सपा नहीं इंडिया गठबंधन के गले का फांस बना मिल्कीपुर विधान सभा का उपचुनाव?

उमेश चन्द्र त्रिपाठी

लखनऊ।  सपा को यूपी के मिल्कीपुर विधानसभा का उपचुनाव अयोध्या लोकसभा सीट की जीत का जश्न बरकार रखने के लिए जीतना जरूरी है। यद्यपि की उपचुनावों के ज्यादातर परिणाम सत्ता पक्ष के ही हक में आने की “परंपरा” रही है जैसा कि हाल ही नौ विधानसभा सीटों के उपचुनावों में सात पर भाजपा को जीत मिली। मिल्कीपुर विधानसभा सीट का उपचुनाव न्यायालय में विचाराधीन एक वाद के चलते नहीं हो पाया था। या यूं कहिए कि यहां का चुनाव एक सोची समझी रणनीति के तहत नहीं कराया गया। मिल्कीपुर विधानसभा चुनाव अयोध्या लोकसभा सीट का ही हिस्सा है जहां सपा के अवधेश प्रसाद विधायक जो अयोध्या से सपा उम्मीदवार के रूप में लोकसभा के लिए चुने गए। कहना न होगा कि अयोध्या में भगवान राम के मंदिर का निर्माण और बालक राम की बहुप्रचारित प्राण प्रतिष्ठा के पीछे पूरे देश में राम मय माहौल बनाकर 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने की भाजपा की रणनीति रही है।

लेकिन यूपी में ही भाजपा की मंशा पर पानी फिर गया। यहां भाजपा को सर्वाधिक 43 सीटों पर हार जाना पड़ा जिसमें एक अयोध्या की सीट भी है। अयोध्या की हार निश्चय ही भाजपा के लिए बड़ा झटका है जिसकी टीस से वह अभी भी नहीं उबर पाई है। हालाकि जैसे नौ उपचुनावों में से भाजपा सात पर जीत गई उसी तरह वह एक सीट मिल्कीपुर की भी जीत जाय तो कोई बड़ी बात नही। लेकिन वह अयोध्या लोकसभा क्षेत्र के इस विधानसभा सीट को जीत कर अयोध्या की हार का बदला लेना चाहती है लेकिन क्या पूरी सरकार उतारकर एक विधानसभा सीट जीत लेने से अयोध्या की हार की भरपाई हो पाएगी? आम चुनाव और उपचुनाव के परिणामों के अंतर को जनता समझ रही है।

हाल के उपचुनावों में सपा को सभी दलों का समर्थन हासिल था लेकिन सभा हो या चुनाव प्रचार समर्थक दल का कोई नेता नहीं दिखा। मिल्कीपुर विधानसभा के उपचुनाव के मायने अलग है। यह लड़ाई केवल सपा की नहीं है। यह लड़ाई समूचे इंडिया गठबंधन के साख की है। कांग्रेस को इसे दिल्ली विधानसभा चुनाव के इतर देखना होगा जहां सपा आम आदमी पार्टी के साथ खड़ी है। कांग्रेस ने अन्य उपचुनावों की भांति यहां भी सपा को समर्थन करने का ऐलान किया है लेकिन ऐलान से क्या होता है? इस तरह देखें तो यहां बसपा भी चुनाव मैदान में नहीं है लेकिन इस सीट से आजाद समाज पार्टी ने अपना उम्मीदवार खड़ा कर सपा को बसपा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की विसात बिछा दी है। ऐसे में गठबंधन दलों खासकर कांग्रेस को यहां सपा को अकेले छोड़ देना नुकसानदेह हो सकता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में व्यस्त कांग्रेस के बड़े नेता न सही कम से कम यूपी कांग्रेस के नेताओं को चाहिए कि मिल्कीपुर में सपा के साथ उतर जायें। क्योंकि मिल्कीपुर यदि हारे तो इसका असर कांग्रेस पर भी पड़ना तय है जो यूपी में सपा के ही साथ लड़कर यहां 6 सीटें जीत पाई और जहां हारी वहां भी सम्मानजनक वोट हासिल की।

इस क्षेत्र के जातीय अंकगणित पर गौर करें तो पता चलता है कि बैकवर्ड, दलित और मुस्लिम बाहुल्य यह सीट कभी कम्युनिस्ट का गढ़ रहा है। बाद में यह क्षेत्र सुरक्षित हो गया। उसके बाद के चुनावों में सपा और भाजपा का बराबर बराबर कब्जा होता आया है। हाल के चुनाव में देखें तो 2012 में सपा के अवधेश प्रसाद तो 2017 में भाजपा के गोरखनाथ बाबा और 2022 में फिर सपा के अवधेश प्रसाद चुनाव जीते थे। इस उपचुनाव में गोरखनाथ बाबा को भाजपा ने टिकट नहीं दिया इस वजह से उनके  लोगों में नाराजगी है।सपा से विधायक से सांसद हुए अवधेश प्रसाद के पुत्र अजीत प्रसाद सपा उम्मीदवार हैं जो पासी हैं वहीं भाजपा और आजाद समाज पार्टी के उम्मीदवार भी पासी समाज से ही हैं। यहां पासी बिरादरी के वोटों की संख्या 50 हजार है। जाहिर है तीनों दलों के पासी उम्मीदवारों का पहला झपट्टा इसी समाज के वोटरों पर होगा। ठाकुर वोटर यहां 25 हजार हैं और ब्राम्हण वोटर 50 हजार हैं जो जाहिर है ये भाजपा के पाले में जाएंगे लेकिन 35 हजार मुस्लिम और 65 हजार यादव वोटरों के बड़े हिस्से पर सपा अपना दावा जता रही है। यादव वोटरों में भाजपा सेंधमारी की फिराक में है तो मुस्लिम वोटरों में आजाद समाज पार्टी भी घुसपैठ बना रही है। पासी समाज के वोटरों में बंटवारे के बावजूद सपा के पास यादव और मुस्लिम वोटरों का बड़ा वोट बैंक है फिर भी यहां इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों की एकजुटता की दरकार है ताकि समर्थक दलों के वोटरों में कोई संशय न रहे। मिल्कीपुर का उपचुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है तो सपा अपने इस सीट को हर हाल वापस पाना चाहेगी। दोनों के बीच मुकाबला जोरदार है। इसमें बाजी कौन मार ले जाता है, यह देखने की बात है।

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