राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ। यूं तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जमाने से ही जांच एजेंसियों को सत्ताधारी दलों ने CBI सरीखी अन्य जांच एजेंसियों का इस्तेमाल अपने लाभ के लिए किया है। लेकिन देश में जबसे केंद्र में पीएम मोदी के नेतृत्व में कामकाज संभाला है। तभी से विपक्ष इस बात पर हंगामा करता है कि देश में जांच एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्ष को खत्म करने, विपक्षी नेताओं को दबाव में लेने व परेशान करने के लिए किया जा रहा है । इसी बीच विपक्ष शासित कई राज्य ऐसे हैं, जिन्होंने अपने यहां CBI के प्रवेश पर पाबंदी लगा रखी है। अभी दो दिन पूर्व तमिलनाडु सरकार ने भी अपने यहां CBI पर रोक लगा दी है।
विपक्ष शासित 1० ऐसे राज्य हैं जहां CBI बिना राज्य सरकार के इजाजत के कोई जांच या धर-पकड़ नहीं कर सकती है। तमिलनाडु इन 1० राज्यों की सूची में ताजा-ताजा जुड़ा है। तमिलनाडु सरकार ने राज्य में जांच करने के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को दी गई सहमति वापस ले ली। विपक्ष शासित राज्यों में CBI-ED जैसी सेंट्रल जांच एजेंसियों की एंट्री और एक्शन पर सवाल उठते रहे हैं। विपक्षी दलों की तरफ से ये आरोप भी लगाए जाते रहे हैं कि केंद्र सरकार के इशारे पर केंद्रीय एजेंसियों की तरफ से विपक्षी दलों के नेताओं को निशाना बनाया जाता है। विपक्ष शासित 10 ऐसे राज्य हैं जहां CBI बिना राज्य सरकार के इजाजत के कोई जांच या धर-पकड़ नहीं कर सकती है। तमिलनाडु इन 10 राज्यों की सूची में ताजा-ताजा जुड़ा है। राज्य के विद्युत और मद्यनिषेध एवं आबकारी मंत्री वी सेंथिल बालाजी को धनशोधन के एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्बारा गिरफ्तार किये जाने के दिन यह कदम उठाया गया है। गृह विभाग द्बारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम,1946 (1946 का केंद्रीय अधिनियम 25) के एक विशेष प्रावधान के अनुसार CBI को जांच करने के लिए जाने से पहले संबद्ध राज्य सरकार की पूर्व अनुमति लेनी पड़ती है। इसमें कहा गया कि तमिलनाडु सरकार ने उक्त नियम के तहत 1989 और 1992 में कुछ तरह के मामलों में दी गई सहमति वापस लेने का आदेश जारी किया। इस तरह, CBI को राज्य में जांच करने के लिए पूर्व अनुमति लेनी होगी।
अगर कोई राज्य सरकार किसी आपराधिक मामले की जांच का CBI से आग्रह करती है तो CBI को पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी पड़ती है। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्बारा एक अधिसूचना जारी किया जाता है। जिसके बाद CBI द्बारा तफ्तीश शुरू की जाती है। वहीं भारत का सुप्रीम कोर्ट या राज्यों के हाई कोर्ट भी मामले की जांच का CBI को आदेश दे सकते हैं। दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (DSPE) अधिनियम में कहा गया है कि CBI को उस राज्य में किसी अपराध की जांच शुरू करने से पहले राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी। संबंधित राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की निर्बाध जांच करने के लिए CBI को सुविधा प्रदान करने के लिए आम तौर पर सभी राज्यों द्बारा सामान्य सहमति दी जाती है। हालांकि, अगर यह सहमति वापस ले ली जाती है, तो केंद्रीय एजेंसी को राज्य के अधिकार क्षेत्र से संबंधित कोई भी नया मामला दर्ज करने के लिए संबंधित राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी।
विपक्षी शासित राज्यों- पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल, मेघालय, तेलंगाना और मिजोरम के बाद अब तमिलनाडु भी केंद्रीय जांच एजेंसियों पर बैन लगाने वाले राज्यों में शुमार हैं। मेघालय ऐसा करने वाली पहली एनडीए सरकार बनी। इन राज्यों ने CBI को जांच के लिए दी जाने वाली ‘सामान्य सहमति’ को हटा दिया। इन राज्यों में अगर किसी मामले की जांच CBI को करनी है, तो राज्य सरकार से पूछना होगा। जिन राज्यों में ‘सामान्य सहमति’ नहीं दी गई है या फिर जहां विशेष मामलों में सामान्य सहमति नहीं है, वहां DSPE एक्ट की धारा छह के तहत राज्य सरकार की विशेष सहमति जरूरी है।
जिन राज्यों में CBI को बैन किया गया है वहां पर आने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्षी दल और उनके नेताओं को फिलहाल रोज-ब-रोज CBI जैसी जांच एजेंसियों के द्बारा परेशान होने की उम्मीद कम दिख रही है। इसका मतलब है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में CBI का दुरुपयोग नहीं दिखोगा। ऐसे में इन राज्यों के विपक्षी नेता सत्ता या जांच एजेंसियों के दबाव में नहीं आयेंगे और सरकार उन्हें परेशान या मजबूर नहीं कर पायेगी। यह भी देखना होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में इन राज्यों से भाजपा को कोई बहुत बड़ा लाभ मिलने की उम्मीद नहीं दिख रही है। हालांकि यह चुनाव परिणाम साबित करेगा, लेकिन कयास तो लग ही रहे हैं।