कविता : आगे कुआँ और पीछे खाईं है

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

जो बीत गया वो बीत गया है,
अब वापस नहीं आने वाला है,
जो वर्तमान है उसे सम्भालना,
वह ही भविष्य बनाने वाला है।

प्रेम दिल में है तो जताना ज़रूरी है,
दिल की बात ज़ुबाँ पे लाना ज़रूरीहै,
अब नहीं तो और कब का फ़साना,
मत सोचो कि क्या कहेगा जमाना।

जीवन ख़ुशियों का ख़ज़ाना है,
जो मिल रही हैं झोली खोलकर,
उन्हें उसमे संजो कर भरते रहिये,
इन्हें दिल खोल कर जीते रहिये।

कहा ग़ालिब ने कि बर्बाद गुलिस्ताँ
करने को, बस एक ही उल्लू काफ़ी है,
और इतना ही नहीं हर साख पे उल्लू
बैठे हैं, अंजामें गुलिस्ताँ क्या होगा?

आदित्य जन जन की मजबूरी है,
कि आगे कुआँ और पीछे खाईं है।
जाही विधि राखे राम,
ताही विधि रहिए।
सीताराम सीताराम,
सीताराम कहिये॥

 

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