के. विक्रम राव
इतनी लालच और लिप्सा गैर-हिंदू वोट हथियाने के लिए ? कांग्रेसी नेता जयराम रमेश का गीता प्रेस पर बयान इसका धोत्तक है। यूं रमेश स्वयं को हिंदूधर्म से जुड़े बौद्ध कहते हैं। उन्होंने कहा कि गोरखपुर के गीता प्रेस को गांधी पुरुस्कार देना, हत्यारे नाथूराम गोडसे को सम्मानित करने जैसा है। तरस आता है इस मैकेनिकल इंजीनियर पर जब वे “बौद्धिक” बातें करते हैं। क्या सोनिया-कांग्रेस भी इस पूर्व मंत्री की राय से सहमत हैं ? जवाब इसलिए चाहिए क्योंकि जयराम ने बिजली का तार छुआ है। बर्रे के छत्ते को छेड़ा है। उनकी पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी गत सप्ताह मध्य प्रदेश विधानसभा के आगामी निर्वाचन के ठीक पहले जबलपुर में नर्मदा नदी की पूजा कर के आई हैं। कर्नाटक चुनाव के मतदान के दिन प्रियंका शिमला के जाखू मंदिर गई थीं हनुमान जी की आराधना करने। कांग्रेस पार्टी के ट्विटर हैंडल से जयराम रमेश का गीता प्रेस वाला बयान नदारद है। क्या हैं इसके मायने ? उनकी यह घरेलू, निजी राय है क्या ? कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता (लखनऊ से संसदीय प्रत्याशी रहे) आचार्य प्रमोद कृष्णम ने तो कठोर लहजे में जयराम रमेश को पार्टी को हानि पहुंचानेवाला माना। कृष्णम ने कहा : “बीजेपी की मंशा है कि कांग्रेस पार्टी को हिन्दू विरोधी साबित किया जाए। कुछ कांग्रेसी नेता बीजेपी के काम को आसान बनाने में लगे हुए हैं। ये नेता जो पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं उसकी भरपाई करने में सदियां गुजर जाएंगी। गीता प्रेस कोई भाजपा थोड़ी है। गीता प्रेस के लगभग सौ साल हो गए हैं। तब तो बीजेपी का जन्म भी नहीं हुआ था। आचार्य प्रमोद ने इस संवाददाता को बताया कि जयराम रमेश का बयान सनातन धर्म के करोड़ों मानने वालों को आहत करता है।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जयराम रमेश सरीखे व्यक्तियों को “संयोग से हिंदू” बताते कहा कि इन सब लोगों को गीताप्रेस की आलोचना करने का अधिकार नहीं है। एक सदी से गीताप्रेस हिंदुओं की सेवा कर रहा है। योगी जी के बयान के संदर्भ में जयराम रमेश की भूमिका का उल्लेख हो। वे राष्ट्रीय मोर्चा सरकार में प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के कार्यालय में अधिकारी पद पर कार्यरत थे। फिर चंद सप्ताहों बाद ही उन्हें हटा दिया गया। जब वे कांग्रेस सरकार में पर्यावरण मंत्री थे तब उन्होंने झारखंड की पश्चिम सिंहभूमि की 595 हेक्टेयर की वन भूमि को इस्पात कंपनी को दे दिया था। हरियाली नष्ट कर दी थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी अपनी सरकार में रमेश को पर्यावरण से हटाकर ग्रामीण विकास विभाग में स्थानांतरण कर दिया था। वे एक विवादित मंत्री ही हमेशा रहे। कांग्रेस सरकार में उन्होंने मध्य प्रदेश के पीथमपुर के ग्रामीणों पर कार्बाइड कारखाने से जहरीले कचरे की चोरी-छिपे तस्करी करने और उसे डंप करने का आरोप लगाया। बाद में उन्हें माफी मांगनी पड़ी। जयराम ने 19 दिसंबर 2020 को डी कंपनियों के शीर्षक के तहत “कारवां” में प्रकाशित एक लेख के अनुसार विवेक डोभाल पर काले धन सिंडिकेट के संदर्भ वाला आरोप लगाया था। बाद में मानहानि के मामले में उन्होंने विवेक डोभाल और उनके परिवार से माफी मांगी। जयराम मई 2019 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी जमानत पर छूटे हैं। तो ऐसी है उनकी राजनैतिक विश्वसनीयता।
एक खास पहलू यहां ऐसा भी है कि अल्पसंख्यकों के धर्म प्रचारार्थ कई पुरानी संस्थाएं हैं जो गीता प्रेस जैसे ही कार्य करती हैं।
गत सदी में धर्म प्रचार हेतु बाइबिल और कुरान तथा अन्य मजहबी साहित्य को भारतीय भाषाओं में अनुवाद वे करती रहीं। मसलन लंदन (21 फरवरी 1811) में स्थापित “द बाइबल सोसायटी ऑफ इंडिया” का यही लक्ष्य है। इस सोसाइटी का उद्देश्य मसीहा के शब्द को अनुवाद करना है, जिन्हें लोग समझ सकते हैं। धर्मग्रंथों को सस्ती कीमत पर तैयार करना है ताकि लोग आसानी से खरीद सकें। बाइबिल सोसायटी विभिन्न भाषाओं में अनुवाद करने के लिए भारत में कई संगठनों के साथ मिलकर काम करती है। अब यह सोसाइटी मुख्यालय नागपुर से बैंगलोर चली गयी। यही बात औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में कार्यरत इस्लामी रिसर्च सेंटर एजुकेशनल एंड वेलफेयर ट्रस्ट की भी है। वह प्रकाशन तथा अन्य जनसंचार माध्यमों से कुरान तथा अन्य इस्लामिक साहित्य सस्ते मूल्य पर वितरित करता है। तो क्या ऐसी संस्थाएं कोई अनुचित कार्यक्रम चला रही हैं? गोरखपुर-स्थित गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि त्रिपाठी ने कहा : “हम केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘गांधी शांति पुरस्कार’ के लिए धन्यवाद देते हैं। मगर किसी भी प्रकार का दान स्वीकार नहीं करना हमारा सिद्धांत है। इसलिए न्यास बोर्ड ने निर्णय लिया है कि हम पुरस्कार स्वीकार करेंगे, लेकिन धनराशि नहीं लेंगे।” मसला अब कांग्रेस के पाले मे है कि जयराम रमेश सारीखों का क्या किया जाये ?