गजब तेरी कारीगरी सरकार: दागदार अफसरों पर कार्यवाही से क्यों घबरा रहे आईजी जेल!

  • मैनपुरी, झांसी, प्रयागराज घटनाओं पर नहीं हुई कोई कार्यवाही
  • केंद्रीय कारागार बरेली से भी फरार हुआ सजायाफ्ता कैदी

राकेश यादव

लखनऊ। प्रदेश की जेलों में आत्महत्या, गलत रिहाई और फरारी जैसी घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। कार्यवाही नहीं होने से जेल अफसर बेलगाम हो गए है। प्रयागराज, मैनपुरी और झांसी में हुई घटनाओं को हुए करीब एक सप्ताह से अधिक का समय बीत चुका है। इसके बावजूद अभी तक किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई है। बरेली सेंट्रल जेल से सजायाफ्ता कैदी की फरारी ने आईजी जेल की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए है। विभाग में चर्चा है कि आईजी जेल दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने घबरा रहे है। यही वजह है कि अधिकारी बेलगाम हो गए हैं। चर्चा तो यहां तक हो रही कि आईजी जेल दबाव में कार्यवाही करने से डर रहे हैं।

बीते एक पखवारे के दौरान प्रदेश की जेलों में ताबड़तोड़ घटनाएं हुई। मऊ जेल में आत्महत्या के बाद झांसी जिला जेल में 48 घंटे के दौरान के महिला और पुरुष बंदी की मौत हुई। इन घटनाओं के एक दिन बाद ही मैनपुरी जेल में भी 48 घंटे के दौरान ही दो बंदियों की मौत हो गई। इससे पहले प्रयागराज की नवनिर्मित जिला जेल में अधिकारियों को लापरवाही से एक बंदी को बी वारंट होने के बाद भी जेल से रिहा कर दिया गया। विभाग में अभी इन घटनाओं की कवायद चल ही रही थी कि एक दिन पहले केंद्रीय कारागार बरेली से एक सजायाफ्ता कैदी सुरक्षाकर्मियों को चकमा देकर फरार हो गया।

सूत्रों का कहना है कि सिद्धार्थनगर जेल में डीएम और एसपी के निरीक्षण के एक बंदी के डिप्टी जेलर पर गांजा बिकवाने का आरोप लगाया। आईजी जेल ने इस मामले की एक डीआईजी से जांच कराकर जांच में दोषी पाए गए डिप्टी जेलर समेत चार कर्मियों को निलंबित कर दिया। मैनपुरी और झांसी जेल में दो दो बंदियों की मौत के बावजूद इसकी न तो कोई जांच कराई गई और न ही किसी दोषी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही की गई।

इसी प्रकार प्रयागराज जेल में जेल प्रशासन की लापरवाही से गलत रिहा हुए बंदी की आईजी जेल ने जेल अधीक्षक से घटना जांच कर रिपोर्ट भी मांगी। इन मामलों में शासन और मुख्यालय दो स्तरों से अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है।

घटनाओं के बाद कार्यवाही नहीं होने का यह मामला विभागीय अधिकारियों और कर्मियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। उधर कारागार मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारी इस मसले पर कुछ भी बोलने से बच रहे है।

चहेते अफसर पर नहीं होती कोई कार्यवाही

कारागार विभाग में चहेते अफसर पर कोई कार्यवाही नहीं होती है। यही वजह है कि पूर्व में लखनऊ जिला जेल पर तैनात वरिष्ठ अधीक्षक के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। करीब चार साल के कार्यकाल के दौरान जेल के गल्ला गोदाम में 35 लाख रुपए की नकद बरामदगी, जेल में बंद पूर्व मंत्री के मोबाइल से व्यापारी को धमकी देने, जेल में बंद बांग्लादेशी बंदियों की ढाका से फंडिंग, आधा दर्जन से अधिक बंदियों की मौत, दो कैदियों की फरारी, बंदियों की पिटाई से एक वार्डर की मौत, साइन सिटी की पावर ऑफ अटॉर्नी जैसी कई सनसनीखेज घटनाएं हुई।

इन घटनाओं की कई जांचों में निलंबन के साथ कड़ी कार्यवाही किए जाने की संस्तुति तक की गई। यही नहीं गृह सचिव की 12 जेल अधीक्षक निलम्बित किए जाने की रिपोर्ट में लखनऊ जेल के वरिष्ठ अधीक्षक को भी निलंबित किए जाने की संस्तुति की गई थी। इसके बावजूद इस अधिकारी के खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई।

कार्यवाही करने के बजाए शासन ने इस अधिकारी को तोहफे में केंद्रीय कारागार फतेहगढ़ में जरूर तैनात कर दिया। इस आरोपी अधिकारी ने कमाई के लिए सेंट्रल जेल को भी जिला जेल बना दिया है। इसके साथ ही ओपन जेल के निर्माण से कमाई का एक रास्ता जरूर खोल दिया है।

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