रंजन कुमार सिंह
भारत दुनिया में बीफ़ का निर्यात करने वाले पांच सबसे बड़े देशों में से एक है। लेकिन बीफ़ में भारत सिर्फ़ भैंस के मांस का निर्यात करता है। सच्चाई ये है कि बीफ़ की परिभाषित अंतरराष्ट्रीय श्रेणी में गाय-बछड़ों के अलावा भैंस भी शामिल हैं। समाज में ज़हर फैलाने वाली मीडिया द्वारा जानबूझ कर बीफ़ का अनुवाद ‘गौमांस’ किया जाता है। क्योंकि यही ऐसा मुद्दा है जिसके ज़रिए अफवाहों का बाजार गर्म किया जा सकता है।
एक बड़ा भ्रम अक्सर यह फैलाया जाता है कि बीफ़ कारोबार में सिर्फ़ मुसलमान लगे हुए हैं और सबसे ज़्यादा बीफ़ निर्यात खाड़ी के देशों में होता है। तथ्य ये है कि भारत सबसे ज़्यादा बीफ़ निर्यात दक्षिण-पूर्वी एशिया के मुल्क़ों को करता है, जिनमें वियतनाम शीर्ष पर है और इस कारोबार में ब्राह्मण और जैन समुदाय, जो धार्मिक मान्यताओं के चलते शाकाहारी होते हैं, के लोग बड़ी संख्या में शामिल हैं। साफ़ है कि चुनावों के दौरान संघ परिवार की ‘गौमांस निर्यात’ पर पाबंदी की अक्सर उठने वाली मांग तथ्यात्मक तौर पर ग़लत और भ्रामक है। ‘गौमांस निर्यात’ विवाद का मुद्दा ही नहीं बन सकता क्योंकि देश में पहले से ही गौमांस पर प्रायः पाबंदी है।
समाज की मान्यता के दायरे में किसी बात को अगर लोगों के कान में डाल दी जाए तो ‘अपरिचित’ नहीं लगने की वजह से लोग उस पर भरोसा करने लगते हैं। यानी मान्यता, भरोसा और विश्वसनीय लग सकने भर की वजह से लोग किसी भी अफवाह पर आसानी से यक़ीन करने लगते हैं। सूचना के अभाव के चलते इस तरह अफ़वाह का जन्म होता है।