जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
आज जैसे-जैसे विज्ञान प्रगति के सोपान चढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे ज्योतिष व विज्ञान का फासला कम होता जा रहा है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आने वाले कुछ दशकों में ज्योतिष विज्ञान के रूप में प्रसिद्धि पा लेगा। लेकिन यह तभी संभव है, जब श्रेष्ठ व विद्वान ज्योतिषीगण ज्योतिष कार्य को रूढ़िगत सिद्धांतों एवं व्यावसायिक मापदंडों से ऊपर उठकर अनुसंधानात्मक एवं शोधपरक रूप में करें। क्या यह योग्यता हर ज्योतिषी को अनिवार्यरूपेण प्राप्त हो सकती है? इस प्रश्न का उत्तर भी हमें ज्योतिष शास्त्र में ही मिलता है। ज्योतिष शास्त्र में एक श्रेष्ठ ज्योतिषी या भविष्यवक्ता बनने के कुछ विशेष योगों व ग्रह स्थितियों का उल्लेख हमें प्राप्त होता है। ये विशेष ग्रह स्थितियां व योग यदि किसी जातक की जन्म पत्रिका में हों तो वह एक श्रेष्ठ व अनुसंधानात्मक ज्योतिष कार्य करने वाला ज्योतिषी होता है। किसी भी ज्योतिषी की पत्रिका का विश्लेषण कर यह पता लगाया जा सकता है कि उसमें भविष्य कथन करने की योग्यता है भी या नहीं? एक आध्यात्मिक व श्रेष्ठ ज्योतिषी की पहचान उसकी जन्म पत्रिका में स्थित ग्रहों की विशेष स्थिति से सरलता से की जा सकती है।
गुरु की शुभ स्थिति
श्रीमद्भगवदगीता में कहा गया है- ‘गहना कर्मणो गति:’ अर्थात कर्म की गति गहन है। मनुष्य के संचित कर्मों से ही ‘प्रारब्ध’ का निर्माण होता है। जातक को जन्म पत्रिका में जो भी शुभाशुभ योग व ग्रह स्थितियां प्राप्त होती हैं, वे सभी पूर्व जन्म के कर्मों का परिणाम होती हैं। कर्म के सिद्धांत को समझ पाना एक दुष्कर कार्य है, जो बिना विवेक के असंभव है। ज्योतिष शास्त्र में गुरु को बुद्धि, विवेक व अध्यात्म का प्रतिनिधि ग्रह माना गया है। अत: एक श्रेष्ठ ज्योतिषी की जन्म पत्रिका में गुरु की शुभ स्थिति होना अनिवार्य है। एक विद्वान ज्योतिषी की जन्म पत्रिका में गुरु का केंद्रस्थ, त्रिकोणस्थ, लाभस्थ, स्वग्रही, उच्चग्रही, उच्चाभिलाषी ग्रह का होना आवश्यक है। गुरु की शुभ स्थिति के बिना कोई भी जातक अच्छा ज्योतिषी नहीं बन सकता।
बुध की शुभ स्थिति
ज्योतिष शास्त्र में बुध को वाणी का नैसर्गिक कारक माना गया है। एक श्रेष्ठ ज्योतिषी के लिए वाक् सिद्धि होना आवश्यक है। बिना वाणी को सिद्ध किए कोई भी जातक एक सफल भविष्यवक्ता नहीं बन सकता। वाक् सिद्धि के लिए बुध का शुभ स्थिति में होना अनिवार्य है। बुध की शुभ स्थिति के लिए बुध का जन्म पत्रिका में केंद्रस्थ, त्रिकोणस्थ, लाभस्थ व उच्चराशिस्थ या उच्चाभिलाषी होना आवश्यक है।
सूर्य की शुभ स्थिति
ज्योतिष शास्त्रानुसार सूर्य आत्मा का कारक है। एक श्रेष्ठ ज्योतिषी तब तक आध्यात्मिक रूप से समृद्ध नहीं होगा, जब तक कि उसकी जन्म पत्रिका में सूर्य की शुभ स्थिति नहीं होगी। आध्यात्मिक ज्योतिषी के लिए सूर्य का केंद्रस्थ, त्रिकोणस्थ, लाभस्थ व उच्चराशिस्थ या उच्चाभिलाषी होना आवश्यक है।
बुध-गुरु का संबंध
ज्योतिष शास्त्र के नियमानुसार बुध एवं गुरु के परस्पर प्रबल संबंध के बिना कोई जातक श्रेष्ठ भविष्यवक्ता नहीं बन सकता। विद्वान भविष्यवक्ता की जन्म पत्रिका में बुध व गुरु का पारस्परिक संबंध होना अनिवार्य है। ये संबंध 4 प्रकार से क्रमश: प्रबलता प्राप्त करता है-
- बुध-गुरु की युति।
- बुध-गुरु का दृष्टि संबंध।
- बुध-गुरु अधिष्ठित राशि स्वामी का दृष्टि संबंध।
- बुध-गुरु का परस्पर राशि परिवर्तन संबंध।
पंचम् भाव एवं पंचमेश
जन्म पत्रिका के पंचम् भाव को उच्च शिक्षा एवं विवेक का प्रतिनिधि भाव माना जाता है। पंचम् भाव का अधिपति विवेक व बुद्धि का तात्कालिक कारक होता है। एक अच्छे ज्योतिषी की जन्म पत्रिका में पंचमेश का शुभ भावों में स्थित होना आवश्यक है एवं पंचम् भाव पर किसी अशुभ ग्रह का प्रभाव भी नहीं होना चाहिए।
अष्टम भाव व केतु की भूमिका भी महत्वपूर्ण
ज्योतिष शास्त्रानुसार केतु को मोक्ष का कारक माना गया है। एक श्रेष्ठ ज्योतिषी तभी सटीक भविष्यवाणी कर सकता है, जब उसे पराविज्ञान का लाभ मिले। जन्म पत्रिका का अष्टम भाव आयु के साथ-साथ पराविद्याओं का भी होता है। यदि अष्टम भाव का संबंध किसी प्रकार से भी केतु से हो तो ऐसे जातक को पराविद्या का लाभ किसी वरदान की तरह प्राप्त होता है। इस योग के फलस्वरूप वह जातक सटीक भविष्य संकेत करने में सक्षम होता है।