मोदी के सामने विपक्ष का गणित फेल!

के. विक्रम राव


अपने नौ वर्ष के राजकाल में नरेंद्र मोदी कितने कोस चले होंगे ? मुहावरी लहजे में उनके शत्रु “नौ दिन में अढ़ाई कोस” से हिसाब लगाएंगे। और नौ सालों को 365 दिनों से गुणा कर फिर नौ से भाग देंगे। मगर मोदी हैं कि विपक्ष की गणित फेल कर चुके हैं। छ्लांग लगाकर, फांदकर, लांघकर, कई कदम दौड़कर ! शायद इसीलिए संसद भवन बनते ही तमिल-भाषाई उन्हें “मापेरुन-थलैवार” कहना शुरू कर दिया। मतलब महान नेता। स्व. जयललिता को पुरात्ची (इंकलाबी) थलैवी कहा जाता था। उनकी सौ वर्षीय मां हीराबेन ने नरेंद्र मोदी को बताया था : “तुम्हें ईश्वर ने गढ़ा है, मैं तो निमित्त मात्र हूं।” तब प्लेटफार्म पर कुल्हड़ में चाय बेचते। इस इस अति पिछड़ी जाति के बालक की समझ के यह परे था कि वे बनेंगे क्या ? मगर उन्हें याद रहा था कि बराक ओबामा आइसक्रीम बेचते थे। अब्राहम लिंकन लकड़हारा थे। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अखबार के हॉकर थे। लालबहादुर शास्त्री गंगा तैरकर स्कूल जाते थे क्योंकि मल्लाह को देने के लिए उनके पास दो दमड़ी नहीं होते थे। जवाहरलाल नेहरू के दादा गंगाधर नेहरू लाल किले के पास “जागते रहो” पुकारकर ड्यूटी बजाते थे। तो नरेंद्र मोदी में क्या कमी ? अतः चाय वाले का बेटा होकर नरेंद्र कोई कमजोर दावेदार नहीं थे।

मोदी पर संकट अलग किस्म के आए। पहला था उन्हें विदेश यात्राओं के दौरान प्रधान मंत्री के नाते कई यादगार तोहफे मिले। इस अवधि में मोदी को 15 लाख 65 हजार रुपए मूल्य के 30 से अधिक उपहार मिले, जिसमें धूपदानी, भगवान गणेश की मूर्तियां, महात्मा बुद्ध से जुड़े प्रतीक चिन्ह, कंबल, दरी, स्वेटर, टोपी, गुलाब जल, गुलदान, लकड़ी के बक्से जैसी वस्तुएं शामिल हैं। इन उपहारों को हालांकि नियमानुसार विदेश मंत्रालय के तोशाखाना में जमा कर दिया गया। पड़ोसी पाकिस्तान में खान मोहम्मद इमरान खान पठान को करोड़ों रुपयों के उपहार मिले। उन्होंने उसे दुबई में बेचकर अकूत धन कमाया। मुकदमा चल रहा है। एक विकट संकट मोदी पर आया था (24 जून 2020) पर। यदि उच्चतम न्यायालय तीस्ता सीतलवाड द्वारा पेश श्रीमती जाकिया अहसान जाफरी की याचिका को स्वीकार कर लेता तो? आरोपी नरेन्द्र दामोदरदास मोदी 2002 के गुजरात दंगों के दोषी माने जाते और दण्ड के भागी बन जाते। अत: उसी दिन राष्ट्रपति पद के लिये द्रौपदी मुर्मू के नामांकन प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने से कट जाते। नये भाजपा संसदीय नेता की खोज चालू हो जाती। मोदी के सार्वजनिक जीवन की सर्वथा इति हो जाती। राष्ट्र की प्रगति थम सी जाती। अर्थात ठीक वहीं दास्तां दोहरायी जाती जो इसी माह (12 जून 1975) सैंतालीस साल पूर्व इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा इंदिरा गांधी के लोकसभा निर्वाचन को निरस्त करने से उपजी थी। तीस्ता सीलवाड के मोदी के विरुद्ध याचिका को खारिज कर दिया। तीस्ता को न्यायप्रक्रिया से खिलवाड़ करने का अपराधी माना।

उस दौर में उन्हीं की पार्टी के जनक अटल बिहारी वाजपेयी (उस वक्त के प्रधानमंत्री) तो युवा मुख्यमंत्री को राजधर्म पढ़ाने और पालन कराने पर आमादा थे। नेहरुछाप उदार राजनेता की अटलजी फोटोकॉपी बन जाते। तब पणजी (गोवा) में 2002 में भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने विचार किया और मोदी के पक्ष में निर्णय लिया। हटाया नहीं। अटलजी की चली नहीं। गुजरात (गांधीनगर) से भाजपा सांसद 75—वर्षीय लालचन्द किशिनचंद आडवाणी इस गुजराती के त्राता बने। मोदी को तीसरी पारी खेलने का अवसर मिल गया।

प्रधानमंत्री के नाते मोदी ने अपनी भारत विकास की मुल्मि में ऐतिहासिक इमारतों तथा तीर्थस्थलों के जीर्णोद्धार में काफी श्रम किया रूचि ली। इस पर उनकी आलोचना हुई। वे रूढ़िवादी हैं, हिंदुत्ववादी, पुरातनवंशी आदि। क्या अपने राष्ट्र के इतिहास को संवारना अपराध है ? सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, कन्हैयालाल मुंशी ने सोमनाथ, काशी, पाटलिपुत्र गंगाघाट आदि को सुधारा। आजाद देश का तकाजा था नरेंद्र मोदी ने ठीक ऐसा ही किया। मोहम्मद गोरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक के ही गुलाम शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने करीब नौ सदियां बीते धर्मनगरी उज्जैन को खण्डित किया था, लूटा था। स्वयंभू दक्षिणामूर्ति शिवलिंग को क्षिप्रा नदी में फेंक दिया था। ऐसा ही फरगना के डाकू जहीरूद्दीन बाबर द्वारा श्रीराम जन्मस्थल पर जघन्य प्रहार हुआ था। आलमगीर औरंगजेब के वहशियानापन का शिकार बने विश्वनाथ मंदिर। मोदी ने सबको विभूषित किया। भारत ऋणी है। इस बीच अयोध्या का भी समाधान हो गया है। सोमनाथ को तो सरदार वल्लभभाई पटेल ने पहले ही संवार दिया था, जवाहरलाल नेहरु के जोरधार प्रतिरोध के बावजूद। अत: भला हो नरेन्द्र दामोदरदास मोदी का कि अपने सहप्रदेशीय सरदार पटेल की भांति वे भी तत्पर हुये राष्ट्र गौरव को संजोने के लिये। मगर महाकाल मंदिर को संवारकर मोदी ने कई पीढ़ियों पर उपकार कर दिया। उज्जयिनी का यह देवालय प्राचीन ज्ञान का भंडार रहा।

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