रतिपदा तिथि रहेगी. यदि नक्षत्र की बात करें तो इस दिन हस्त नक्षत्र 23 घड़ी 27 पल अर्थात शाम 3:32 बजे तक है. इस दिन ऐंद्र नामक योग 55 घड़ी 36 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 4:24 बजे तक है. पंचांग के अनुसार, 3 अक्टूबर को घट स्थापना का मुहूर्त प्रातः 6 बजकर 15 मिनट से लेकर 7 बजकर 22 मिनट तक होगा. घटस्थापना के लिए कुल 1 घंटा 07 मिनट का समय मिलेगा. इसके अलावा, घट स्थापना अभिजीत मुहुर्त में भी किया जा सकता है. अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा, जिसके लिए 47 मिनट का समय मिलेगा.

इस विधि से करें मां शैलपुत्री का पूजन

मां शैलपुत्री के विग्रह या चित्र को लकड़ी के पटरे पर लाल या सफेद वस्त्र बिछाकर स्थापित करें. मां शैलपुत्री को सफेद वस्तु अति प्रिय है, इसलिए मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र या सफेद फूल अर्पण करें और सफेद बर्फी का भोग लगाएं. एक साबुत पान के पत्ते पर 27 फूलदार लौंग रखें. मां शैलपुत्री के सामने घी का दीपक जलाएं और एक सफेद आसन पर उत्तर दिशा में मुंह करके बैठें.

ॐ शैलपुत्रये नमः मंत्र का 108 बार जाप करें. जाप के बाद सारी लौंग को कलावे से बांधकर माला का स्वरूप दें. अपने मन की इच्छा बोलते हुए यह लौंग की माला मां शैलपुत्री को दोनों हाथों से अर्पण करें. ऐसा करने से आपको हर कार्य में सफलता मिलेगी पारिवारिक कलह हमेशा के लिए खत्म होंगे.

मां शैलपुत्री की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिमालयराज के यहां जब पुत्री का जन्म हुआ तो उनका नाम शैलपुत्री रखा गया. इनका वाहन वृषभ है, इसलिए इन्हें वृषारूढा के नाम से भी पुकारा जाता है. मां शैलपुत्री के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल होता हैं. उन्हें सती के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि वो सती मां का ही दूसरा रूप हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रण मिला लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया गया. तब भगवान शिव ने मां सती से कहा कि यज्ञ में सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया है लेकिन मुझे नहीं, ऐसे में मेरा वहां पर जाना सही नहीं है. माता सती का प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकर ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी. सती जब घर पहुंची तो उन्हें केवल अपनी मां से ही स्नेह मिला. उनकी बहनें व्यंग्य और उपहास करने लगीं जिसमें भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव था. दक्ष ने भी उन्हें अपमानजनक शब्द कहे जिससे मां सती बहुत क्रोधित हो गईं. अपने पति का अपमान वह सहन नहीं कर पाईं और योगाग्नि में जलकर खुद को भस्म कर लिया. इस दुख से व्यथित होकर भगवान शंकर ने यज्ञ का विध्वंस कर दिया.

मां सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं. इन्हें पार्वती और हेमवती के नाम से भी जाना जाता है. मां शैलपुत्री का विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ और वो भगवान शिव की अर्धांगिनी बनीं इसलिए नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें घी का भोग लगाया जाता है.

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