द्रमुक का ताजा फितूर है कि संस्कृत से ज्यादा पुरातन तमिल है। सनातन को अद्यतन साबित करने वाले को तमिलनाडु के विघटनकारी युवा द्रविड़ मुख्यमंत्री मुथु करुणानिधि स्टालिन ने बेहिचक ऐलान किया है कि जो भी सिंधु घाटी (अब पाकिस्तान) की प्राचीन लिपि का तमिल भाषा से नाता सिद्ध करेगा उसे दस लाख डॉलर (87 करोड रुपए) के पुरस्कार से नवाजा जाएगा। इस मुख्यमंत्री का दावा है कि तमिल, न कि संस्कृत भारत की प्राचीनतम भाषा और लिपि है। तमिल गौरव और सम्मान हेतु एक और जंग। क्या गुजरेगी नरेंद्र दामोदरदास मोदी पर जो अपने लोकसभाई चुनाव क्षेत्र काशी से घोषणा करके आए हैं तमिल संगम का मंच से कि तमिल और संस्कृत भारत को जोड़ती है न कि काटती है। स्टालिन का दृढ़ है, आग्रह है कि द्रविड़ और सिंधु सभ्यताएं बहने हैं। तमिल संस्कृत से पुरानी है।
सिंधु घाटी की लिपि जो ईसा के ढाई हजार वर्ष की पूर्व है, संस्कृत से भी प्राचीन है। द्रमुक मुख्यमंत्री का दावा है कि तमिल से द्रमुक का साम्य है। द्रमुक काबीना में पुरातत्व विषय के मंत्री थेंगम ने तो दावा किया है कि तमिल लिपि सिंधु सभ्यता के समकालीन है। सिंधु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित छोटे-छोटे संकेतों के समूह को सिन्धु लिपि कहते हैं। इसे सैंधवी लिपि और हड़प्पा लिपि भी कहते हैं। यह लिपि सिन्धु सभ्यता के समय (26वीं शताब्दी ईसापूर्व से 20वीं शताब्दी ईसापूर्व तक) परिपक्व रूप धारण कर चुकी थी। इसको अभी तक समझा नहीं जा पाया है (यद्यपि बहुत से दावे किये जाते रहे हैं।) उससे सम्बन्धित भाषा अज्ञात है इसलिये इस लिपि को समझने में विशेष कठिनाई आ रही है। हड़प्पा लिपि (सिन्धु लिपि) का सर्वाधिक पुराना नमूना 1853ई. में मिला था। भारत में लेखन 3300 ईसा पूर्व का है। सबसे पहले की लिपि सिन्धु (इंडस स्क्रिप्ट) थी। उसके पश्चात ब्राह्मी लिपि आई।
सिंधु घाटी के इतिहास तथा लिपि पर निश्चय शोध कन्नड़भाषी, पुरातत्व वेत्ता डॉ. शिकारीपुरा रंगनाथ राव कर चुके हैं। शिमोगा जिले के सागर तालुक के आनंदपुरम ग्राम के वासी डॉ. राव आस्थावान विप्र परिवार में जन्मे मैसूर विश्वविद्यालय में प्राचार्य थे। हरप्पन सभ्यता के वे निष्णात थे। उन्होंने गुजरात के ऐतिहासिक क्षेत्र लोथल और द्वारका के हरप्पन इलाकों की खोज की थी।उनसे मेरी भेंट 1976 के जून माह में एलोरा पर्वत गुफाओं के मंदिरों में हुई थी। उनका दावा बड़ा विश्वसनीय था कि हड़प्पा सभ्यता का एक बड़ा अनूठापन रहा। आज भी बिना डॉ. रंगनाथ राव का नाम लिए बिना सिंधु घाटी का उल्लेख नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा था : “कई लोग तर्क देते थे कि यह कल्पना की उपज है कि आर्यन और संस्कृत भारत की उत्पत्ति हैं। जॉन मार्शल की खोज ने इस धारणा को पूरी तरह बदल दिया। उनका तर्क कि सिंधु घाटी सभ्यता आर्यन सभ्यता से पहले की है और सिंधु घाटी में बोली जाने वाली भाषा द्रविड़ हो सकती है। उससे और बल मिला है।”
स्तालिन ने कहा कि सिंधु घाटी में बैल थे जो द्रविड़ प्रतीक थे। “बैल सिंधु घाटी से तमिलनाडु के अलंगनल्लूर (जहाँ जल्लीकट्टू खेल आयोजित होता है) तक फैल गए हैं। प्राचीन तमिल साहित्य में बैलों को वश में करने की बात कही गई है और इसे कोलेरु तझुवुथल कहा जाता है। सिंधु घाटी के प्रतीकों में भी बैलों की छवियाँ हैं जो उन्हें वश में करने की कोशिश करने वाले युवाओं को उठा ले जाते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि तमिलनाडु भाग्यशाली है कि उसके पास वित्त एवं पुरातत्व मंत्री थंगम थेन्नारसु और वित्त सचिव टी. उदयचंद्रन हैं, जिन्हें इस विषय की गहन जानकारी है। सिंधु सभ्यता की खोज के शताब्दी अवसर पर तमिलनाडु में तीन दिवसीय अंततराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया है। इस मौके पर स्टालिन ने कहा, सिंधु घाटी सभ्यता काफी समृद्ध थी। हालांकि, इसकी लिपि को सुलझाने का प्रयास कर रहे विद्वानों को आज तक सफलता नहीं मिली है। उन्होंने कहा कि लिपी को डिकोड करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करने के लिए, पहेली को सुलझाने वाले व्यक्तियों या संगठनों को दस लाख अमेरिकी डॉलर का पुरस्कार दिया जाएगा।
सिंधु सभ्यता सबसे पुरानी सभ्यताओं में एक है। यह अपनी शहरी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि, इस लिपी को समझने में अभी तक कामयाबी नहीं मिली है। इस पुरातत्व ज्ञान का राजनीतिकरण स्टालिन के पिता करुणानिधि ने किया था। अन्ना द्रमुक पार्टी के संस्थापक सीएन अन्नादुरई ने ही प्रारंभ की थी। उन्होंने काबीना के वरिष्ठ मंत्रियों के संस्कृत निष्ठ नाम तक बदल डाले थे। एक मंत्री थे सोमसुंदरम। उनको तमिल शब्दों में बदलकर मत्थी अलंघन कहा गया। दूसरे मंत्री थे नेदुनचेद्रियन उनका मूल नाम था नरसिम्हा अवतार।