पं रामदेव पाण्डेय
महाकुंभ के नभ मण्डल के पात्र हैं बृहस्पति, सूर्य और चंद्र , राशि हैं वृष, सिंह, मकर और मेष जो यह ब्रह्मांड के तीस डिग्री के सुर्य के गोचर मे ही यह स्थिति बनती है , यह सुर्य की सक्रांति( एक माह) और गुरू के गोचर की आकाशीय घटनाक्रम है,
स्थान : वृहस्पति -सुर्य – माह
प्रयागराज : वृष – मकर – 14 जनवरी
हरिद्वार : कुम्भ- मेष – 14 अप्रैल
नासिक : सिंह – सिंह – 15 अगस्त
उज्जैन : सिंह- मेष- 14 अप्रैल
सुर्य एक राशि पर एक माह रहता है यही माह मेला मे बदल जाता है , सुर्य के राशि पर जब चन्द्र ढाई दिन रहता है तब और सक्रांति के प्रारंभिक और अन्तिम दिन अमृत स्नान होता है , प्रयागराज और नासिक कुम्भ भगवान शिव, सरस्वती( गुप्त नवरात्र) तथा सुर्य को समर्पित है तो हरिद्वार और उज्जैन का कुम्भ राम हनुमान (रामनवमी) और सुर्य को अर्पित है, अमावस (पितरों)और पूर्णिमा( देवताओ) की तिथि महत्वपूर्ण है, यंहा स्नान,दान, कल्पवास का महत्व है , इसमे नदियों का संरक्षण, संस्कृति का पोषण, अर्थ का संवर्धन( टेड फेयर), प्रकृति के संग चलन , पर्यटन का विकास,राष्ट्रवाद , एकात्मवाद के साथ-साथ शैव ,वैष्णव और शाक्त , साकार- निराकार, वर्ण, जाति, पंथ आदि का महामिलन है , यही सहवास मोक्ष है, आत्मशान्ति, आत्मशक्ति का अभिवृद्धि पुन: शुन्य मे समाहित होना ही महाकुंभ है।
कुम्भ मे बृहस्पति का वैज्ञानिक महत्व:-
बृहस्पति: प्रथम जायमानो महोज्योतिष,: परमे व्योमन्। ।
सप्तस्यास्तु विजातोरवेण विसप्त रश्मिर धमत तमांसि ।।
बृहस्पति ने प्रथम भाव में परम प्रकाश के सर्वोच्च स्वर्ग में जन्म लिया, सात मुखों वाले, शब्द से युक्त तथा सात किरणों वाले, उन्होंने अंधकार को वश में कर लिया। बृहस्पति सर्व प्रथम सौर मंडल मे प्रकाशमान हुआ और ब्रह्मांड के अन्धकार को सात किरणों से समाप्त कर दिया ( इन सात किरणो का सवार सुर्य करता है) ।
बृहस्पति: प्रथमं जायमान स्तिष्यं नक्षत्रमभि सम्वभूव: ।। तैतिरीय उपनिषद
बृहस्पति ग्रह पहले सौरमंडल मे त्रिष्क नक्षत्र मे आऐ, शुक्र का पहचान भृगु पुत्र वेण ने किया ।
वैज्ञानिक कहते है आज से 14 अरब साल पहले बिगबैंग विस्फोट हुआ, सुर्य 5 अरब साल पहले बना आज से 4.6 अरब साल पहले पृथ्वी बनी, पृथ्वी से 5 करोड साल पहले बृहस्पति हिलीयम और हाईडोजन के संयोग से बना , यह संयोग है कि सुर्य और शनि मे भी हिलीयम और हाइडोजन है , बृहस्पति, सूर्य और शनि की राशि संयोग कुम्भ मेला मे अनिवार्य है मंगल(मेष) और शुक्र ( वृष)की राशि चमत्कृत ग्रह की राशि है , सुर्य, शनि और बृहस्पति बडे तारे/ ग्रह है तो मंगल और शुक्र चमत्कृत है।
बृहस्पति का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बडा और मजबूत है , क्षुद्र ग्रह बृहस्पति के उच्च गुरुत्वाकर्षण के कारण बृहस्पति मे समाहित हो जाते है , बृहस्पति पृथ्वी को क्षुद्र ग्रह और धुमकेतु से बचाता है , नही तो एक सुई भी अन्तरिक्ष से गिरकर पृथ्वी को नष्ट कर सकती है , उल्कापिंड तो तबाही ला देते , डाइनासोर का विनाश का कारण उल्कापिंड का पृथ्वी पर गिरना ही है।
बृहस्पति सौरमंडल का सफाई करता है , बृहस्पति पृथ्वी का उद्धारकर्ता है, बृहस्पति भगवान विष्णु का द्योतक है, विष्णु चराचर जगत के पालनहार है , बृहस्पति 11.86 साल मे सुर्य का चक्कर पुरा कर बारह राशि को पार कर पुन: उसी राशि पर आता है , बृहस्पति जब जब वृष, सिंह और कुम्भ राशि पर आता है कुम्भ का मेला लगता है , सनातनी बृहस्पति के इसी संरक्षण के प्रति कृतज्ञ होकर कुम्भ स्नान करते है, ताकि डाइनासोर की तबाही की तरह बृहस्पति फिर कोई भूल न कर दे , बृहस्पति देव गुरु है तो शुक्र राक्षस के गुरु है , वृष राशि पर गुरु का स्वागत शुक्र करते है और वृष राशि पर गुरू के आने पर प्रकृति, राजनैतिक, सामाजिक बदलाव भी होता है।
शनि : बृहस्पति के बाद शनि हमारे ब्रह्मांड का बडा ग्रह है , शनि भी बृहस्पति की तरह पृथ्वी की रक्षा धूमकेतु से करता है , पृथ्वी पर शान्त वातावरण शनि के कारण है , हमारा आरामदायक तापमान का कारक शनि है , कुम्भ राशि का मालिक शनि है, कुम्भ राशि पर गुरुवार आने पल हरिद्वार मे अप्रैल म ई मे मेला लगता है।
सुर्य : ऋग्वेद के अनुसार सूर्य संसार की आत्मा है , इसीलिए सुर्य पूजनीय है, ब्रह्मांड के बडे ग्रह का संग ही कुम्भ आयोजन कराता है , सुर्य संसार की आंख है , अन्न जल , उर्जा का दाता सुर्य है , पृथ्वी के प्रणियो का रक्षक सुर्य और बृहस्पति है , इसलिए सनातनी इनके विशेष स्थिति मे आने पर हर्ष उल्लास से वही उपस्थित होते है जहां गँगा त्रिपथगामिणी होकर त्रिवेणी हो गयी है , तीर्थ का राजा प्रयागराज है , 1575 ई मे अकबर ने किला बनवाया और आठ साल संगम पर गुजारा था।
त्रिवेणी : अमावस पूर्णिमा और सक्रांति को अमृत स्नान का महत्व है इस रात के ब्रह्म मुहूर्त मे देवता, सभी गोत्र के ऋषिगण , पितर , सातो चिरंजीवी संगम मे स्नान करने आते है, इस समय तारो को टूटकर गिरते त्रिवेणी मे देख सकते है ,गंगा यमुना का जल ओषधि से परिपूर्ण है तो सरस्वती पीतल का जल से स्नान कराती है , यह नदियां भारत की जीवन दायिनी है , हम इन नदी के प्रति भी कृतज्ञ होते है , यह ब्राह्मवर्त है , गंगा और सरस्वती विष्णु लोक से आई पर यमुना सुर्य लोक से आई, त्रिवेणी सभी तीर्थ का राजा है, प्रयाग तीर्थ राज है।
भारद्वाज आश्रम : ऋग्वेद, अथर्ववेद, वायुपुराण और तैतिरीय ब्राह्मण मे वर्णित भारद्वाज ऋषि बृहस्पति और ममता के पुत्र और अंगिरा के पौत्र हैं, द्रोणाचार्य, गर्ग ( यदुवंश के आचार्य)पुत्र है तो कुबेर की माता और विश्रवा( रावण के पिता) की पत्नी इडविडा पुत्री है ,दुसरी बेटी कात्यायनी याज्ञवल्क्य की पत्नी हुई।
प्रयागराज बसाकर गुरुकुल की स्थापना विश्वविद्यालय के तर्ज पर हुई, जंहा सर्व प्रथम सिविलाइजेशन आया है , यह विश्व की उर्जावान भुमि जिसे ब्रह्मवैवर्त , मध्यदेश, आर्यावर्त से जाना जाता है, भारद्वाज वैमानिक यांत्रिक, आयुर्वेद सहित अनेकों विद्या के आचार्य थे, राम सीता वन गमन के समय भारद्वाज आश्रम मे रुके और अग्नि विद्या सीखी थी, इसी विद्या से सीता को राम ने अग्नि प्रवेश कराया था।
नागाओं का रहस्य : करोड़ नागा , अवधूत,अघोर, वैरागी,गृहस्थ का आगमन यहां होता है , हिमालय, विन्ध्याचल, कामाख्या, गिरनार, महेन्द्र पर्वत, नीलगिरी, अनमुडी आदि से महात्मा स्नान और कल्पवास के लिए आते और कुम्भ के बाद वापस लौट जाते है , कुछ महात्मा ,संत अपने अखाडे मे आ जाते है कुछ तीर्थाटन करते रहते है , साधु-संत वामपंथ और दक्षिण पंथ साकार और निराकार, सगुण -निर्गुण शैव-वैष्णव और शाक्त सभी तरह के होते है।
परकाया प्रवेश : यह जटिल योगक्रिया है , जो शंकराचार्य जी ने किया था , देवरहा बाबा भी तीन सौ साल पहले झारखंड के रामरेखा धाम, पालकोट (गुमला ) मे परकाया प्रवेश किया था, इसे चोला बदलना भी कहते है जैसे सांप , फोनिक्स अपना जीवन यौवन बढा लेते हैं,आत्मा को एक वृद्ध या अनैच्छिक शरीर से स्वस्थ शरीर मे डालकर हजारों-हजार साल इसी स्मरण शक्ति के साथ जीने की कला है, ऐसे संत कुम्भ मे आते है।
कैसे स्नान करे : जो कुम्भ जा सकते है , जाकर स्नान करे , त्रिवेणी को प्रणाम, दण्डवत, आचमन, कर गंगा मे उतरने से पहले क्षमा मांगे, तब तीन डुबकी लगावे, यज्ञोपवित, चन्दन करे , देवता ,ऋषि, सप्त चिरंजीव, यम का तर्पण करे, मृत सम्बन्धों , मित्र, गुरू का नाम लेकर तर्पण करे , फिर सुर्य को जल दे , इसके बाद दान ,हवन, आचार्य, गुरु, नागा संत तथा गरीब दुखिया को अन्न,भोजन ,वस्त्र आदि का दान करे, जो कुम्भ त्रिवेणी मे नही जा सकते है वे त्रिवेणी का जल लाकर उपरोक्त विधि से स्नान करें।