स्वतंत्रता दिवस पर आजादी का जश्न मनायें

डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी
डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी

आजादी का जश्न मनायें,

सब मिल कर जनगणमन गायें।।

जिसके लिए शहीद हो गए,लाखो युवा वीर बलिदानी।

जिसके लिए  सड़क पर निकले पंडित मुल्ला ज्ञानी ध्यानी।।

 

बना फौज आजादहिंद का,वीर सुबास इधर टकराये।

छक्के तुड़ा दिए वीरों ने लिये बम फेंके पिस्टल लहराये।।

जेल गए,फांसी पर झूले झंडा कभी न झुकने पाया।

भारत माता की जय बोले,हिम्मत कभी न डिगने पाया।।

गांधी जी ने सत्याग्रह का ऐसा बुना जाल  चरखे से।

सत्ता का सिंहासन डोला,मांग उठी हर गांव शहर से।।

 

सत्य अहिंसा ब्रह्मचर्य अपरिग्रह को ही ढाल बनाया।

आधी धोती पहन के निकले इस फकीर ने अलख जगाया।।

सभी जाति सब धर्म जोड कर,भिड़े ब्रिटिश शासन से बापू।

सत्याग्रह को शस्त्र बना कर ,सत्ता से टकराये बापू।।

चली गोलियां घोडे दौड़े ,सत्याग्रही न डिगे रंच भर।

जेल गए,लाठियां चली जब ,सिर फूटे तब गिरे भूमि पर।।

 

लहुलुहान हुए ,पर झंडा लिए लगाते जयहिंद नारे।

भीड़ उमड़ आती पीछे से,अंग्रेजों के सैनिक हारे।।

गजब अहिंसक आंदोलन था, क्रूर ब्रिटिश के माथे ठनके।

बार बार  टकराहट होती,बार बार जेलों को भरते।।

 आखिर सत्ता ने झुक कर के आजादी की स्वीकृति दे दी।

वह दिन था पंद्रह अगस्त का,भारत मां की बेड़ी टूटी।।

Litreture

विश्व हिंदी दिवस पर, प्रणव गुंजार है हिंदी

हिंसा से जिसको दुख होता वह है हिंदुस्थान हमारा। और अहिंसा मे जो जीता ऐसा हिंदू नाम हमारा।। प्रेम भाव से विश्व बनाया वह सच्चिदानंद जग पावन। यहां बाल क्रीड़ा करते हैं बारंबार जन्म ले उन्मन।। कभी राम बन कर आता हैं, कभी कृष्ण बन खेल रचाता। गौएं चरा बजाता वंशी । हलधर हो बलराम […]

Read More
Litreture

यदि आप साहित्य प्रेमी है तो यह आपके लिए भी जानना है बहुत जरूरी

लोरी के रूप में मां के मुंह से उपजा बाल साहित्य साहित्य अकादेमी दिल्ली का आयोजन अब नजरंदाज हो रहा है बाल साहित्य नया लुक संवाददाता लखनऊ। साहित्य अकादेमी दिल्ली के दो दिवसीय आयोजन के दूसरे दिन हिंदी संस्थान के निराला सभागार में चले बाल साहिती के सत्रों में संगोष्ठी, काव्य समारोह के संग पुरस्कृत […]

Read More
Litreture

स्त्री-पुरुष से बाहर कुछ और लोग हैं, उनकी समस्या पर बोलें, तब बदलेगा समाज

मंथन फाउंडेशन के अंतर्गत साहित्य अकादमी दिल्ली में जेंडर इक्वालिटी संगोष्ठी का हुआ आयोजन समाज में स्त्रियों के भीतर की पितृसत्ता को निकलना अधिक कठिन है, मां एक पीढी में बदलाव ला सकती है नया लुक संवाददाता नई दिल्ली। साहित्य से समाज नहीं वरन् समाज से साहित्य है…और इसलिए साहित्य की चर्चा के साथ साथ […]

Read More