राजेश श्रीवास्तव
कहते हैं कि जरायम की दुनिया का अंत मिट्टी में मिलना ही होता है। बड़े से बड़े सूरमा का यही अंत हुआ है। गुजरात की साबरमती जेल से मौत उसे खींचकर उसी धूमनगंज में लेकर आयीं, जिस क्षेत्र से उसने जरायम की दुनिया में पहला कदम रखा था। इसी थाना क्षेत्र में उसने अपने जीवन का पहला मर्डर चांद बाबा का किया था। तब से तांगे वाला का बेटा जो जरायम की दुनिया में घुसा तो मौत के साथ ही उसका अंत हुआ। निश्चित रूप से अतीक और अशरफ से किसी भी समाज को सिम्पैथी नहीं हो सकती है लेकिन जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिया गया है वह सरकार के प्रशासनिक चूक की बड़ी कहानी कह रही है।
किस तरह से 22 पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में किसी हथकड़ी पहने बदमाशों को तीन मोटरसाइकिल से आये बदमाशों ने फिल्मी स्टाईल में 10 सेंकंड में 15 गोलियां मार कर छलनी कर दिया। जब वे गोली चला रहे थे तो क्या किसी भी पुलिसकर्मी के पास असलहा नहीं था, क्या वे उन्हें जख्मी नहीं कर सकते थे, क्या उन्हें पकड़ नहीं सकते थे। तीनों बदमाशों ने आराम से अतीक और अशरफ के शरीर पर इतनी गोलियां मारी कि जब वे आश्वस्त हो गये कि दोनों की मौत हो गयी तब तीनों ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया और नारे भी लगायी। यह पूरा तरीका इसी सिस्टम पर सवाल उठा रहा है। अब तमाम चीजें होंगी, कोरम पूरा किया जायेगा। न्यायिक आयोग गठित होगा, जांच रिपोर्ट आयेगी, पुलिस कर्मियों को सस्पेंड किया गया है न कि टर्मिनेट, फिर बहाल हो जायेंगे। क्योंकि सस्पेंशन कोई सजा नहीं है। कुछ दिन बाद यह पूरी घटना अदालती कठघरे में दम तोड़ देगी।
लेकिन इस तरह की यह उत्तर प्रदेश की शायद पहली इतनी बड़ी घटना है, हालांकि कस्टोडिल डेथ उत्तर प्रदेश में पहली बार नहीं हो रही है। लेकिन अतीक और अशरफ की घटना में बड़ा सवाल है कि जब इस घटना को अंजाम दिया जा रहा था तो 22 पुलिसकर्मी हाथ बांधो क्यों खड़े रहे। क्यों तीनों युवकों को हत्या के अंजाम तक पहुंचने तक उन्हें रोका नहीं गया। सवाल बहुत से हैं और सरकार को इन सभी सवालों के जवाब आने वाले समय में देना होगा। यह बात दूसरी है कि सरकार बहुमत में हैं और विपक्ष बेहद कमजोर। ऐसे में इस बात की उम्मीद नहीं की जा सकती कि विपक्ष सरकार पर कोई दबाव बना पायेगा। अतीक और अशरफ से सहानुभूति किसी समाज को नहीं हो सकती लेकिन घटना के तरीके पर सवाल शायद हर शख्स के मन में है कि क्या उत्तर प्रदेश में किसी की भी हत्या कर देना इतना आसान है, वह भी 22-22 पुलिसकर्मियो के सामने। अदालत के सामने सरकार ने फेस सेविंग के लिए पहले ही तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन कर दिया है। न ही इसके सदस्यों का ऐलान किया गया। न ही यह कितने दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेगा, अभी इसकी जानकारी दी गयी है।
इस आयोग से बहुत उम्मीद रखना कि पुलिसकर्मियों को कठघरे में खड़ा किया जायेगा, वक्त बतायेगा। उत्तर प्रदेश के इलाहबाद में जिस अतीक को कभी खौफ के दूसरे नाम से जाना जाता था आज उस अतीक का दर्दनाक अंत हो गया। वो अतीक जिसका रौब ऐसा हुआ करता था कि उसके खिलाफ 1०० से ज्यादा मुक़दमे दर्ज थे लेकिन उसे कभी सजा नहीं मिली। आज वही सिर्फ एक गोली में ही धराशाई हो गया। अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस कस्टडी में गोली मारकर हत्या कर दी गई है। अतीक के खिलाफ लूट अपहरण और हत्या जैसे 1०० से ज्यादा मामले दर्ज थे। लेकिन एक अतीक की जिदगी में एक ऐसी वारदात सामने आई जिसने माफिया को मिटटी में मिलकर रख दिया। यह भी विडंबना देखिये कि दो दिन पहले ही उसका सबसे प्रिय बेटा असद मुठभेड़ में मारा गया।
वह गिड़गिड़ाता रहा लेकिन जनाजे में शामिल नहीं हो सका। रिश्तेदारों ने शनिवार सुबह ही उसका अंतिम संस्कार किया। वह इसको भी नहीं देख सका और शाम को भाई समेत खुद मौत के घाट उतार दिया गया। पत्नी शाइस्ता परवीन फरार है। दो बेटे जेल में हैं एक लखनऊ तो दूसरा नैनी जेल में बाकी दोनों नाबालिग बेटे बाल सुधार गृह में हैं ऐसे में पोस्टमार्टम के बाद इन दोनों को भी घरवालों की मिट्टी नसीब होना नहीं दिख रहा है। घटना का तरीका कुछ भी हो, कारण कुछ भी हो। लेकिन जरायम की दुनिया का अंत शायद ऐसा ही होता है। यह शायद अब अतीक के बचे हुए परिजनों को भी समझ में आ रहा होगा। खुद अतीक को भी अहसास हो गया था तभी दो दिन पहले उसने कहा था कि मिट्टी में मिल गया हूं, अब बस रगड़ा जा रहा हूं।