मजहब के नाम पर पसमांदा मुसलमानों का शोषण बंद हो!

के. विक्रम राव


भारत के अस्सी प्रतिशत मुसलमानों को अब कार्ल मार्क्स वाला वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त बड़ा नीक लग रहा होगा। डेढ़ सदियों से वे सब अमीर-कुलीन मुसलमानों द्वारा शोषण के शिकार होते रहे हैं। बैरिस्टर मुहम्मद अली जिन्ना ने उनकी पिछली पीढ़ी को ठगा था। ऑल-इंडिया मुस्लिम लीग के नाम पर। जिन्ना खुद तो इस्लामी पाकिस्तान के सुल्तान बन बैठे। भारत में जवाहरलाल नेहरू की भांति। जिन्ना ने इसका बखूबी फायदा उठाया। भारत को तकसीम करके। शेष सबको हिंदू हुकूमत तले छोड़ गए। नेहरू के रहम और दया के सहारे। अब इन शोषित, वंचित, सताये हुए मुसलमानों में वर्ग चेतना आई है। वे मार्क्स की बात समझ गए कि “मजहब अफीम है, जो सिर्फ सरमायेदारों और ताल्लुकेदारों का नायाब हथियार है।

विभाजन के 75 वर्ष बाद भारत की मुस्लिम आबादी के अस्सी प्रतिशत निर्धन जन ने देर से महसूस किया कि पहले जिन्ना ने उनको झांसा दिया था। तो अब भारत के अशरफ मुसलमान उनका उत्पीड़न कर रहे हैं। ऐसे अधिकांश पसमांदा मुसलमान आजतक इन अमीरजादे मुसलमानों की कारस्तानी के शिकार रहे। वे अधिकतर बाल काटने (नाई), जूतों की सिलाई व साइकिल पंचर बनाने और अंडा बेचने मे रह गए। उन्हें आम कब्रिस्तान तक में दफनाया नहीं जाता। एक चाल चली गई थी न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र आयोग ने कि इन गरीब मुसलमानों को हिंदूओं ओबीसी कोटा में जोड़ दिया जाए। इन पसमांदा मुसलमानों ने इसका विरोध किया क्योंकि यह कोटा भी अशरफ (रईस) मुसलमान हथिया लेते। भले ही वे सब अपने को उच्च श्रेणी का मानते हों। इनमें ज्यादातर अपना धर्म बदलकर इस्‍लाम में आए हैं। वे जिस जाति से आए थे, आज भी उन्हें उसी जाति के माने जाते हैं। भारतीय मुस्लिम भी तीन मुख्य वर्गो और सैकड़ों बिरादरियों में बंटे हुए हैं। उच्च जाति के अशरफ कहे जाने वाले मुस्लिम पश्चिम या मध्य एशिया से हैं। इसमें सैय्यद, शेख, मुगल, पठान आते हैं। भारत में सवर्ण जातियों से मुस्लिम बने लोगों को भी उच्च वर्ग में माना जाता है। इसीलिए मुस्लिमों में भी राजपूत, त्यागी, चौधरी, गौर लगाने वाले लोग मिल जाएंगे। सैयद ब्राह्मण माने जाते हैं। भारत में अरब, अफगानिस्तान और मध्य एशिया से आए मुसलमान खुद को हिंदुस्तानी मुसलमानों से ऊंचा कहते हैं। वंचित कौम है पसमांदा मुसलमान। यह लोग बहुमत में हैं। सताये और पिछड़े हैं। गत सदी से उनका संघर्ष चला था। क्योंकि अशरफिया मुस्लिमों का ही अरसे से देश की सत्ता पर कब्जा रहा। इसी वजह से आज भी उन्हीं का दबदबा है। आजादी के बाद भी इन्‍होंने ही कौम की अगुआई की। नतीजन पसमांदा मुसलमान राजनीतिक तौर पर हाशिये पर ही रह गए। भारत में नब्बे के दशक में पसमांदा मुसलमानों के दो बड़े संगठन खड़े हुए थे : ऑल इंडिया यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा और ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज। दोनों संगठन देशभर में पसमांदा मुस्लिमों के सभी छोटे संगठनों का नेतृत्व करते हैं। मगर कट्टर मुस्लिम मजहबी नेता इन दोनों संगठनों को गैर-इस्लामी कहते हैं।

अशरफिया मुस्लिमों का ही देश के ज्यादातर मुस्लिम संगठनों पर दबाव है। जमात-ए-उलेमा-ए-हिंद, जमात-ए-इस्लामी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और इदार-ए-शरिया में भी वे ही लोग कब्जा जमाये हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया इस्लामिया, मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन, उर्दू एकेडमी जैसी सरकारी संस्थाओं में भी अशरफिया मुसलमानों की हिस्‍सेदारी ज्यादा है। लेखक अली अनवर और मसूद आलम फलाही कि किताबों के मुताबिक, मुस्लिम समाज में जाति आधारित कई परतें हैं। जाति पर ही मुसलमानों में भी हिंदुओं की तरह भेदभाव होता है। नमाज पढ़ते समय मस्जिदों में यह साफ नजर आता है। तो ये बेचारे पसमांदाजन हैं क्या ? राइन, अंसारी, मंसूरी, कुरैशी, अल्वी, सलमानी, हलालखोर, घोसी, हवाराती, सैफी, सिद्दीकी, इदरीसी, वनगुर्जर जाति के लोग। हालांकि धार्मिक नेताओं ने उनके इंसाफ मांगने वाले आंदोलन को गैर-इस्लामी करार दिया है। राजनीतिक दृष्टि से पसमांदा समाज के लोग देश के लगभग 18 राज्यों में हैं। सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में है। हर विधानसभा सीट पर इनकी उपस्थिति अच्छी खासी संख्या में है। इनमे करीब 44 जातियां शामिल हैं। यह वोट बैंक लोकसभा की सौ से अधिक सीटों पर प्रभावी है।

यूं आमतौर पर हिंदू पार्टी की छवि होने, खासकर बाम्हन, बनिया के कारण, भारतीय जनता पार्टी पर इन पसमांदा मुसलमानों का भरोसा अधिक नहीं है। पर हाल ही में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने अवसरवादी अशरफ (उच्च कोटि के) मुसलमानों के प्रचार जाल में न पड़कर कई पसमांदा मुसलमानों को टिकट दिए। परिणाम अच्छे आए। हालांकि यह कुछ भाजपा नेताओं के लिए मनभावन नहीं था। मगर नरेंद्र मोदी ने इतना तो अच्छा किया कि वे उन भाजपाई मुसलमानों, जो बिना जड़ के नेता हैं केवल हिंदू दुलहनियों के पति हैं, को सत्ता की मलाई अब चखने नही दी। उन्हें बरतरफ कर दिया है। मोदी ने इन सर्वहारा मुसलमानों को महत्त्व देने की योजना पर विचार किया है। अर्थात मुसलमान का यह वर्ग संघर्ष तेज करेगा। अतः बहुसंख्यक हिंदुओं को गहन मंथन करके निर्णय लेना चाहिए कि उनकी हमदर्दी इन शोषित, पसमांदा जन के लिए है या स्वार्थी, अवसरवादी उच्च इस्लामी तबके के पक्ष में ?

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