मतांतरण गैंग के जाल में आसानी से फंस जाता है दलित-पिछड़ा हिन्दू

संजय सक्सेना

देश में अवैध मतांतरण के सिंडीकेट की जड़े बेहद गहरी रही हैं। मतांतरण को बढ़ावा देने के लिये अरब और कई मुस्लिम देशों से भी हवाला आदि के माध्यम से मोटी रकम आती है। यह बात कोई दबी छिपी नहीं है,लेकिन इसके खिलाफ बने कानून कभी उतने कारगार नहीं रहे जिससे विदेशों से मतांतरण के लिये होने वाली फंडिंग को रोका जा सके।यही वजह थी लखनऊ की एटीएस-एनआईए कोर्ट ने अवैध तरीके से मतांतरण के खिलाफ सुनवाई पूरी की तो यहां भी इस बात का खुलासा हुआ कि विदेशी फंडिंग से मतांतरण कराने वाले के हाथ काफी लम्बे हैं। बहरहाल, एटीएस और NIA  की अदालत ने विदेशी पैसे के सहारे अवैध मतांतरण कराने वाले 12 लोगों को उम्रकैद और चार लोगों को दस-दस साल की सजा सुनाई है, तो निश्चित रूप से इसका कुछ प्रभाव देखने को मिलेगा। प्रदेश में सुनियोजित ढंग से लोगों को प्रलोभन देकर मतांतरित करने के कई मामले प्रकाश में आ चुके हैं और जब एटीएस ने पहली बार एक साथ इतने लोगों को सजा दिलाने में सफलता हासिल की है, तो निश्चित रूप से ऐसी गतिविधियों में कमी आएगी। जिन लोगों को सजा हुई है, वे गिरोह के रूप में लोगों को बरगलाकर हिंदू से मुस्लिम बना रहे थे और उनके निशाने पर वह वंचित एवं दलित वर्ग था जो आसानी से थोड़ी बेहतर जिंदगी के लालच में उनके चंगुल में फंस जाता है। ऐसे लोगों का कितना ब्रेनवॉश कर दिया जाता है, इसे इस बात से ही समझा जा सकता है कि हिंदू से मुस्लिम बने युवाओं ने भी पूरी सक्रियता से मतांतरण में भाग लेना शुरू कर दिया था।

बहरहाल, मतांतरण के लिए विदेशी फंडिंग की बात पहले भी सामने आती रही है। एटीएस और एनआईए को अब इस पूरे नेटवर्क को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए। मतांतरण को लेकर योगी सरकार पहले से ही काफी सख्त है और इसीलिए राज्य में विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 लाया गया है। लोगों को अपनी इच्छा से कोई भी धर्म अपनाने का अधिकार है, लेकिन यदि इसके पीछे जबरदस्ती या लोभ हो तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। हर धर्म की अपनी मान्यताएं हैं और उनके प्रति लोगों की आस्था जुड़ी होती है, तो इसके पीछे कई कारण होते हैं। धर्म की जड़ों को उखाड़ना आसान नहीं है, लेकिन कुत्सित मानसिकता वाले ऐसा करने का प्रयास करते हैं। मतांतरण के कुत्सित प्रयास में लगे लोग वस्तुतः समाज में असंतुलन पैदा करना चाहते हैं, इसलिए इस पर हर तरह से सख्ती की जानी चाहिए। उक्त मामले में यह भी पता चला है कि दिल्ली की एनजीओ के माध्यम से अवैध मतांतरण को बड़े पैमाने पर कराने के लिए विदेशी फंडिंग का गहरा जाल बुना गया था। एनजीओ संचालक मु.उमर गौतम व मेरठ के मौलाना कलीम सिद्दीकी ने मिलकर बड़े पैमाने पर विदेश से रकम जुटाई थी और उसे गिरोह के सदस्यों तक पहुंचाया जाता था, जिससे संगठित रूप से मूक-बधिर बच्चों, महिलाओं व कमजोर आय वर्ग के लोगों को डरा-धमका कर अथवा प्रलोभन देकर मतांतरण कराया जा सके।

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हिंदू धर्म के लोगों को मुस्लिम समुदाय में शामिल कराने के इस खेल में हवाला के जरिये भी करोड़ों रुपये एजेंटों तक पहुंचाए गए थे। इस बेहद संगीन मामले में एटीएस की प्रभावी पैरवी का परिणाम रहा कि 11 सितंबर 2024 को उमर व कलीम समेत 16 आरोपितों को सजा सुनाई जा सकी। गौरतलब हो, अवैध मातांरण के षड्यंत्र की परतें जून, 2021 में पहली बार तक खुली थीं, जब गाजियाबाद के डासना स्थित शिव शक्ति धाम देवी मंदिर परिसर में खतरनाक इरादों से घुसने का प्रयास कर रहे दो संदिग्ध युवक विपुल विजय वर्गीय व कासिफ पकड़े गए थे। दोनों से पूछताछ में सामने आया था कि मूलरूप से नागपुर निवासी विपुल विजय वर्गीय कुछ वर्ष पूर्व मुस्लिम धर्म अपना चुका है और उसने गाजियाबाद में एक मुस्लिम युवती से शादी की है। कासिफ उसका साला था। दोनों से पूछताछ में ही विपुल का मतांतरण कराने वाले बाटला हाउस, जामिया नगर दिल्ली निवासी मोहम्मद उमर गौतम तथा ग्राम जोगाबाई जामिया नगर, दिल्ली निवासी मुफ्ती काजी जहांगीर आलम कासमी के नाम सामने आए थे।

विपुल का मतांतरण उमर ने कराया था और उसका नाम रमजान रख लिया था। उमर सी-2, जागाबाई एक्सटेंशन, जामिया दिल्ली में अपने अन्य सहयोगियों के साथ इस्लामिक दावा सेंटर नाम की संस्था का संचालन करता था। उमर के साथ इस खेल में मेरठ के मौलाना कलीम की बेहद सक्रिय भूमिका थी। कलीम जामिया ईमाम वलीउल्ला ट्रस्ट का संचालन करता था, जिसके खाते में फंडिंग होती थी। एटीएस की जांच में सामने आया था कि कलीम की ट्रेस्ट के डेढ़ करोड़ रुपये एकमुश्त बहरीन से भेजे गए थे। यह भी सामने आया था कि जिन संगठनों ने उमर गौतम की संस्था अल-हसन एजूकेशन एंड वेलफेयर फाउंडेशन को फंडिंग की थी, उन्हीं श्रोतों से मौलाना करीम की ट्रस्ट को भी फंडिंग की जा रही थी।

मुजफ्फरनगर के ग्राम फूलत निवासी मौलाना कलीम सिद्दीकी अधिकतर दिल्ली में रहकर अपनी गतिविधियां संचालित करता था। कलीम की संस्था के खाते में 20 करोड़ रुपये से अधिक की फंडिंग के साक्ष्य मिले थे। उमर गौतम का सक्रिय साथी डा.फराज शाह को एटीएस ने महाराष्ट्र के यवतमाल से गिरफ्तार किया था। फराज ने एमबीबीएस किया था और अपने घर के पास ही क्लीनिक का संचालन करता था और अवैध मतांतरण से जुड़ी गतिविधियों में लिप्त था। इस संबंध में डीजीपी उत्तर प्रदेश प्रशांत कुमार ने कहा कि एटीएस-एनआईए न्यायालय का निर्णय अवैध मतांतरण व विघटनकारी तत्वों के विरुद्ध यूपी एटीएस की प्रभावी कार्रवाई तथा गुणवत्तापूर्ण विवेचना पर मुहर लगाता है। अवैध मतांतरण सिंडिकेट के 16 आरोपियों को दोषी करार दिए जाने से स्पष्ट हो गया है कि उत्तर प्रदेश में असामाजिक तत्वों व राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के लिए कोई जगह नहीं है।

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