- इमरजेंसी में बगैर उपचार की ही वापस कर दिए जा रहे मरीज
- अस्पताल में पीड़ित को लगाने के लिए एनीमा नहीं
- आपातकाल में भी पर्चा बनवाए बगैर नहीं शुरू होता इलाज
राकेश यादव
लखनऊ। सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं को लेकर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के दावे भले ही कुछ हो लेकिन हकीकत ठीक इनके विपरीत देखने को मिली। लोकबंधु अस्पताल की इमरजेंसी का हाल बहाल है। यहां आपातकाल के लिए न तो पर्याप्त दवाएं है और न ही योग्य डॉक्टर रहते है। इमरजेंसी में बैठे जूनियर डॉक्टर सभी मरीजों को एक ही तरह की दवाएं और इंजेक्शन लगाकर औपचारिकताएं निभा रहे है। दिलचस्प बात यह देखने को मिली कि इस अस्पताल की इमरजेंसी में कितना भी गंभीर पीड़ित मरीज हो उसे एनिमा नहीं लगता है। इसके लिए उसे अगले दिन बुलाया जाता है। यही नहीं इमरजेंसी में आए हृदय रोग पीड़ित को बगैर प्राथमिक उपचार दिए ही वापस कर दिया जाता है।
वाकया सोमवार की देर रात साढ़े 11 बजे का है। इमजेंसी में प्रवेश करने पर मरीजों को भीड़ लगी हुई थी। दो डॉक्टरों की कुर्सियां खाली पड़ी थी। एक महिला सिविल ड्रेस (सिस्टर) में बैठी हुई थी। महिला से पूछने पर कि डॉक्टर कहा हैं तो उसका जवाब था काम बताइए डॉक्टर आ रहे हैं। पहले पर्चा बनवाइए फिर आइए। पर्चा बनवाकर आए ही थे कि दो डॉक्टर दो डॉक्टर टहलते हुए इमाजेंसी में प्रवेश करने लगे। एक डॉक्टर को रोका उनसे कहा कि मरीज की सीने में जलन और बड़ा दर्द हो रहा है। उन्होंने गेट पर ही पर्चे में बीपी नपवा कर आने को कहा। मरीज जलन और दर्द से तड़प रहा था। बीपी नपवा कर आने पर भी मरीज को उपचार देने के बजाए काफी देर तक खड़ा रखा गया।
इसी दौरान के व्हीलचेयर में एक गंभीर रूप से बीमार मरीज को लेकर करीब एक दर्जन लोग इमरजेंसी में घुसे। ईसीजी और पर्चा लेकर पहुंचे इन लोगों ने कहा कि मरीज को हार्ट अटक पड़ा है। इसी दौरान पसीने से लथपथ मरीज व्हीलचेयर से गिर गया। मरीज के गिरते ही दोनों जूनियर डॉक्टर उठे एक के हाथ में ईसीजी और दूसरा फोन करने में लग गया। दोनों ने कहा कि इन्हें लारी ले जाइए इनकी हालत नाजुक है। परिजनों ने कहा आप फर्स्ट एड दे दीजिए जिससे कोई दिक्कत न हो। इमरजेंसी में बैठी महिला एक ट्रे में दवाइयां ढूंढने लगी। इस दौरान कॉल पर आए डॉक्टर ने ट्रे से दवा निकालना शुरू किया तो उसमें गलत तरीके से दवाएं रखी थी। इस पर उसने महिला को फटकार भी लगाई। गंभीर रूप से बीमार मरीज को एम्बुलेंस से दूसरे अस्पताल के लिए रवाना कर दिया गया। इस दौरान इमरजेंसी में मौजूद सभी डॉक्टर और कर्मचारी इसी में लगे रहे। जबकि दूसरे मरीज दर्द से तड़पते ही रहे।
इमरजेंसी में ही मौजूद एक व्यक्ति पेट दर्द से पीड़ित महिला को दिखाने आया था। महिला से खड़ा तक नहीं हुआ जा रहा था। आनन फानन में उसे दर्द का इंजेक्शन लगवाया गया। इसके बाद भी जब उसे आराम नहीं मिला तो वह पुनः डॉक्टर के पास आया और कहा कि आराम नहीं मिल रहा है। इस पर डॉक्टर ने कहा कि दर्द का इंजेक्शन तो लगा दिया है जब तक टूल पास नहीं होगा तब तक दर्द बना रहेगा। इस पर उन्होंने मौजूद महिला से पूछा कि एनीमा लग सकता है तो महिला ने इनकार करते हुए कहा इसके लिए सुबह आना होगा। महिला को भर्ती तक नहीं किया गया। यह मामले प्रदेश के उप मुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री के उन दावों की पोल खोलते नजर आए कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों के उपचार की समुचित व्यवस्थाएं उपलब्ध है। इस दावे की हकीकत आपके सामने है।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी नहीं उठाते फोन
लोकबंधु अस्पताल की इमरजेंसी में व्याप्त अनियमिताओं के बारे में जब मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMS) राजीव कुमार दीक्षित से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो कई प्रयासों के बाद भी उनका फोन नहीं उठा। बताया गया है कि अस्पताल के डॉक्टर फोन ही नहीं उठाते हैं।