जयपुर से राजेन्द्र गुप्ता
हिंदू धर्म में भानु सप्तमी के दिन को भगवान सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित माना गया है। पंचांग के अनुसार अगर किसी महीने की सप्तमी तिथि रविवार के दिन पड़ती है, तो वो भानु सप्तमी कहलाती है। भानु सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। भगवान सूर्य देव को ऊर्जा, शक्ति और शौर्य का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में भानु सप्तमी पर व्रत रखने से और सूर्य देव की पूजा करने से साधक को स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
भानु सप्तमी की पूजा का शुभ मुहूर्त
इस महीने में सप्तमी तिथि की शुरुआत 21 दिसम्बर 2024, शनिवार को दिन में 12 बजकर 21 मिनट पर होगी और इसका समापन 22 दिसंबर को दोपहर 02 बजकर 31 मिनट पर होगा। ऐसे में 22 दिसंबर को सुबह अभिजीत मुहूर्त में पूजा करना शुभ होगा।
भानु सप्तमी की पूजा विधि
- भानु सप्तमी के दिन सुबह स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनें
- उसके बाद भगवान सूर्य देव को प्रणाम करें और व्रत का संकल्प लें।
- फिर साफ तांबे के लौटे में जल लेकर सूर्य देवता को अर्पित करें।
- इसके बाद कपूर घी का दिया जलाकर सूर्य देवता की आरती करें।
- इस दिन भगवान सूर्य देवता के मंत्रों का जाप भी करना चाहिए।
- इस दिन भोजन में फलाहार का ही प्रयोग करें नमक का सेवन ना करें।
भानु सप्तमी की तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार भानु सप्तमी का व्रत उस दिन रखा जाता है। जिस दिन किसी भी महीने की सप्तमी तिथि रविवार को पड़ती है। ऐसे में दिसंबर महीने में साल 2024 का आखिरी भानु सप्तमी का व्रत 22 दिसंबर 2024 को रविवार के दिन रखा जाएगा।
भानु सप्तमी का महत्व
शास्त्रों में भानु सप्तमी के दिन व्रत का बहुत ही खास महत्व है। ये दिन भगवान सूर्य देव की पूजा करने के लिए और उनकी कृपा पाने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। इस दिन सच्चे मन से सूर्य देव की पूजा करने से साधक के समस्त पापों का नाश होता है और अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है। निरोगी काया के लिए भी सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। भानु सप्तमी पर दान-पुण्य करने साधक के जीवन में बरकत आती है।
दूर होती हैं बीमारियां
भानु सप्तमी पर सूर्य को जल चढ़ाने से बुद्धि का विकास होता है और मानसिक शांति मिलती है और वह व्यक्ति कभी भी अंधा ,दरिद्र, दुखी नहीं रहता। सूर्य की पूजा करने से मनुष्य के सब रोग दूर हो जाते हैं। भानु सप्तमी के दिन दान करने से पुण्य बढ़ता है और लक्ष्मीजी भी प्रसन्न होती हैं। पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह व्रत करने से पिता और पुत्र में प्रेम बना रहता है। इस दिन सामर्थ्य के अनुसार गरीबों और ब्राह्मणों को दान देना चाहिए।