उमेश चन्द्र त्रिपाठी
नई दिल्ली। भारत सरकार ने नेपाल को दो लाख टन गेहूं निर्यात करने की अनुमति दी है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने बताया है कि यह निर्यात नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट्स लिमिटेड (NCEL) के जरिये किया जाएगा। NCEL ऐसी कंपनी है जिसकी प्रमोटर सहकारी समितियां हैं। बावजूद इसके कि घरेलू सप्लाई बनाए रखने के लिए गेहूं के निर्यात पर बैन है। लेकिन, कुछ देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने और अनुरोध पर सरकार ने गेहूं भेजने की अनुमति दी है।
बीते कुछ समय में नेपाल के कई कदम चीन की तरफदारी वाले रहे हैं। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट उन्हीं में से एक है। हाल में बीजिंग की यात्रा के दौरान नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली ने बीआरआई फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर किए। भले नेपाल माने नहीं। लेकिन, धीमे-धीमे वह चीन के चंगुल में फंसता जा रहा है।
प्रतिबंध के बावजूद गेहूं का निर्यात
नेपाल को गेहूं निर्यात का फैसला शनिवार को लिया गया। गेहूं का निर्यात तो बैन है, लेकिन कुछ देशों को जरूरत पड़ने पर सरकार इजाजत दे देती है। नेपाल को भी इसीलिए गेहूं भेजा जा रहा है। रविवार को नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत और चीन के साथ देश के रिश्तों को लेकर अहम बात कही थी। उन्होंने अपनी चीन यात्रा और यूएन महासभा में PM मोदी से मुलाकात को भारत-चीन संबंधों को मजबूत करने वाला बताया था। ओली ने कहा कि इन यात्राओं और बैठकों से पड़ोसी देशों से रिश्ते बेहतर हुए हैं।
नेपाल में चीन का दखल
नेपाल में चीन का दखल हाल के कुछ समय में बढ़ा है। चीन नेपाल में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है। इसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, वन विलेज वन फ्रेंड अभियान, चाइना स्टडी सेंटर, और डिजिटल वॉलेट अलीपे और वीचैट का प्रचार शामिल है। साथ ही, नेपाल के नए नक्शे में उत्तराखंड के कुछ इलाकों को शामिल करने और लीपुलेख सड़क विवाद जैसे मुद्दे भारत के लिए चिंता का विषय हैं। नेपाल में भूकंप के दौरान चीन को भारत से ज्यादा तरजीह देने की बात भी सामने आई थी। ये सब घटनाएं भारत और नेपाल के बीच दूरी बढ़ाने की चीन की साजिश मानी जाती हैं। भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता रहा है।