सावन का संगीत

डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी
    डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी

यहा़ वर्षा छिटपुट,
कहीं बाढ़ कहीं झुट पुट।
ऊमस से राहत देती हल्की हवा।
मिल रही शिव गौरी..कृपा
हमें थोड़ी राहत दिया।।
होरही खेतों मे बैठौनी.. लगातार।

कोटि कोटि शिवभक्त चले कांवर ले,
बोल बम बोल बम के नारे के साथ,
चढ़ाने भोलै नाथ को जल,
पांव पड़े छाले पर .. पर बेपरवाह,
कर रहे कुछ ,
उखड़ती सांस से सहम
विश्राम के लिए छांव की तलाश,
तो कुछ अघोरियो के साथ लगा रहे दम।
गांवों मे शिव मंदिरों पर ,
चढ़ा रहे नर नारी ..चार बजे भोर से,
शिव पर जल.. बेल पत्र.. अक्षत.. मंदार पुष्प.. भांग,
और फल।

जय जय कार से गूंज उठे मंदिर,
बज रहे घंटे घन घन,फूट रहे
जय शिव ओंकारा.. के मुखर संगीत के स्वर।
बीच बीच मे जय जय के शब्द।
सड़कों पर भगवा कपड़े मे कांवरिये,
बहंगी पर लिए दोनो तरफ कलश मे जल।
गाते जय शिव ! जय शिव!!
हर हर बम बम।

भर गई सड़कें..
रुक गए बाहन थम गए पहिये।
चारो तरफ शिव शिव।
दिल्ली पंजाब मे पानी ही पानी..
हिमाचल मे भूस्खलन..
पहाड़ो पर फट रहे बादल,
होरही आकाश मे घन गर्जना घन घोर।
चारो तरफ शोर ही शोर।
अरे सड़को पर पानी.. घरों मे पानी.. मंदिर मे पानी..
जम्मू में पानी से लबालब भरा चेनाब और व्यास ,
दिल्ली मे बिगड़ गई
यमुना की हथिनी बैराज।
होरही सहायता की चीख पुकार,
सहम रहे परिवार।।
कैसे गायें कजरी के गीत
झूला संगीत,
‘अरे रामा सावन में घन घोर बदरिया छाई रे हरी!’
कैसे मारें कान्हां झूले मे पेंग?
झुलावैं सखिया प्यारी‌‌
कैसे हो आयोध्या के मणि पर्वत पर,
राम जी के सिया जू के
झूलन के पद,
आने वाला कल–
होगा सुखद.. भरे उम्मीद,
हम करबद्ध हो करते है विनती कन्हैया!..
चारो ओर खत्म हो प्रलय और
घर घर गूंजे मेघ मल्हार और
कजरी के गीत‌।
खिल उठे भारत के नन्हें मुन्नों का
तोतले बोल मे अस्फुट गीत
और देश मे
हरियाली का गूंज उठे पावन संगीत।

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