

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों एक बार फिर गरमा गई है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लखनऊ में आयोजित एक प्रेस वार्ता में देश के बड़े हिंदी समाचार पत्र दैनिक जागरण पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि यह अखबार अब निष्पक्ष पत्रकारिता नहीं कर रहा, बल्कि भारतीय जनता पार्टी का “प्रचार तंत्र” बन चुका है।प्रेस वार्ता के दौरान अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे अब दैनिक जागरण को पढ़ना, खरीदना और प्रचारित करना बंद करें। उन्होंने कहा, “जब कोई संस्थान जनहित की जगह सत्ता हित में काम करने लगे, तो उसका विरोध जरूरी हो जाता है। लोकतंत्र में मीडिया को प्रहरी की भूमिका निभानी चाहिए, लेकिन जब वही प्रहरी सत्ता की गोद में बैठ जाए, तो लोकतंत्र कमजोर होता है।”
अखिलेश यादव का यह बयान उस समय आया है जब सपा लगातार यह आरोप लगाती रही है कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग भाजपा के पक्ष में एकतरफा रिपोर्टिंग कर रहा है और विपक्ष की आवाज को दबाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी की खबरों को या तो पूरी तरह दबा दिया जाता है या इस तरह तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है कि उसका मूल संदेश ही बदल जाता है।सपा की मीडिया टीम ने प्रेस वार्ता में कई आंकड़े भी प्रस्तुत किए और दावा किया कि दैनिक जागरण में भाजपा से जुड़ी खबरों को प्रमुखता दी जाती है, जबकि महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक, किसानों की समस्याएं, और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर समाजवादी पार्टी द्वारा उठाए गए सवालों को या तो नजरअंदाज किया गया या बेहद सीमित कवरेज दी गई।इस बयान के बाद लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में दैनिक जागरण के कार्यालयों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। पुलिस प्रशासन ने एहतियातन यह कदम उठाया है ताकि किसी प्रकार की अप्रिय घटना से बचा जा सके।
भाजपा ने अखिलेश यादव के इस बयान को सस्ती लोकप्रियता और हताशा से भरा हुआ बताया। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, “जब जनता से समर्थन नहीं मिल रहा हो, तो नेता अक्सर मीडिया को दोष देना शुरू कर देते हैं। अखिलेश यादव को यह समझना चाहिए कि मीडिया वही दिखाता है जो जमीनी हकीकत होती है। दैनिक जागरण जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों पर आरोप लगाना यह दर्शाता है कि सपा की जमीन खिसक रही है।”एक अन्य भाजपा विधायक ने कटाक्ष करते हुए कहा कि, “जिस नेता ने कभी पत्रकारों के माइक तक खींच लिए थे, वह अब पत्रकारिता की शुचिता की बात कर रहे हैं। मीडिया की आजादी की बात वही करता है जो खुद आलोचना सहने का साहस रखता हो।”
अखिलेश यादव के इस बयान को लेकर विपक्ष के अन्य दलों में भी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि, “मीडिया की स्वतंत्रता आज खतरे में है, और यह केवल अखिलेश यादव नहीं, बल्कि पूरा विपक्ष महसूस कर रहा है। प्रेस को सरकार की गोद से बाहर निकलकर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका निभानी चाहिए।”वहीं, बहुजन समाज पार्टी की ओर से औपचारिक बयान नहीं आया, लेकिन पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि, “मीडिया का झुकाव किसी एक पार्टी की ओर होना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल तब तक मीडिया पर सवाल नहीं उठाता जब तक वह खुद निशाने पर न हो। अखिलेश यादव को पहले खुद की मीडिया नीति पर भी आत्ममंथन करना चाहिए।”
मीडिया संगठनों में इस विवाद को लेकर हलचल है। कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने अखिलेश यादव की टिप्पणी को लोकतांत्रिक असहमति बताया, वहीं कुछ पत्रकारों ने कहा कि किसी भी राजनीतिक दल द्वारा मीडिया संस्थानों का सार्वजनिक बहिष्कार लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ जाता है।भारतीय प्रेस परिषद के एक सदस्य ने कहा, “यदि किसी को मीडिया से शिकायत है तो वह वैधानिक मंचों पर शिकायत कर सकता है, लेकिन सार्वजनिक रूप से किसी अखबार का बहिष्कार करना पत्रकारों की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा प्रमुख का यह कदम मुस्लिम और पिछड़े वर्गों के वोट बैंक को फिर से सशक्त करने की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है, क्योंकि हाल के चुनावों में सपा को कई स्थानों पर परंपरागत वोटों में गिरावट का सामना करना पड़ा है। वहीं कुछ विश्लेषक इसे सपा की मीडिया रणनीति का हिस्सा बता रहे हैं, जिससे वह अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को एकजुट कर सके।कई विश्लेषक मानते हैं कि अखिलेश यादव का यह बयान भावनात्मक और राजनीतिक दोनों ही स्तरों पर एक मजबूत संदेश है। यह न सिर्फ सत्तारूढ़ दल पर सीधा हमला है, बल्कि मीडिया की भूमिका पर भी बहस को जन्म देता है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में दैनिक जागरण इस विवाद पर क्या रुख अपनाता है। क्या वह जवाब देता है, या पत्रकारिता के दायरे में रहकर रिपोर्टिंग करता रहेगा? वहीं, समाजवादी पार्टी इस मुद्दे को कितना आगे ले जाती है और क्या यह चुनावी रणनीति का हिस्सा बनता है, यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा। फिलहाल इतना तय है कि यह विवाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ ले चुका है, जहां अब सिर्फ सत्ता और विपक्ष की लड़ाई नहीं रह गई, बल्कि इसमें मीडिया की भूमिका भी नए सिरे से परिभाषित हो रही है।
लेखक राजधानी लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं…