भागवत को क्यों दी जा रही है धर्म गुरु नहीं बनने की नसीहत

   संजय सक्सेना

लखनऊ । अपना देश एक रंग बिरंगे गुलदस्ते की तरह है। अनेकता में एकता जिसकी शक्ति है। यहां विभिन्न धर्म और उनकी अलग-अलग पूजा पद्धति देखने को मिलती है तो देश का सामाजिक और जातीय ताना बाना भी काफी बंटा हुआ हुआ है। ऐसे में किसी भी मुद्दे पर किसी तरह की प्रतिक्रिया देने से पूर्व सौ बार उसके बारे में सोचना पड़ता है।वर्ना देश का माहौल खराब होने या जनता की भावनाएं भड़कने में देरी नहीं लगती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का एक बयान इसका सबसे ताजा उदाहरण है। वैसे यह भी सच्चाई है कि भागवत के बयान पर पहली बार हो-हल्ला नहीं मच रहा है।इससे पूर्व भी भागवत के आरक्षण, ब्राह्मणों,डीएनए से जुड़े बयानों पर हंगामा खड़ा हो चुका है। अब संघ प्रमुख मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद वाले बयान पर साधु-संतों की ओर से आपत्ति सामने आई है। देश में हिंदू संतों की प्रमुख संस्था अखिल भारतीय संत समिति ने RSS प्रमुख मोहन भागवत की हर जगह मंदिर तलाशने और इसके सहारे कुछ लोगों का हिंदुओं का नेता बनने की कोशिश वाली टिप्पणी पर आपत्ति जताई है। समिति ने कहा है कि विभिन्न स्थलों पर मंदिर-मस्जिद विवाद को उठाने वाले नेताओं को अपने दायरे में रहना चाहिए। समिति के महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि मंदिर-मस्जिद का मुद्दा धार्मिक है और इसका फैसला धर्माचार्यों की ओर से किया जाना चाहिए। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इस मुद्दे को सांस्कृतिक संगठन RSS के प्रमुख मोहन भागवत को छोड़ देना चाहिए।

स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि जब धर्म का विषय उठेगा तो उसे धर्माचार्य तय करेंगे। जब यह धर्माचार्य तय करेंगे तो उसे संघ भी स्वीकार करेगा और विश्व हिंदू परिषद भी। स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा कि मोहन भागवत की अतीत में इसी तरह की टिप्पणियों के बावजूद 56 नए स्थानों पर मंदिर पाए गए हैं, जो मंदिर-मस्जिद मुद्दों में रुचि और कार्रवाई का संकेत देते हैं। जितेंद्रानंद महाराज ने जोर देकर कहा कि धार्मिक संगठन जनता की भावनाओं के अनुसार कार्य करते हैं। इन समूहों के कार्य उन लोगों की मान्यताओं और भावनाओं से आकार लेते हैं जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं, न कि केवल राजनीतिक प्रेरणाओं से। स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती की यह टिप्पणी जगद्गुरु रामभद्राचार्य की ओर से मोहन भागवत से असहमति व्यक्त करने के एक दिन बाद आई है। बता दें जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने अपने बयान में कहा था कि मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मोहन भागवत हमारे अनुशासनकर्ता नहीं हैं, बल्कि हम हैं। साधू संत तो भागवत के बयान से नाराज हैं हीं इसके साथ-साथ यह भी पहली बार देखने को मिल रहा है कि RSS प्रमुख को ‘परिवार‘ के भीतर भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले द्वारका में द्वारका शारदा पीठम और बद्रीनाथ में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती संघ परिवार के खिलाफ रुख अपनाते थे, लेकिन उन्हें कांग्रेस की विचारधारा से प्रभावित बता कर उनके बयानों को खारिज कर दिया जाता था।

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बहरहाल, जगद्गुरु रामभद्राचार्य के साथ-साथ अन्य हिंदू धार्मिक गुरु RSS के सुर में सुर मिलाने को तैयार नहीं हैं। उनका मानना है कि संघ को आस्था के मामलों में धार्मिक हस्तियों के नेतृत्व का सम्मान करना चाहिए। उधर,राजनीति के जानकारों का कहना है कि यह स्थिति धार्मिक मामलों में RSS की भूमिका और प्रभाव को लेकर हिंदू धार्मिक समुदाय के भीतर संभावित झगड़े को भी दर्शाती है।रामभद्राचार्य ने कहा कि संभल में जो कुछ भी हो रहा था वह वास्तव में बुरा था। उन्होंने कहा कि इस मामले में सकारात्मक पक्ष यह है कि चीजें हिंदुओं के पक्ष में सामने आ रही हैं। हम इसे अदालतों, मतपत्रों और जनता के समर्थन से सुरक्षित करेंगे। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ किए गए अत्याचारों पर भी चिंता व्यक्त की।

बता दें हाल ही में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उभरने पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने लोगों को ऐसे मुद्दों को न उठाने की सलाह दी। मोहन भागवत ने कहा कि मंदिर-मस्जिद विवादों को उछाल कर और सांप्रदायिक विभाजन फैलाकर कोई भी हिंदुओं का नेता नहीं बन सकता। उनका यह बयान हिंदू दक्षिणपंथी समूहों की ओर से देश भर में विभिन्न अदालतों में दशकों पुरानी मस्जिदों पर दावे जैसी मांग के बाद आया है। इस पर हिंदूवादी संगठलनों का दावा है कि ये पुरानी मस्जिदें, मंदिर स्थलों पर बनाई गई थीं। इन मस्जिदों में जौनपुर की अटाला और संभल की शाही जामा मस्जिद भी शामिल है, जिस मामले में हाल ही में हिंसा हुई थी। 24 नवंबर को भड़की हिंसा में पांच लोग मारे गए थे।

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उधर,RSS प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर राजनीति भी थमने का नाम नहीं ले रही है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि RSS प्रमुख मोहन भागवत का मंदिर-मस्जिद विवाद न उठाने का बयान लोगों को गुमराह करने के उद्देश्य से था। यह RSS की खतरनाक कार्यप्रणाली को दर्शाता है, क्योंकि इसके नेता जो कहते हैं उसके ठीक विपरीत करते हैं। वे ऐसे मुद्दे उठाने वालों का समर्थन करते हैं। वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए RSS प्रमुख को घेरा। उन्होंने कहा कि अगर RSS प्रमुख ईमानदार हैं तो उन्हें सार्वजनिक रूप से घोषणा करनी चाहिए कि भविष्य में संघ ऐसे नेताओं का समर्थन कभी नहीं करेगा जो सामाजिक सद्भाव को खतरे में डालते हैं। जयराम ने कहा कि RSS प्रमुख ऐसा नहीं कहेंगे, क्योंकि मंदिर-मस्जिद का मुद्दा RSS के इशारे पर हो रहा है। कई मामलों में, जो लोग ऐसे विभाजनकारी मुद्दों को भड़काते हैं और दंगे करवाते हैं, उनके RSS से संबंध होते हैं।

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