स्वावलंबी बने गांधी के ग्राम स्वराज्य की कल्पना

-पढ़ाई के साथ कुटीर उद्योग

बीकेमणि
बिना किसी की मदद के जीवन यापन कर लेना स्वावलंबन है। महात्मा गांधी ने चरखा चला कर स्वावलंबी बऩने की सीख दी। मुझे फख्र है कि आजादी के बाद भी चरखा आंदोलन चलता रहा। हमारे घर चरखा आया,जिसे घर के सभी सदस्य नित्य चलाने लगे और सात साल की आयु मे मै वस्त्र स्वावलंबी होगया। अपने पहऩे ओढ़ने बिछाने भर को मै सूत कात लेता था।
गांधी,नेहरु,विनोबा,मोरार जी भाई सहित सभी कांग्रेसी चरखा चलाते थे। खादी के वस्त्र ने लंकाशायर और मैनचेस्टर के मिलो के कपड़े खरीद पर रोक लगा दिये। विदेशी वस्त्रो की होली जलाने के बाद गांधी ने अंग्रेजो के बिजनेस पर इस तरह करारी चोट की थी।
घर घर कुटीर उद्योग चले हर हाथ को काम मिले यह लक्ष्य था। यही नही विनोबा के अनुसार न ई शिक्षा नीति मे तीन घंटा पुस्तकीय पढ़ाई और तीन घंटा कुटीर उद्योग,खेती और अन्य कौशल सीखना अनिवार्य होना चाहिए था। तब कोई बेरोजगार न होता। अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए सिर्फ नौकरी का भरोसा न होता‌। लोग अपने स्किल से रोजगार पैदा कर लेते। किंतु जमीनी सोच के अभाव मे हम मशीनी करण बढ़ाते गए और इ़ंसान को बेकार और बेरोजगार बनाते गए। सरकारें गांधी की भाषा समझने मे चूक गईं और आज बेरोजगारो की करोडो में संख्या हो गई।
आने वाली सरकारो ने अपनी जिम्मेदारी से भागते हुए पब्लिक सेक्टर को प्राईवैटाईजेशन कर के और अधिक शोषण की तरफ ढकेलने का काम किया।
सर्वधर्म समभाव के साथ सभी देशवासियो में एकता,देश प्रेम और आपसी सद्भाव कायम रखना भी देश के स्वायत्तता की रक्षा के लिए जरुरी था। उस भावना मे भी क्रमश: ह्रास होता गया।
राम राज्य की संकल्पना

गांधी के ग्राम स्वराज्य की पल्पना भी इसी का एक अंग था। उन्होंने आजाद भारत मे रामराज्य कायम करने केलिए लोकतंत्र का अभिनव प्रयोग सोचा था‌ । किंतु उनकी हत्या होने सै उनक विचार अधूरे रह गए।प्रजातंत्र कै पीछे रामराज्य का ही फार्मूला था किंतु राज तंत्र से अलग जनतंत्र मे वही रामराज्य कायम करने का उनका इरादा था।

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