- भाई बहन के प्यार का मंदिर- जगन्नाथ धाम
- श्रीकृष्ण का भाई बहन के साथ स्वरुप
- ‘जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी भवतु में’
पहली बार दिल्ली से ही परिवार के साथ भगवान श्री जगन्नाथ के दर्शन की योजना वर्ष 2009 के दिसंबर में बनी। मेरे दोनो सुपुत्र और दोनो बेटियां उनके बच्चे भी साथ थे। मुझे आश्चर्य हुआ.. यहां काष्ठ की मूर्ति देख कर,साथ ही भाई बहन की मूर्तियां है। श्रीकृष्ण ,बलराम और देवी सुभद्रा की। आधी अधूरी मूर्तियां भी चकित करने वाली थीं। समीप के होटल मे ठहरा। दिन में नहा धोकर दर्शन को निकला,अजीब आकर्षण और अद्भुत शक्ति संपन्न स्थल लगा। मंदिर परिसर मे भ्रमण के दौरान वहां के आश्चर्य के किस्से सुनता रहा। मुझे लगा हर जगह पति पत्नी के रूप मे देवस्थान है। यहा भाई -बहन की मूर्ति स्थापित है, इसमे कुछ रहस्य है,जिसके बारे मे कोई कुछ नहीं बता रहा। वह रहस्य अभी तक नहीं खुला,वैसे तब से अब तक आधे दर्जन बार वहां जाचुका। पहली यात्रा में मेरे बेटे -बेटी भी साथ थे।
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया ,रथयात्रा के पावन पर्व पर सभी देश वासियों को बधाई। भुवनेश्वर उतर का त्रिमूर्ति के रूप में भगवान शिव का दर्शन और कोणार्क का सूर्य मंदिर दर्शनीय है। यहां से कुछ किमी दूर बाबुरी गांव में भगवान जगन्नाथ,शिव पार्वती, जड़ज्जागृत देवी दुर्गा माता के मंदिर की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा में वर्ष 2017के मई मे पांच दिन रुका रहा। मेरे साथ आशुतोष कुमार मेरे सुपुत्र भी साथ थे। ऋषि तुल्य जीवन बिता रहे डॉ मानस रंजन दास मिश्र के माता पिता से मिल कर बहुत खुशी है। उड़ीसा में हर कहीं चैतन्य महाप्रभु की परंपरा मे बाजे गाजे के साथ सामूहिक कीर्तन करते यहां लोगों को देखा। जिनका भाव पूर्ण कीर्तन हृदय को स्पंदित करता रहा।
श्रीजगन्नाथ मंदिर परिसर मे नित्य श्री जयदेव कृत गीत गोबिंद का गायन होता है। यहां अपने पितरों को पिंडदान भी करते लोगों को देखा। हम लोगों ने समुद्र की लहरों मे स्नान किया और मंदिर के तीब्र चुंबकीय शक्ति के बीच बैठ कर..भगवान जगन्नाथ के ऊपर विचार करता रहा। मुझे भगवान की तांत्रिक भावमयी मूर्ति लगी। जो माव समाधि मे डूबने के कारण तरल होगई है, इसलिए हाथ पैर दिखते नहीं,बस इसी भाव भूमि मे डूबा रहा। रथयात्रा के पहले राजा का सोने का झाड़ू लगाना,सड़क का धोया जाना भक्तों के द्वारा रथ खींच कर समुद्र किनारे लेजाना..यह सारे दृश्य आस्था के समुद्र के हैं। जो यहां लोगों के हृदय मे लहराते है। महाप्रभु के बैठकी का स्थान,भगवान के मौसी का घर,इन स्थलों में भगवान की उपस्थिति का एहसास रोमांचकारी है। मंदिर के कलश पर झंडा हवा के विपरीत दिशा मे फहरना, मंदिर के ऊपर से परिंदो का न जाना और समुद्र मे उफान आने पर भी समुद्र के जल का मंदिर तक न जाना आश्चर्य चकित करता है। यहां भगवान के हृदय मे स्पंदन होता है,नाड़ी चलती है और वे सामान्य इंसानों की भांति बीमार पड़ते हैं,उनका आषाढ़ कृष्ण पक्ष में मेडिकल चेकप और इलाज भी होता है। यह निश्चित रूप से जड़ का चेतन और चेतन का परमात्मा के आनंद सत्ता मे विलीनी करण का ही संदेश देता नजर आता है। साथ हम कलियुग के जीवों को भाई बहनों के बीच अटूट प्रेम की झांकी प्रस्तुत करता है।