के. विक्रम राव
भारत में महिला फुटबॉल टीम कब विश्व-स्तर पर खेल पाएगी ? यह सवाल मसला बन गया है जब कल (21 अगस्त 2023) विश्व कप प्रतियोगिता में पिछड़े यूरोपियन राष्ट्र स्पेन ने अतिविकसित देश इंग्लैंड को पराजित कर दिया। भारतीय महिला राष्ट्रीय टीम ने अभी तक विश्व कप और ओलंपिक खेलों में भाग नहीं लिया। फीफा रैंकिंग के अनुसार भारतीय टीम की रैंकिंग 61 है। स्पेन की महिला टीम ने फीफा विश्व कप खिताब के मामले में अपने ही देश के पुरुष टीम की बराबरी कर ली है। पुरुष टीम ने एक ही बार विश्व कप 2010 में जीता था। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी स्टेडियम में खेले गए फाइनल में स्पेन ने इंग्लैंड को बेशक हरा दिया। मैच का एकमात्र गोल स्पेन की कप्तान ओल्गा कारमोना ने 29वें मिनट में दागा था। टीम को चैंपियन बना दिया।
महिलाओं के फुटबॉल खेलने में एक गलत अवधारणा बाधक है। यही कि गर्भधारण में खेल से अड़चन आ जाती है। यह कोरी कल्पना है। इंग्लैंड में जहां महिला फुटबॉल बहुत लोकप्रिय हैं, जाने-माने खिलाड़ी मां बनी हैं। केर्टा चैपमन अभी 41 साल में मां बनी। बत्तीस-वर्षीया केसी जीन स्टोनी तो कोच भी बन गईं। अब तो हर गर्भवती फुटबॉलर 14 सप्ताह की छुट्टी की हकदार हैं। इसमें शिशु के जन्म के बाद कम से कम आठ सप्ताह की छुट्टी भी शामिल हैं। कभी कुछ औपचारिक सुरक्षा के साथ गर्भावस्था और प्रसव का सामना करना पड़ता था, लेकिन जनवरी 2021 में पेश फीफा नियम मातृत्व अवकाश के लिए वैश्विक न्यूनतम मानक प्रदान करते हैं। महिला फुटबॉल खिलाड़ी अब गर्भावस्था या प्रसव के कारण उनके साथ हुये गलत व्यवहार का मामला फीफा डीआरसी (विवाद समाधान चैंबर) में ले जा सकती हैं।
फीफा ने तीन साल पहले गर्भवती खिलाड़ियों की आर्थिक सुरक्षा और व्यवसायिक करियर को ध्यान में रखते हुए नए नियम बनाए थे। इसके तहत 14 हफ्ते की प्रसव अवकाश को मंजूरी दी गई थी। यह भी कि इस अवकाश के बाद फुटबॉल क्लब महिला खिलाड़ियों की वापसी में पूरा सहयोग करेंगे। इसी का नतीजा है कि फीफा वर्ल्ड कप 2023 में कुछ सुपरमॉम भी हिस्सा ले रही हैं। महिला फुटबॉल विश्व कप में हिस्सा ले रही अमेरिकी फुटबॉल टीम में तीन ऐसी खिलाड़ी हैं, जो मां बनने के बाद मैदान पर आयी हैं। इसमें सबसे बड़ा नाम एलेक्स मॉर्गन का है। चौतीस साल की एलेक्स अमेरिका की स्टार फुटबॉलर हैं। वो तीन फीफा वर्ल्ड कप खेल चुकी हैं। दो बार विश्व कप जीतने वाली अमेरिकी टीम का हिस्सा रही हैं। वो तीन साल पहले मां बनी थीं और इस बार भी टूर्नामेंट में शिरकत कर रहीं। उनके अलावा क्रिस्टन डन और मिडफील्डर जूली अटर्ज भी शामिल हैं। मोर्गन का तो मानना है कि बेटी के जन्म के बाद एक खिलाड़ी के तौर पर वह अधिक समझदार हो गईं हैं।
अब गौर कर लें तुलनात्मक रूप से कि स्पेन की महिला टीम ने ऐसा गजब कैसे ढाया जब विश्वकप में सबसे मजबूत इंग्लिश टीम को एक गोल से हराकर कप कब्जे में ले लिया। सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) के मैदान में स्पेन की यह जीत भारत के लिए काफी मायने रखती है। इस बात की तस्दीक भी की भारतीय मूल के ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने। कल उन्होंने अपनी राष्ट्रीय टीम के सदस्यों की पराजय पर “मेरी बेटियों” को कहकर संबोधित करते संतावना भी बंधायी : कि अगली बार कप आप लोग जीत लेंगी। हालांकि उनका 57 सालों से सपना अधूरा ही रहा।” सुनक ने लिखा : कि इंग्लैंड की पुरुष/महिला टीम 1966 के बाद से विश्वविजेता नहीं बनी है।” फुटबॉलर हैरी केन समेत इंग्लैंड के सभी बड़े सितारे “लायेनिस” के नाम से मशहूर इंग्लैंड टीम को ऋषि सुनक ढाढ़स बंधा रहे थे।
प्रधानमंत्री ने तो यहां तक कहा : कि हमारी खिलाड़ियों ने महिला फुटबॉल के लिए एक स्थाई विरासत बनाई है, जिससे मेरी दोनों बेटियों कृष्णा और अनुष्का सहित इंग्लैंड की बाकी स्कूल बच्चियां भी प्रेरित हो रही हैं। सुनक ने ट्वीट में लिखा : कि आपने मैदान पर अपनी पूरी जान लगाई। ऐसा नहीं होना था, लेकिन आपने गेम चेंजर के रूप में अपनी विरासत पहले ही सुरक्षित कर ली है। हम सभी को आप पर बहुत गर्व है। भारत की तुलना में स्पेन बड़ा पिछड़ा राष्ट्र है, भले ही आधुनिक यूरोप का हो और हम पुरातन एशिया के। गत सदी में तानाशाह जनरल फ्रांसिस्को फ्रेंको (1939 से 1975 तक) ने तानाशाह बनाकर अपने देश का बेड़ा गर्क ही कर दिया था। यूरोप में स्पेन को बीमार, कमजोर, कंगाल कहा जाता था। वह एक छद्म-फासीवादी राज्य था। इस राष्ट्र में अंधों की भांति केवल मजबूत पुरुष-नेतृत्व की भूमिका की ही प्रशंसा होती थी। आज वहां की महिलाओं को सुरक्षा के साथ सारी रियायते दी जाती हैं।
माहवारी के लिए प्रतिमाह तीन दिन का अवकाश भी। फुटबॉल के खेल को खूब प्रोत्साहित किया जाता है। वस्तुतः विश्व फुटबॉल फाइनल में भिड़ंत थी गुलाब–तरुणियों बनाम शेरनियों में। स्पेन की महिला टीम को “ला रोजा” (गुलाब) और इंग्लैंड की टीम को “लायेनस” (बब्बर शेरनी) कहा जाता है। अर्थात कोमल और सुगंध ने दहाड़ तथा चिंघाड़ पर जीत हासिल की। यह केवल प्रतीकात्मक ही नहीं, सारगर्भित भी है। भारतीय महिला तो अरसे से वीरांगना कहलाती हैं। सिंहनी भी। फिर फुटबॉल खेलना क्या चीज है?