लखनऊ जेल में 1200 से 3600 रुपए हुई मशक्कत!

  • मंहगाई की तरह जेल में भी हुई सुविधाओं के दामों में बढ़ोत्तरी
  • अलाव और विशेष चाय भी बनी अफसरों की आमदनी का जरिया
  • कमाई का कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाह रहे अफसर

लखनऊ। तू डाल डाल तो मैं पात पात… यह कहावत राजधानी की जिला जेल के अधिकारियों पर एकदम फिट बैठती है। जेल में सत्ता परिवर्तन होने के बाद भ्रष्टाचार घटने के बजाए और बढ़ गया है। पूर्व में इस जेल में मशक्कत के लिए 2600 रुपए प्रति बंदी लिया जाता था। यह अब बढ़कर 3600 प्रति बंदी हो गया है। यही नहीं जेल बंदियों को ठंड से बचाने के लिए जलने वाले अलाव की लकड़ी मनमाफिक दामों में खरीदकर अलाव जलाने की खानापूर्ति की जा रही है। हकीकत यह है कि जेल में अलाव सिर्फ कागजों पर जल रहे है। कुछ ऐसा ही हाल विशेष चाय का भी है। जेल अधिकारी कमाई का कोई मौका छोड़ना नहीं चाह रहे है। इस जेल में लूट मची हुई है।

मिली जानकारी के मुताबिक जेल में आने वाले नए बंदी से अच्छी बैरेक और काम नहीं करने के एवज में मशक्कत (हाते) के नाम पर अवैध वसूली की जाती है। पांच साल पहले हाते के लिए 1200 रुपए प्रति बंदी वसूल किए जाते थे। पूर्व जेल अधीक्षक के कार्यकाल में इसको बढ़ाकर 2600 कर दिया था। जेल में सत्ता परिवर्तन होने के बाद अब इसको बढ़ाकर 3600 रुपए प्रति बंदी कर दिया है। महंगाई की तरह जेल में भी बंदियों से सुविधा के नाम पर होने वाली वसूली को भी बढ़ा दिया गया है। जेल प्रशासन की इस अवैध वसूली से बंदी काफी त्रस्त है। मजे की बात यह है कि विभाग में इन बंदियों का दर्द सुनने वाला कोई नहीं है। इसी वजह से बंदियों को अधिकारियों की अवैध वसूली और उत्पीड़न से जूझना पड़ रहा है।

बताया गया है कि बंदियों को कड़ाके की ठंड से बचाने के लिए शासन ने व्यापक इंतजाम किए है। शासन ने ठंड में बंदियों को विशेष चाय वितरित किए जाने की व्यवस्था सुनिश्चित की है। इसके साथ ही जेल के अंदर बैरकों के बाहर अलाव जलने के भी निर्देश दिए गए। अधिकारियों की कमाई के चलते शासन की यह व्यवस्था कागजों में ही सिमट कर रह गई है। सूत्रों का कहना है कि अलाव के नाम में जेल प्रशासन के अधिकारी मनमाने दामों पर लकड़ी जरूर खरीद रहे है लेकिन अलाव जलाने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही की जा रही है। इसी प्रकार ठंड में मिलने वाली विशेष चाय के नाम पर बंदियों उबला हुआ पानी परोसा जा रहा है। इसमें चीनी और दूध नाममात्र का ही होता है। इस चाय को पीने के बजाए बंदी कैंटीन में मनमाने दाम पर बिक रही चाय का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि जेल में बंदियों के पास कड़ाके की ठंड से बचने के पर्याप्त संख्या में कंबल तक उपलब्ध नहीं हैं। उधर इस संबंध में जब लखनऊ परिक्षेत्र के डीआईजी जेल रामधनी से बात करने का प्रयास किया गया तो कई प्रयासों के बाद भी उनका फोन नहीं उठा।

जांच हो तो दूध का दूध पानी सामने आ जाएगा

राजधानी की जेल में कमाई के चक्कर में अनाप शनाप दामों में दैनिक उपयोग की वस्तुओं की खरीद फरोख्त की जा रही है। अधिकारियों और ठेकेदारों की साठ गांठ से सरकारी राजस्व का चुना लगाया जा रहा है। इसकी जांच कराई जाए तो दूध का दूध पानी सामने आ जाएगा। सूत्रों की माने तो जेल में नौ की लकड़ी नब्बे रुपए में खरीदी जा रही है। इस सच की पुष्टि जेल में दैनिक इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के बिलों से आसानी से की जा सकती है। दिलचस्प बात यह है कि विभाग के आला अफसर इस मसले पर कुछ भी बोलने से बचते नजर आए।

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