शाइन सिटी मामले में दोषी अधीक्षक को शासन ने बचाया!

  • तत्कालीन डीआईजी ने जांच में की थी निलंबन की संस्तुति
  • बांग्लादेशी बंदियों की फंडिंग वाली फाइल मुख्यालय में कैद

राकेश यादव
लखनऊ। प्रदेश के बहुचर्चित शाइन सिटी मामले में जेल से पावर ऑफ अटॉर्नी दिए जाने पर जेल अधीक्षक को दोषी ठहराया गया। तत्कालीन डीआईजी की जांच में उन्हें दोषी ठहराते हुए उनके निलंबन की संस्तुति की थी। शासन ने अधीक्षक को निलंबित करना तो दूर की बात उनके खिलाफ कोई कार्यवाही ही नहीं की। यही कुछ ऐसा ही हाल जेल में बांग्लादेशी बंदियों की फंडिंग मामले की एटीएस की जांच रिपोर्ट को भी कारागार मुख्यालय की फाइलों में कैद करा दिया गया। इस दोनों ही सनसनीखेज मामलों के दोषी अधीक्षक के खिलाफ अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। कार्यवाही करने के बजाए शासन इस दोषी अधीक्षक को प्रमोशन देने की तैयारी में जरूर लगा हुआ है।

राजधानी की जिला जेल में पूर्व वरिष्ठ अधीक्षक के लंबे कार्यकाल में घटनाओं और की भरमार रही। जेल के गल्ला गोदाम में 35 लाख रुपए की नगद धनराशि की बरामदगी, विदेशी कैदी की गलत रिहाई का, जेल में बांग्लादेशी बंदियों की ढाका से वाया कोलकाता होते हुए फंडिंग, शाइन सिटी की पावर ऑफ अटॉर्नी का रहा हो। प्रदेश के इन बहुचर्चित मामलों में कारागार मुख्यालय ने लखनऊ परिक्षेत्र के तत्कालीन दो डीआईजी से जांच कराई। जांचों में जांच अधिकारी ने इन्हें दोषी ठहराते हुए इनके निलंबन की संस्तुति करते हुए दोषी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का निर्देश भी दिया। ढाका से जेल में बंद बांग्लादेशी बंदियों के फंडिंग के मामले की जांच एटीएस ने की। करीब एक माह से अधिक समय तक हुए जांच दोषी ठहराए जाने के बाद भी न तो शासन और न ही कारागार मुख्यालय ने दोषी अधीक्षक के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाए फाइल को ही दबा दिया गया।

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सूत्रों का कहना है कि घटनाओं में दोषी पाए गए वरिष्ठ अधीक्षक को शासन अब दंड देने के बजाए प्रमोशन देने की तैयारी में है। जबकि शाइन सिटी मामले की जांच तत्कालीन परिक्षेत्र के डी आईजी से कराई गई थी। इस जांच में उन्हें दोषी ठहराते हुए उनके निलंबन की संस्तुति की गई थी। दोषी अधीक्षक ने मोटी रकम देकर इस सनसनीखेज मामले को रफदफा करा दिया। इसी प्रकार ढाका से बांग्लादेशी बंदियों की फंडिंग की जांच रिपोर्ट को भी सेटिंग गेटिंग करके कारागार मुख्यालय की फाइलों में दबवा दिया है। इस संबंध में आईजी जेल पीवी रामाशास्त्री एवम पीआरओ अंकित से बात करने का प्रयास किया गया तो दोनों का फोन ही नहीं उठा।

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शासन ने निलंबन की संस्तुति होने वाले दोषी अधीक्षक के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाए उसको तोहफा जरूर दे दिया। करीब चार साल तक जमे इस अधीक्षक को बीते स्थानांतरण सत्र के दौरान लखनऊ जिला जेल से केंद्रीय कारागार फतेहगढ़ पर तैनात कर दिया गया। शासन ने अधीक्षक को जेल के साथ ही साथ निर्माणाधीन ओपन जेल का नोडल अफसर नियुक्त कर कमाई का एक और तोहफा दे दिया है। यह मामला विभागीय अधिकारियों और कर्मियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे है। चर्चा है कि शासन और मुख्यालय में मजबूत पकड़ होने की वजह से अधीक्षक के खिलाफ कार्यवाही नहीं की जा रही है।

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