इह संसारे बहु दुस्तारे, दुख सुख का मिश्रण है संसार

  • दुखो के कांटे से सुख रूपी पुष्प का चयन करें
  • ईश्वर के दोनो अनुग्रह

बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

जीवन मे सुख दुख दोनो के क्रमिक अनुभव मिलते है़ं,क्यों कि संसार इन दोनो का सम्मिश्रण है। संसार का नाम ही है #दुखालयमशाश्वतम् । दु:खालय और अशाश्वत। जो चिरस्थाई न हो और दु:ख का आलय (घर) हो। तो यहां और मिलेगा क्या??
हमे दुख मे से सुख खोज निकालना है। कांटेदार पौधे से फूल चुनना है। गुलाब की तरह फूल मिल जाय तो प्रभु के चरणो मे चढ़ा देना है। संसार रूपी बगीचे से फूल नित्य चुन लेना है और प्रभु के चरणो मे अर्पित करना है। दुख मे से सुख चुनना पड़ता है। Pleasure in pain यही है। ब्रह्मचारी हो, गृहस्थाश्रमी हो या संन्यासी दुख मे सुख की अनुभूति ही करता है। भगवदर्पित चित्तवृत्ति से ही यह संभव होपाता है। अन्यथा रोना ही पल पल पड़ेगा। अध्यात्म ही है जिसके कारण पीड़ा का अनुभव नहीं होता है,क्यों कि हम उसे भी प्रभु का दिया प्रसाद मानते हैं। प्रसादस्तु प्रसन्नता। मतलब यह निकलता है कि- सुख मिला तो हरि की कृपा.. दुख मिला तो हरि की इच्छा।

भगवदर्पित होने का आनंद ही अनोखा है। यह हमे टूट कर बिखरने नहीं देता। यह हमे प्रभु से जोडं कर पुष्ट कर देता है। वे लोग कितने निरीह है जो ईश्वर कौ नही मानते स्वयं मे घुट घुट कर जीते मरते है। यदि वह सिर्फ साकार होता तो किसी एक देश मे होता,एक स्थान पर होता तो उसे पाने के लिए साधन ढूंढ़ना पड़ता। पर वह निर्गुण निराकार सर्व व्यापक है,इसलिए जहां है वही से सिर्फ स्मरण कर लेना है‌। “दिल के आईने मे है तस्वीरे यार,जब जरा गर्दन झुकाई देख ली‌।”

कुंती ने दुख मांगा

हैरत की बात है,जब कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती से वरदान मांगने को कहा तो उसने दुख मांगा। क्योंकि दुख हो तो भगवान याद आते है,कष्ट हुआ तो कृष्ण मिला। विजय मिला..राज्य वापस मिला तो कृष्ण जाने को तत्पर हुआ। वह कहती है

“विपदः सन्तु नः शाश्वत तत्र तत्र जगद्गुरो।

भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम्’।।

अर्थात्, ‘हे जगदगुरु! हमारे जीवन में हमेशा विपत्तियां आती रहें, क्योंकि विपत्तियों में ही आपके दर्शन होते हैं और आपके दर्शन हो जाने पर फिर जन्म-मृत्यु के चक्कर में नहीं आना पड़ता’।

दूसरे शब्दों मे-

मैं चाहता हूं कि ये सभी विपत्तियां बार-बार घटित हों, ताकि हम आपको बार-बार देख सकें। आपको देखने का अर्थ है कि हम बार-बार जन्म और मृत्यु नहीं देखेंगे। जिस दुःख में श्रीकृष्ण का स्मरण हो वह सुख है, उसे दुःख कैसे कहेँ।

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