पं. सीताराम त्रिपाठी के श्लाघ्य सार्वभौमिक जीवन सोपान

डॉ. कन्हैया त्रिपाठी
डॉ. कन्हैया त्रिपाठी

व्यक्ति अपने जीवन में कर्मों और विचारों से ही जाना जाता है। सभी अपना-अपना सत्य जीने के आग्रही हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो शाश्वत सत्य को जीते हैं। मेरे पिताश्री पंडित सीताराम त्रिपाठी शाश्वत सत्य को जीते थे और अपने मन-कर्म और वचन से भी वह शाश्वत सत्य को आत्मसात कर कोई भी विचार प्रकट करते थे। किसी का अहित न हो। कोई दुखी न हो। किसी के अंतस को हमसे पीड़ा न पहुंचे। किसी के जीवन में अँधेरा न हो। सबकी मदद हो। सभी सुखी रहें। हमारे पास कोई आया है तो खाली हाथ न जाए। उसके दुःख-सुख के भागीदार बनने के लिए वह सदैव जैसे पहले से ही तैयार बैठे हों।

समाज में हर तरह के लोग हैं। सबकी चिंता करने वाले भी लोग बहुत से परेशानियों का सामना करते हैं। अपने काम निकलने के बाद धोखा देने वाले लोगों की संख्या कभी कम नहीं रही। पिताश्री के जीवन में भी धोखा देने वाले लोगों की संख्या कोई कम न थी। वह जिन लोगों की मदद किये उनमें से बिड़ले ही लोग होंगे जो उनके एहसान को मानते रहे। इन सबके बावजूद सबके लिए सार्वभौमिक मूल्यों के साथ चिंता करना उनकी अपनी विशेषता थी। समय के सापेक्ष बेन रहना और अपने कर्त्तव्यबोध से विचलित न होना सबके बस की बात नहीं होती। धोखा देने वाले लोगों के भीतर भी वह करुणा भाव से सज्जन व्यक्ति की खोज करते रहते थे। यद्यपि उस व्यक्ति ने हजारों छल-छद्म करके उनके सम्मुख बैठकर एक नई घात के लिए बैठा हो, उसे भी उन्होंने बहुत सहजता से लिया। छद्मी व्यक्ति को भी कभी भी अपने पास आने से मना नहीं किया।

छोटे स्तर पर गाँव के लोग के बारे में उनकी यह धारणा तो थी ही कि आज जो हमारे लिए गलत कर रहा है, उसे अपने भीतर सुधार के लिए हम स्पेश प्रदान करें। लेकिन कहना नहीं चाहिए गाँव के भी छोटे से दायरे के लोग बहुत से तिलिस्म रचते हैं। वे स्वार्थी-तत्व बन बैठे-बैठे गला काट देते हैं। गाँव इसीलिए आज भी देश की प्रतिस्पर्धा से बाहर है क्योंकि वह अपने पास अच्छे लोगों को बचा नहीं पाता है। शहर उन्हें आकर्षित करते हैं और शहर एक दिन उन्हें गाँव से लील जाते हैं और उन्हें शहर का बना देते हैं। विकास के पैमाने भी छद्मी लोग अपने हिसाब से नापते हैं, उसमें अच्छा सोचने वाला व्यक्ति हमेशा उनके षड्यंत्र का शिकार होता है। पिताश्री के जीवन में हमने देखा कि उन्हें जिन लोगों ने परेशान किया, वह कभी भी अपना आत्मबल नहीं खोये और सतत उनके प्रति भी प्रेम की भावना से ही पेश आए। यह प्रेम ही तो उनके जीवन के शाश्वत मूल्य थे।

मनुष्य अपने जीवन में प्रेम ही खोकर नफ़रत के वशीभूत हो जाता है। इससे जो बचे वह शाश्वत सत्य का आग्रही बन जाता है। एक व्यक्ति के लिए झूठ न बोलना कितना बड़ा अनुष्ठान है। बिना अनुशासित हुए कोई व्यक्ति सत्य न बोल सकता है और न ही सत्य का बर्ताव कर सकता है। पिताश्री ने सत्य ही बोला सदैव। कभी मिथ्याचार करते हुए जीवन में मैंने उन्हें नहीं सुना। वट-वृक्ष सा आदर्श जीवन उन्होंने जिया। जिसे छाँव की ज़रूरत लगी, सबने आकर उनसे अपने जीवन-सत्यार्थ को समझने और राह ढूँढने का यत्न किया। उनके इस विशेषता को देखकर कभी कभी हमें हैरत होती थी कि सब अपने जीवन के सुख-दुःख कहने और उससे उबरने की तरकीब आखिर पिताश्री से पूछने क्यों आते हैं? वे अपने जीवन में बदलाव के लिए प्रेरणा-स्रोत के रूप में इनसे क्यों मंत्रणा लेते हैं? अब समझ आता है कि पिताश्री का सत्य जा अनुष्ठान उन्हें सबसे अलग करता था और इसलिए लोगों के भीतर यह विश्वास रहता था कि हम इनके पास यदि जाएंगे तो उनसे हमें सही राह मिलेगी। सही सलाह मिलेगी। हमारे जीवन में रौशनी व उम्मीद की खोई हुई किरण वापस आएगी। अब समझ आता है कि सत्य की रौशनी हमेशा सबके लिए प्रेरणा का स्रोत होती है और लोग अपने जीवन को सत्य के दीपक से रौशनी प्राप्तकर सजाना व संवारना चाहते हैं। कोई भी व्यक्ति सायाश ही किसी के पास जाता है।

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नैतिक मूल्यों से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। लोगों के भीतर यह भावना थी कि कोई भी विभेद कम से कम पंडित जी नहीं रखते हैं। अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता, अपने जीवन मूल्य, सादगी, प्रेम, सत्यनिष्ठा, प्रेम और सबके लिए आदर के भाव उनमें बहुत घना था। गरीबी-अमीरी के मापदंड से किसी के विषय में कोई वह राय नहीं रखते थे। सत्य को सत्य कहते थे लेकिन उन्होंने किसी का दिल कभी नहीं दुखाया। कई प्रसंग में वह मुझसे कह बैठते थे ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय, यह हमारे संतों ने कहा है, इसे ध्यान रखना चाहिए। उनकी सिखावन आज स्मरण आती है तो यह समझ आता है की वह ऐसा क्यों कहते थे। मेरे स्वयं की स्पष्टवादिता उन्हें अंदर से तो अच्छी लगती थी लेकिन वह यह जानते थे कि समाज में कोई भी सही बात सुनने को राजी नहीं होता है। ऐसे में हमारे वचन से किसी को कष्ट नहीं पहुँचे, ऐसी ही कोशिश करनी चाहिए, ऐसा वह हमसे अपेक्षा रखते थे। शास्त्रों की विशिष्ट सैद्धांतिकी और शिष्टाचार को वह सदैव अपने जीवन में लेकर चलने के आदी थे, और उनकी यह कोशिश रहती थी कि हम सभी भाई-बहन कुछ ऐसे ही जीवन जिएं जो समाज और देश में लोगों के लिए स्मरणीय बन जाए। लोगों के लिए मिसाल बने। एक पिता का श्रेष्ठ, उद्दात्त और गरिमामय होना बहुत ही आसान कैसे हो सकता है, यह उनके जीवन से सीखने को मिलता है।

यह प्रश्न आज के समय में बहुत जटिल सा लग सकता है कि पिता को पुत्र के लिए गर्व होना चाहिए या पुत्र को पिता के लिए? लेकिन शानदार जीवन जब एक साधक की तरह पिता जीता है तो वह केवल अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए गर्व का विषय नहीं होता, अपितु वह समाज में सबके लिए उदहारण के रूप में सदैव स्मरण किया जाता है। इसमें कोई दो मत नहीं कि हम सभी को देश और विश्व में पहचान देने वाले कोई और नहीं, पिताश्री ही हैं लेकिन वह अपने क्षेत्र में इसलिए सबके बीच प्रशंसित हैं क्योंकि उन्होंने अपने जीवन के संघर्षों को सामने रखकर हमारे लक्ष्य पाने में कोई कमी नहीं रखी। उन्होंने स्थापित किया और प्रत्येक समय सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। वह किसी भी प्रकार के अवगुण को बर्दास्त नहीं करते थे। वह यह जानते थे कि एक जीवन में सदा गुण ही व्यक्ति के जीवन की व्याख्या होता है। जीवन की व्याख्या देने वाले पिता हमेशा से गर्व का स्थान बना ही लेते हैं।

कम संसाधनों और जरुरत के चीजों को ही जीवन का हिस्सा बनाया। संग्रह की प्रवृत्ति न उन्होंने कभी रखी, न उनकी इच्छा थी कि संग्रह व इच्छा के हम अधीन हों। शाश्वत सत्य के आग्रही होने का व्रत, बर्ताव और जीवन-शैली इसलिए भी हम उनमें देख पाते हैं क्योंकि वह इच्छाओं के अधीन स्वयं को नहीं रखे। इच्छाओं के अधीन रहने वाले लोगों के जीवन को वह अधम का जीवन मानते थे। वह ईश्वर प्रदत्त जीवन जीने के साधन में विश्वास करते थे। सबमें ईश्वर का अंश देखते थे। इसलिए उन्होंने सबका आदर किया। उन्होंने कभी अनादर के भाव से किसी को देखा ही नहीं।

संयमी, अपरिग्रही और सत्यनिष्ठ लोग ही सहज जीवन के सूत्र स्थापित कर पाते हैं। ऐसे ही लोग उद्दात्त और सार्वभौमिक सत्य के लिए उदहारण बन पाते हैं। आज भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं पर उनके सहज सत्य सा जीवन पंडित सीताराम त्रिपाठी को अपने सबके बीच विद्यमान पाता है। आज उनकी पुण्यतिथि पर स्मरण करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि।

लेखक : भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति जी के विशेष कार्य अधिकारी रह चुके हैं। आप केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब में चेयर प्रोफेसर, अहिंसा आयोग व अहिंसक सभ्यता के पैरोकार हैं।

 

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