प्रयाग से निकली धारा से सृजित हुई काशी और अयोध्या की एक नई सनातन त्रिवेणी

आचार्य संजय तिवारी
आचार्य संजय तिवारी
  • मौन की साधना, मौनी अमावस्या

सनातन संस्कृति में मौन का अद्भुत महत्व है। मौन की साधना भी अद्भुत है। इस मौन का पूरा महाविज्ञान शास्त्रों में वर्णित है। इस मौन की साधना को सनातन ने अपनी लोक शैली और जीवन संस्कृति में समाहित कर लिया है। माघ मास की अमावस्या जिसे मौनी अमावस्या कहते हैं। यह योग पर आधारित महाव्रत है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस मास को भी कार्तिक के समान पुण्य मास कहा गया है। गंगा तट पर इसी कारण भक्त जन एक मास तक कुटी बनाकर गंगा स्नान व ध्यान करते है। प्रयागराज के महाकुंभ में इस अवसर पर करोड़ों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। इस बार स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या के सभी आंकड़े ध्वस्त होते दिख रहे हैं। यह कितना अद्भुत है कि पवित्र संगम में डुबकी लगाने वाले आस्था की महान धारा ने  काशी विश्वनाथ और श्रीराम जन्मभूमि से जुड़ कर एक नई त्रिवेणी की रचना कर डाली है। यह धारा बहुत ही बलवती और वेगवान है। कुंभ की आस्था ने काशी और अयोध्या को एक कर दिया है।

प्रयागराज में त्रिवेणी के पवित्र संगम में स्नान के संदर्भ में एक अन्य कथा का भी उल्लेख आता है, वह है सागर मंथन की कथा। कथा के अनुसार जब सागर मंथन से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए उस समय देवताओं एवं असुरों में अमृत कलश के लिए खींचा-तानी शुरू हो गयी इससे अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद हरिद्वार नासिक और उज्जैन में जा गिरी। यही कारण है कि यहाँ की नदियों में स्नान करने पर अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है। यह तिथि अगर सोमवार के दिन पड़ती है तब इसका महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। अगर सोमवार हो और साथ ही महाकुम्भ लगा हो तब इसका महत्व अनन्त गुणा हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है सत युग में जो पुण्य तप से मिलता है द्वापर में हरि भक्ति से, त्रेता में ज्ञान से, कलियुग में दान से, लेकिन माघ मास में संगम स्नान हर युग में अन्नंत पुण्यदायी होगा। इस तिथि को पवित्र नदियों में स्नान के पश्चात अपने सामर्थ के अनुसार अन्न, वस्त्र, धन, गौ, भूमि, तथा स्वर्ण जो भी आपकी इच्छा हो दान देना चाहिए। इस दिन तिल दान भी उत्तम कहा गया है। इस तिथि को मौनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है अर्थात मौन अमवस्या। चूंकि इस व्रत में व्रत करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता इसलिए यह योग पर आधारित व्रत कहलाता है।

शास्त्रों में वर्णित भी है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन का मनका फेरकर हरि का नाम लेने से मिलता है। इसी तिथि को संतों की भांति चुप रहें तो उत्तम है। अगर संभव नहीं हो तो अपने मुख से कोई भी कटु शब्द न निकालें। इस तिथि को भगवान विष्णु और शिव जी दोनों की पूजा का विधान है। वास्तव में शिव और विष्णु दोनों एक ही हैं जो भक्तो के कल्याण हेतु दो स्वरूप धारण करते हैं इस बात का उल्लेख स्वयं भगवान ने किया है। इस दिन पीपल में आर्घ्य देकर परिक्रमा करें और दीप दान दें। इस दिन जिनके लिए व्रत करना संभव नहीं हो वह मीठा भोजन करें।

प्रयागराज के साथ ही काशी और अयोध्या की त्रिवेणी

यह संयोग ही है कि इस बार प्रयागराज के महाकुंभ में उमड़ी सनातन आस्था की यात्रा श्रीराम जन्म भूमि अयोध्या और  काशी विश्वनाथ से जुड़ गई है। श्रद्धालुओं ने इस नई त्रिवेणी का स्वयं निर्माण कर दिया है। प्रयागराज में संगम में डुबकी लगाने आए सभी की यात्रा अनायास काशी और अयोध्या की ओर ऐसी मुड़ गई है कि श्रीराम मंदिर ट्रस्ट को यह अपील करनी पड़ रही है कि आस पास के भक्त अभी अयोध्या मत आएं। अयोध्या जी में तिल रखने की जगह नहीं है। उधर काशी धाम में बाबा विश्वनाथ के दर्शन को उमड़ी आस्था को भी संभालना बहुत कठिन हो रहा है। वाराणसी महानगर में करोड़ों श्रद्धालु प्रति दिन पहुंच रहे हैं। सनातन की आस्था का ऐसा उभार शायद पहली बार विश्व देख रहा है।

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