राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ। इस बार महाकुंभ मेले पर रवि योग का निर्माण होने जा रहा है। इस दिन इस योग का निर्माण सुबह सात बजकर 15 मिनट से होगा और सुबह 10 बजकर 38 मिनट इसका समापन होगा। इसी दिन भद्रावास योग का भी संयोग बन रहा है और इस योग में भगवान विष्णु की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, पौष पूर्णिमा 13 जनवरी को प्रात: काल 05 बजकर 03 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, पूर्णिमा तिथि का समापन 14 जनवरी को देर रात 03 बजकर 56 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। इसके लिए 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा मनाई जाएगी। इस दौरान पहला शाही स्नान 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के दिन किया जाएगा। वहीं, 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन दूसरा शाही स्नान किया जाएगा। इसके बाद 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन तीसरा शाही स्नान किया जाएगा। वहीं, 02 फरवरी को वसंत पंचमी के दिन चौथा शाही स्नान किया जाएगा। 12 फरवरी यानी माघ पूर्णिमा को पांचवा शाही स्नान किया जाएगा। जबकि, 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन आखिरी शाही स्नान किया जाएगा। वैदिक ज्योतिषियों का कहना है कि महाकुंभ मेले की तिथि ग्रहों और राशियों के अनुसार ही तय होती है। कुंभ मेले की तिथि निर्धारित करने के लिए सूर्य और बृहस्पति को महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रहों की स्थिति के आधार पर कुंभ का स्थान चुना जाता है। उनका कहना है कि जब बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं और सूर्य मकर राशि में विराजमान होते हैं, तो मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है। जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं, तब कुंभ का मेला हरिद्बार में लगता है। जिस समय सूर्य और बृहस्पति सिह राशि में विराजमान होते हैं, तो उस दौरान कुंभ का मेला महाराष्ष्ट्र के नासिक में लगता है। बृहस्पति के सिह राशि में और सूर्य के मेष राशि में होने पर उज्जैन में महाकुंभ होता है
सनातन धर्म में महाकुंभ मेला का विशेष महत्व है। पौष पूर्णिमा से महाकुंभ मेले की शुरुआत हो रही है। महाशिवरात्रि पर महाकुंभ मेला का समापन होगा। इस शुभ अवसर पर गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान किया जाता है। साथ ही पूजा, जप-तप एवं दान किया जाता है। कहते है पौष पूर्णिमा पर गंगा स्नान करने से शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है, जन्म-जन्मांतर में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा-भक्ति करने से घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। साधकों पर भगवान विष्णु की कृपा बरसती है। पौष पूर्णिमा के दिन ब्रह्म बेला में उठकर सबसे पहले भगवान विष्णु को प्रणाम करें। इसके बाद दिन की शुरुआत करें। दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अगर सुविधा है, तो गंगा स्नान करें। इस शुभ दिन से महाकुंभ मेले की शुरुआत होगी। अत: पौष पूर्णिमा पर गंगा स्नान करना परम फलदायी होगा। इसके बाद आचमन कर पीले रंग का नवीन वस्त्र धारण करें। अब भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा के समय विष्णु चालीसा का पाठ करें। पूजा के अंत में आरती कर सुख-समृद्धि की कामना करें। पूजा के बाद आर्थिक स्थिति के अनुसार दान करें।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के दौरान आदिकाल से ही हो गया था। जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर अमरता का अमृत उत्पन्न करने के लिए समुद्र मंथन किया था, उस समय सबसे पहले विष निकला था, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण किया था। उसके बाद जब अमृत निकला, तो उसे देवताओं ने ग्रहण किया था। काल भेद के कारण देवताओं के 12 दिन मनुष्य के 12 वर्षों के समान हैं, इसलिए महापर्व कुंभ हर स्थल पर 12 साल बाद लगता है। समुद्र मंथन के दौरान देवता और राक्षसों के बीच अमृत के घड़े के लिए लड़ाई 12 दिनों तक चली थी, जो मनुष्य के लिए 12 साल के बराबर माना जाता है। यही कारण है कि हर 12 साल बाद महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि इस अवधि के दौरान नदियां अमृत में बदल गई थीं, इसलिए दुनिया भर के कई तीर्थयात्री पवित्रता के सार में स्नान करने के लिए कुंभ मेले में आते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच 12 सालों तक संग्राम चला था। इस संग्राम में 12 स्थान पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। इसमें आठ जगह देवलोक और चार जगह पृथ्वी थी। जिन स्थानों पर यह अमृत गिरा था, वह प्रयागराज, हरिद्बार, उज्जैन और नासिक थे। जहां पर महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
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कुंभ को दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक मेले में से एक माना जाता है। 30-45 दिन तक चलने वाला महाकुंभ हिदुओं के लिए काफी मायने रखता है। भारत ही नहीं, दुनिया के हर कोने से लोग कुंभ मेले में हिस्सा लेने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि कुंभ मेले पर गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ का शाब्दिक अर्थ है घड़ा। ऋषियों के काल से ही कुंभ मेला लगता आ रहा है। देवगुरु बृहस्पति के साथ सूर्य का गोचर भ्रमण यानि सूर्य संक्राति का महत्व स्नान, दान के लिए उपयुक्त माना है। इसी प्रकार जब सूर्य के सानिध्य में आकाश मार्ग में भ्रमण करता हुआ चन्द्रमा आता है, तो यह अपने आप में पृथ्वी पर एक विशेष उर्ज़ा का संचार करता है। इस दौरान पवित्र नदियों के जल में उस विशेष उर्ज़ा को महसूस किया जा सकता है। धार्मिक ग्रंथों में स्नान, दान, जप, तप के कुछ विशेष नियम वर्णित हैं, जिनका विधि-विधान पूर्वक पालन करने से आकाश में उपस्थित ग्रहों की उर्ज़ा मानव का कल्याण करती है। प्रयागराज में कुंभ का आयोजन वृष राशि में देवगुरु बृहस्पति का संचार, मकर राशि में सूर्य की स्थिति और अमावस्या के दिन चन्द्रमा का मकर राशि में सूर्य से मिलन है। इससे पहले 2013 में महाकुम्भ का संजोग बना था।
अमृत कलश की रक्षा के समय जिन-जिन राशियों पर जो-जो ग्रह संचरण कर रहे थे, कलश की रक्षा करने वाले वही चन्द्र, सूर्य, गुरु आदि ग्रह जब उसी अवस्था में संचरण करते हैं, उस समय कुम्भ पर्व का योग बनता है। यानि जब फिर से वैसे-वैसे संजोग ग्रहों के योग के रूप में बनते हैं, तभी कुम्भ महापर्व का आयोजन होता है। कुंभ कथाओं में शनि का भी योगदान कुम्भ कलश की रक्षा के लिए माना गया है। धर्मशास्त्रों में वर्णन आता है…
मकरे च दिवानाथे वृषराशिगते गुरौ।
प्रयागे कुम्भयोगौ वै माघमासे विधुक्षये।।
कुंभ मेला, दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण आयोजन है। यह उन लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, जो स्वयं को पापों से शुद्ध करने और आध्यात्मिक मुक्ति पाने के लिए पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। जैसे-जैसे तीर्थ यात्रा 13 जनवरी से 26 फरवरी तक प्रयागराज की अपनी यात्रा की तैयारी कर रहे हैं, वे न केवल आध्यात्मिक अनुष्ठानों की श्रृंखला में शामिल होंगे, बल्कि ऐसी यात्रा पर भी निकलेंगे जो भौतिक, सांस्कृतिक और यहां तक कि आध्यात्मिक सीमाओं से भी परे है। इसमें जाति, पंथ या लिग का भेदभाव दूर कर लाखों लोग शामिल होते हैं। यहां आने वाले प्राथमिक आगंतुकों में प्रमुख रूप से अखाड़ों और आश्रमों, धार्मिक संगठनों के लोग होते हैं, या वे लोग जो भिक्षा पर निर्भर रहते हैं। कुंभ मेला देश में एक केंद्रीय आध्यात्मिक भूमिका निभाता है, जो आम भारतीयों पर एक जादुई प्रभाव डालता है। यह घटना खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, कर्मकांड की परंपराओं, और सामाजिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और ज्ञान को अत्यंत समृद्ध बनाती है।
यह मेला भारत में चार अलग-अलग शहरों में आयोजित होता है, इसमें विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियां शामिल होती हैं, जिससे यह सांस्कृतिक रूप से विविध त्योहार बन जाता है। इस दौरान प्राचीन धार्मिक पांडुलिपियों, मौखिक परंपराओं, ऐतिहासिक यात्रा वृत्तांतों और प्रख्यात इतिहासकारों द्बारा निर्मित ग्रंथों के माध्यम से परंपरा से संबंधित ज्ञान और कौशल दुनियाभर में पहुंचाए जाते हैं। हालांकि, आश्रमों और अखाड़ों में साधुओं के शिक्षक-छात्र के बीच का संबंध कुंभ मेले से संबंधित ज्ञान और कौशल प्रदान करने और सुरक्षित रखने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है। महाकुंभ मेला अनुष्ठानों का जीवंत मिश्रण है, जिसके केंद्र में पवित्र स्नान समारोह होता है। यह गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के संगम पर होता है, जिसे त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है।
लाखों भक्त इस महत्वपूर्ण अनुष्ठान को करने के लिए इकट्ठा होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन पवित्र जल में डुबकी लगाने से पापों से मुक्ति मिलती है, व्यक्तियों और उनके पूर्वजों दोनों को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है, और अंतत: उन्हें मोक्ष, या आध्यात्मिक मुक्ति की ओर मार्गदर्शन मिलता है। इस प्राथमिक अनुष्ठान के साथ-साथ, तीर्थयात्री नदी के किनारे पूजा में संलग्न होते हैं और श्रद्धेय साधुओं एवं संतों के नेतृत्व में आध्यात्मिक प्रवचनों में भाग लेते हैं। भक्तों को प्रयागराज महाकुंभ के दौरान किसी भी समय स्नान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, लेकिन पौष पूर्णिमा से शुरू होने वाली कुछ तिथियां विशेष रूप से शुभ होती हैं। इन दिनों, संतों, उनके अनुयायियों और विभिन्न अखाड़ों (आध्यात्मिक क्रम में) के सदस्यों का शानदार जुलूस निकलता है। वे शाही स्नान नामक भव्य अनुष्ठान में भाग लेते हैं, जिसे ’राजयोगी स्नान’ भी कहा जाता है। यह महाकुंभ मेले की शुरुआत का प्रतीक है। यह परंपरा है कि आस्थावानों को उन संतों के संचित गुणों और आध्यात्मिक ऊर्ज़ा से अतिरिक्त आशीर्वाद मिलता है, जिन्होंने उनसे पहले स्नान किया है। यह इस सदियों पुराने उत्सव के सांप्रदायिक सार को मजबूत करता है। कुंभ मेले के दौरान, समारोहों की जीवंत श्रृंखला सामने आती है। उनमें से प्रमुख है हाथी की पीठ पर, घोड़ों और रथों पर भव्य प्रदर्शन के साथ अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस जिसे ’पेशवाई’ कहा जाता है। इसके साथ-साथ, कई सांस्कृतिक कार्यक्रम लाखों तीर्थयात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं, जो इस राजसी त्योहार को देखने और इसमें भाग लेने के लिए इकट्ठा होते हैं।
ज्योतिषाचार्य नम्रता दुबे का कहना है कि महाकुंभ न केवल धार्मिक पर्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और एकता का प्रतीक है। खास यह है कि महाकुंभ के दौरान गंगाजल में औषधीय गुण बढ़ जाते हैं। इसका वैज्ञानिक अध्ययन भी किया गया है, जो इस पर्व की महिमा को और बढ़ाता है। 2025 का महाकुंभ आने वाले समय में नई पीढ़ी के लिए धर्म और संस्कृति के महत्व को समझाने का एक महत्वपूर्ण अवसर बनेगा।
टेंट सिटी : नैनी के अरैल तट पर, झूंसी व परेड ग्राउंड में टेंट सिटी बसाई जा रही है। यहां पर्यटकों के रहने के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं वाले स्विस कॉटेज होंगे। इनका काम काफी तेजी से चल रहा है। इनकी क्षमता बढ़ाने का भी प्रयास किया जा रहा है। अब पर्यटन विभाग नैनी के अरैल में जमीन से 18 फीट ऊपर डोम सिटी तैयार करने जा रहा है। यहां से पर्यटक महाकुंभ का भव्य नजारा देख सकेंगे। खास यह कि 1400 स्क्वायर फीट एरिया में बसने वाली डोम सिटी में 200 लोगों के रहने समेत कई आधुनिक सुविधाएं होंगी। लग्जरी होटल की जैसी सुविधा वाली डोम सिटी को बनाने के लिए पर्यटन विभाग की ओर से टेंडर के बाद की प्रक्रिया पूरी की जा रही है। इसके लिए किराया आदि संबंधित फर्म ही तय करेगी। विभागीय अधिकारियों के अनुसार महाकुंभ एक तरफ आस्था का केंद्र तो है ही यह आकर्षण का भी केंद्र होता है। नागा-अघोरी, साधू-संतों को तो लोग करीब से देखने-जानने आते ही हैं। दिन ढलने के बाद यहां का नजारा कुछ अलग ही होता है। कई किलोमीटर तक तंबुओं का यह शहर चकाचौंध रोशनी से भी लोगों को आकर्षित करता है। इसी को ध्यान में रखकर डोम सिटी का बनाई जा रही है। जो पर्यटकों को आकर्षित व रोमांचित भी करेगी।
कुंभ की गाथा सुनाएंगे चर्चित कलाकार
देश के चर्चित कलाकार महाकुंभ में कुंभ की गाथा सुनाएंगे। दिग्गज एक्टर आशुतोष राणा ’हमारे राम’ पर अपनी प्रस्तुति देंगे। कुम्भ के सफरनामे को कोरियोग्राफ के जरिए प्रस्तुत किया जाएगा। महाभारत शो के साथ ही विभिन्न रामलीलाओं का भी आयोजन होगा। इन प्रस्तुतियों के लिए भी देश के दिग्गज और नामचीन सितारे महाकुम्भ मेला क्षेत्र में पहुंचेंगे और श्रद्धालुओं का मनोरंजन करेंगे। फ़ेमस बॉलीवुड एक्टर आशुतोष राणा ’हमारे राम’ पर अपनी प्रस्तुति देंगे तो एक्ट्रेस और सांसद हेमामालिनी गंगा अवतरण पर कला का परिचय देंगी। महाभारत सीरियल फ़ेम पुनीत इस्सर महाभारत की अपनी प्रस्तुति से लोगों को प्रचीन भारत के युग में ले जाएंगे।
यह सभी कार्यक्रम गंगा पंडाल में आयोजित किए जाएंगे। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग द्बारा इसका आयोजन किया जाएगा। आशुतोष राणा 25 जनवरी को गंगा पंडाल में हमारे राम की प्रस्तुति देंगे। इन नाट्य शो में वह रावण का किरदार निभाते हैं। वहीं 26 जनवरी को बॉलीवुड की लीजेंड एक्ट्रेस और मथुरा से सांसद हेमामालिनी गंगा अवतरण नृत्य नाटिका पर अपनी परफॉर्मेंस देंगी। वहीं 8 फरवरी को भोजपुरी और बॉलीवुड एक्टर व गोरखपुर के सांसद रवि किशन शिव तांडव की प्रस्तुति देंगे, जबकि 21 फरवरी को पुनीत इस्सर महाभारत शो का मंचन करेंगे।
इस बार भी होगी पुष्प वर्षा
महाकुभ में पिछले वर्ष की तरह इस बार भी स्नान पर्वों के दौरान साधु-संतों और श्रद्धालुओं पर आकाश से पुष्पवर्षा की तैयारी है। इससे पहले भी कुंभ, माघ मेला समेत कई धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान श्रद्धालुओं पर पुष्प वर्षा का कार्यक्रम होता रहा है। देखा जाएं ता उत्तर प्रदेश में कई धार्मिक आयोजनों के दौरान हेलिकॉप्टर से श्रद्धालुओं, साधु और संतों पर पुष्प वर्षा की जाती रही है। इसके अनुरूप महाकुंभ 2025 में भी इस परंपरा का निर्वहन किया जाएगा। सामान्यत: संगम नोज पर पुष्प वर्षा किए जाने की परंपरा रही है, लेकिन इस बार चूंकि अधिक संख्या में श्रद्धालु रहेंगे तो ऐसे में संगम नोज के साथ-साथ अन्य सभी घाटों पर भी पुष्प वर्षा को लेकर चर्चा चल रही है।
पुष्प वर्षा के माध्यम से आस्था को नमन किया जाता रहा है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में श्रद्धालुओं पर पुष्प वर्षा सनातन संस्कृति व आस्था को नमन करने का प्रतीक बन गया है। 2019 कुंभ के दौरान भी मौनी अमावस्या के दिन संगम तट पर आस्था की डुबकी लगाने पहुंचे श्रद्धालुओं पर पुष्प वर्षा की गई थी। उस समय सोशल मीडिया पर यूपी में पुष्प वर्षा हैशटैग काफी ट्रेंड हुआ था।