मोदी का चमकीला जैकेट, बनाम  प्रियंका की लटें-लिबास !!

के. विक्रम राव


मोदी-जैकेट कर्नाटक चुनाव से ज्यादा मशहूर हो गया है। कारण ? कांग्रेस अध्यक्ष मापन्ना मलिकार्जुन खड़गे ने बताया (कलबुर्गी की सभा में कल, 7 मई 2023) कि : “प्रधानमंत्री दिन में चार बार जैकेट बदलते हैं।” खड़गे ने कैसे जाना ? क्या वे टीवी लगातार देखते रहते हैं ? ठीक यही बात हमारे पत्रकार साथियों ने तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल के बारे में कही थी। तब मुंबई के ताज होटल पर मोहम्मद अफजल कसाब तथा हत्यारे पाकिस्तानी लश्कर-ए-तैय्यबा के आतंकियों ने हमला (26 नवंबर 2008) किया था। उस वक्त दिन भर कई टीवी चैनलों पर पाटिल बोलते रहते थे। रिपोर्टरों ने पैनी नजर से देख लिया कि हर घंटे बाद भिन्न टीवी इंटरव्यू में गृहमंत्री के कपड़े भी भिन्न होते थे। अब खड़गे पत्रकार तो हैं नहीं ! भला कैसे फिर जाना ? खैर कांग्रेस अध्यक्ष की टिप्पणी से बहस तो चालू हो गई है। राजनेता और उनके परिधानों पर !

आत्मा का पर्दा है शरीर, जिसका वल्कल है परिधान। अब यह ही वस्त्र परिचायक हैं कि अंदरूनी रूप कैसा है ? खड़गे की कुर्ता-धोती और सोनिया गांधी की साड़ी आमजन का पहनावा है अतः खबर नहीं बन पाये। मगर मोदी की जैकेट लुभा गई। वह प्लास्टिक की इस्तेमाल हो चुकी बोतलों को रिसाइकिल कर बनाई गई है। वे उसे संसद पहनकर भी गए थे। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने पीएम को यह खास जैकेट भेंट की। तब मुंबई में (ताज होटल पर) हमले की टीवी रपट के चार दिनों बाद ही शिवराज पाटील को सरदार मनमोहन सिंह ने अपने काबीना से बर्खास्त कर दिया था। खड़गे उसी काबीना मे रोजगार मंत्री थे। अतः वे खूब जानते थे कि पाटिल क्यों बेरोजगार कर दिए गए थे। गत वर्ष मोदी और खड़गे में कांग्रेसियों द्वारा काला लिबास पहनकर महंगाई के विरोध में विरोध आयोजित हुये प्रदर्शन से राजनीति गरमा गई थी। पीएम मोदी ने कांग्रेस नेताओं पर हमला करते हुए कहा : ”ये लोग सोचते हैं कि काले कपड़े पहनकर निराशा-हताशा का काल समाप्त हो जाएगा। वो कुछ भी कर लें, जनता का विश्वास उन पर नहीं बन पाएगा।” पीएम मोदी के तंज पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पलटवार करते हुए ट्वीट किया था : “नरेंद्र मोदी जी, जनता को काले कपड़ों से गिला नहीं, आपके नेतृत्व पर सवाल है।”

मीडिया (कन्नड़ भाषायी मिलाकर) रपट से भान होता है कि कर्नाटक चुनाव में मोदी जैकेट के बाद प्रियंका वाड्रा के लिबास और लटें भी जनचर्चा का प्रिय विषय रहीं हैं। दिल्ली में वोट डालते वक्त स्कर्ट और अधकटी चोली धारण करना और कर्नाटक में सलवार कुर्ता से पूरा तन ढकना। श्रोताओं के विवेक को यह झकझोरता है। हालांकि कश्मीरन दादी के गोरे रंग पर प्रियंका का बीस पड़ना स्वाभाविक है। पोती यूरेशियन (रोमन) है। उनका इंदिरा की स्टाइल से साड़ी लपेटना दर्शकों की नजरें खींचता है। मसलन रायबरेली और अमेठी में उनका पूरी बाहोंवाला ब्लाउज याद रहता है। स्थल के मुताबिक जींस और साड़ी का उपयोग होता है। प्रियंका के वेश और भेष लचीले रहते हैं। अब राजनीति और परिधान पर कुछ दस्तावेजी नजारों पर भी गौर कर लें। इस वक्त विश्व का सबसे उम्दा कपड़ा पहननेवाला व्यक्ति फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन हैं। वे शतप्रतिशत अभिजात्य वर्ग के नेता लगते हैं। हालांकि विश्व का सर्वश्रेष्ठ आकर्षक लिबास धारण करने वाले हैं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो। कभी ब्रिटेन की लौह महिला मार्गरेट थैचर जगविख्यात होती थीं। उनका स्कर्ट न ऊंचा, न नीचा होता था। वह लुभावनी, मोहक थीं, पर कामुक कतई नहीं। लोगों के लिए कपड़े पहने जाते हैं। अर्थात यदि स्मृति ईरानी सबसे बेहतरीन वस्त्र पहनती हैं तो इसीलिए कि वे कपड़ा मंत्री हैं। फैशन मात्र नहीं, उनकी कार्य संस्कृति भी हैं।

सबसे मर्मस्पर्शी वस्त्र तो महात्मा गांधी पहनते थे। एक संदेश देते थे समस्त मानवता को। एकदा बापू ने विजयवाड़ा में अधनंगे किसान को देखा। तभी तय कर लिया कि जबतक हर भारतीय को पूरा अंग ढकने लायक कपड़ा नहीं मिलेगा वे भी अधनंगे रहेंगे। जब बादशाह जॉर्ज पंचम (12 नवंबर 1930) से भेंट करने लंदन की सर्दी में बापू बर्मिंघम राज महल गये तो भी घुटने तक की धोती पहनी थी। तब ब्रिटिश पत्रकारों ने पूछा कि गांधीजी तन ढककर क्यों नहीं गये ? तो बापू का जवाब था : “सम्राट इतने भारी भरकम कपड़े पहने थे कि कई लोगों के तन को उनसे ढका जा सकता था। लखनऊ के पानदरीबी में गांधीवादी स्वाधीनता सेनानी स्व. चंद्रभानु गुप्त रहते थे। वे मुख्यमंत्री आवास में कभी नहीं गए, हमेशा निजी मकान में ही रहे। तीनों बार जब वे सीएम बने थे। उनसे भेंट करने जब महिलाएं आती थी तो वे चादर से घुटने ढक लेते थे। बाकी वक्त खादी चड्डी और बनियान ही पहने रहते थे। कपड़ों के बारे में सबसे लापरवाह, विरक्त और वीतरागी एक और राजनेता रहे जॉर्ज फर्नांडिस। एकदा मुझे हजरतगंज (लखनऊ) के गांधी आश्रम से दो जोड़ी कुर्ता पायजामा लेकर जॉर्ज को देना पड़ा। फिर भी वह मटमैले परिधान पहनते थे। गनीमत थी कि लाखों रेल कर्मचारी, यूरोपीय सोशलिस्ट और हजारों पत्रकार भारत सरकार के इस मंत्री को पहचानते थे अतः परिस्थिति कभी बिगड़ी नहीं। जो व्यक्ति उद्योग, रेल, संचार, प्रतिरक्षा मंत्री रहे हों, अपने कपड़े खुद धोता था।

कपड़ों के दबदबे का एक और नमूना तभी मैंने देखा था जब बंबई से तबादले पर अहमदाबाद में “टाइम्स ऑफ इंडिया” के नए संस्करण में भेजा गया था। मैं एक गुजराती उद्योगपति का इंटरव्यू करने गया। वहीं पेढ़ी पर एक व्यक्ति बैठा था। मैंने अपना परिचय दिया। तो उस साधारण धोती, कुर्ता पहने वृद्ध ने पूछा : “कहिए क्या चाहते हैं ?” मैं फिर बोला : “मुझे कस्तूरभाई लालभाई से मिलना है।” वह मुंशीनुमा व्यक्ति बोला : “मैं ही हूं।” मुझे तब बड़ी ग्लानि हुई अपनी लखनवी नफासत पर। एक व्यक्ति जो सारा कनॉट प्लेस खरीद सकता है, एक बड़े बाबू जैसी पोशाक धारण किए रहता है। मगर दिल्ली आकर अब नरेंद्र मोदी गुजराती नही रहे, भारतीय हो गए हैं।

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