
- प्रदेश की जेलों में पंप खोले जाने का शासन को भेजा प्रस्ताव
- आधुनिक उपकरणों की खरीद बनी अफसरों और बाबुओं की कमाई का जरिया
लखनऊ। धनार्जन के लिए कारागार विभाग के आला अफसर आए दिन नए-नए प्रयोग कर रहे है। इस कड़ी में विभाग के उच्चाधिकारियों ने प्रदेश की जेलों में पेट्रोल पंप खोले जाने का एक प्रस्ताव शासन को भेजा है। शासन से स्वीकृत एवं बजट प्राप्त होने के बाद इस योजना पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। यह अलग बात है कि शासन और मुख्यालय इस मामले पर अभी कुछ भी बोलने से बच रहा है। दिलचस्प बात यह है कि कारागार मुख्यालय की ओर से प्रदेश की जेलों को करोड़ों रुपए की लागत से भेजे गए आधुनिक उपकरण जेलों में इस्तेमाल होने के बजाए गोदामों में धूल खा रहे हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक वर्तमान समय में प्रदेश में 69 जिला जेल और सात केंद्रीय कारागार समेत कुल 76 जेल है। जिला जेल में विचाराधीन बंदियों के साथ निश्चित समयावधि के कैदियों को रखा जाता है। केंद्रीय कारागार में आजीवन कारावास की सजा पाए कैदियों को रखे जाने के व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। केंद्रीय कारागारों में कैदियों को स्वावलंबी बनाने के लिए तमाम तरह के उद्योग चलाए जा रहे हैं। इन उद्योगों में काम करने वाले कैदियों को पारिश्रमिक भी दिया जाता है। मजे की बात यह है कि जेलों में चलाई जा रही यह योजनाएं भी अधिकारियों की कमाई का जरिया बन चुकी है।
सूत्रों का कहना हैं कि विभाग के आला अफसरों ने बंदियों और कैदियों की आड़ में कमाई का एक और तरीका इजात किया है। इसके तहत प्रदेश की जेलों में पेट्रोल पंप खोले जाने का प्रस्ताव तैयार किया गया। अधिकारियों की ओर से तैयार किए गए इस प्रस्ताव में जेल परिसर में खाली पड़ी भूमि पर पेट्रोल पंप खोले जाने की बात कही गई है। पेट्रोल पंप कंपनियां जेल की प्रस्तावित भूमि पर पंप खोलकर व्यवसाय करेंगी। पेट्रोल पंप खोले जाने से जेलों को होने वाले लाभ के सवाल पर अधिकारियों का तर्क है कि कंपनियां भूमि का किराया जेलों को देंगी। उधर इस संबंध में जब कारागार मंत्री दारा सिंह चौहान से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनसे बात नहीं हो पाई। कारागार मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जेलों की जमीन पर पेट्रोल पंप खोले जाने का प्रस्ताव शासन को भेजे जाने की बात तो स्वीकार की लेकिन इसके अलावा और कुछ भी बताने से साफ इनकार कर दिया।
समय पर काम नहीं आते करोड़ों के आधुनिक उपकरण
प्रदेश की जेलों में मोबाइल के संचालन को रोकने, आगंतुक की तलाशी लेने, जेल के कंबल और चादर धोने समेत अन्य निगरानी करने के लिए जेलों में करोड़ों रुपए आधुनिक उपकरण जरूर लगाए गए है। मोटा कमिशन लेकर खरीदे गए यह उपकरण घटना के समय काम नहीं आते है। बंदी की फरारी और मौत की घटना पर जेलों में लगे सीसीटीवी अक्सर खराब मिलते है। करोड़ों की लागत से जैमर लगे होने के बाद भी जेलों में मोबाइल फोन का इस्तेमाल धड़ल्ले से चल रहा है। हैवी वाशिंग मशीन खरीदी तो गई लेकिन इनका इस्तेमाल ही नहीं हो रहा है। यह तो बानगी है। इस प्रकार के लाखों के उपकरण जेल के गोदामों में धूल फांक रहे है। यह अलग बात कि इन उपकरणों को खरीद कर विभाग के अधिकारी और बाबू जरूर मालामाल हो रहे हैं।