- भूदान यज्ञ आंदोलन के प्रणेता
- जिन्होंने देश के लिए किया जीवन दान
- गांधी से प्रभावित हो उनके शिष्य बने
- प्रथम सत्याग्रही थे विनोबा
- 42 भाषाओं के जानकार कुशल अध्येता
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
संत विनोबा के बारे मे मैने धरती पर आंख खोलते ही जाना। मेरे पिताजी इनके मुरीद थे। बचपन से इनका लिखा गीता प्रवचन पूरा परिवार नित्य प्रात: चार बजे, गांधी जी की सर्वधर्म प्रार्थना के बाद सुनता था। उस समय 1947 मे मिली आजादी के बाद भी आंदोलनों का असर भारतवासियों के मनोमष्तिष्क से उतरा नहीं था। रोज सुबह शाम चर्खा चलाना, एक मुट्ठी अनाज सर्वोदय पात्र मे डालना और स्वावलंबी बनने की प्रेरणा हमें मिलती थी। गांधी के ग्राम स्वराज्र और विनोबा की बातें सुनाने वाले एक स्वाधीनता संग्राम सेनानी स्व सूर्यनारायण मिश्र जी नित्य मेरे घर आते थे। चर्चा मे आजादी की लड़ाई,बलिदानियों की चर्चा के अलावा देश के अभ्युत्थान के लिए क्या किया जाना चाहिए? ही विषय होता। आजादी के बाद संत विनोबा भावे ने गरीब परिवारों की मदद के लिए सर्वोदय आंदोलन चलाया और समूचे देश मे पैदल यात्रा शुरु कर दी।
सर्वोदयी कार्यकर्ता अक्सर मेरे घर आकर ठहरते। राजकरन भाई सर्वोदयी थे वर्षों तक भूदान यज्ञ का प्रचार करते रहे ,उसके बाद संपत भाई आए,उनकी खझड़ी पर भजन अब तक मुझे याद है, ‘शांति के सिपाही चले,क्रांति के सिपाही चलै । वैर भाव तोड़ने दिल को दिल से जोड़ने। वर्ष 1959-60 में हुए गोरखपुर मे हुए सर्वोदय सम्मेलन और 1969-70 के राजगीर सर्वोदय सम्मेलन मे मैं भी माता पिताजी के साथ भागीदार रहा। बिहार के राजगीर में शिविर मे रहा ,जहां संत विनोबा भावे,जयप्रकाश नारायण प्रभावती देवी,पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरी,प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ,आचार्य कुल के प्रोफेसर राम मूर्ति समेत अनेक सर्वोदयी विचारक पधारे थे। उस बीच विश्व शांति स्तूप का उद्धाटन हुआ और देश विदेश के बौद्व पहुंचे थे। विनोबा का आंदोलन समूचे भारत मे एक अलग ढंग से गरीबी उन्मूलन मे लगा था। वे जगह जगह भ्रमण कर गांव के सबसे बड़े संपन्न व्यक्ति के पास जाते भूमि दान मांगते,फिर गांव के ही गरीब परिवार को दे देते। लोग खुशी खुशी दे भी देते थे। विनोबा जी जिस प्रांत मे जाते वहां की भाषा सीखते, वहां के ग्रंथ पढ़ते उसका सारांश लिखते और वहां के लोगों को उन्ही की भाषा मे सर्वजन हिताय चिंतन की प्रेरणा देते थे। गीता के 18अध्यायों को उन्होंने 108सूत्र बना कर उसकी सरलतम व्याख्या लिखी ,जो सबकी समझ मे आने वाली थी। महात्मा गांधी को जहां गीता समझ मे नहीं आती थी,विनोबा जी को बुलाकर समझते थे। महात्मा गांधी के हर सत्याग्रह मे शामिल होने के साथ वे उपवास मे एक दिन पहले बैठ जाते और गांधी जी के उपवास खत्म होने के एक दिन बाद अपना उपवास खत्म करते थे।
जीवन परिचय : आचार्य विनोबा भावे का जन्म, 11 सितंबर, 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा ज़िले के गागोडा गांव में, एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका मूल नाम, विनायक नरहरि भावे था। उनके पिता का नाम, नरहरि शंभू राव व माता का नाम, रुक्मिणी देवी था। उनकी माता, एक विदुषी महिला थी। आचार्य विनोबा भावे का ज़्यादातर समय धार्मिक कार्य व आध्यात्म में बीतता था। बचपन में वह अपनी मां से संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर और भगवत् गीता की कहानियां सुनते थे। इसका प्रभाव, उनके जीवन पर काफी गहरा पड़ा और इस वजह से उनका रुझान, आध्यात्म की तरफ बढ़ गया। आगे चलकर, विनोबा भावे ने रामायण, कुरान, बाइबल, गीता जैसे अनेक धार्मिक ग्रंथों का, गहन अध्ययन किया। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ, और अर्थशास्त्री भी थे। उनका संपूर्ण जीवन साधु, सन्यासियों व तपस्वी की तरह बीता। इसी कारण, उनको संत कहकर संबोधित किया जाने लगा।
वह इंटर की परीक्षा देने के लिए 25 मार्च, 1916 को मुंबई जाने वाली रेलगाड़ी में सवार हुए, परंतु उस समय उनका मन स्थिर नहीं था। उन्हें लग रहा था, कि वह जीवन में जो करना चाहते हैं, वह डिग्री द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। उनके जीवन का लक्ष्य, कुछ और ही था। अभी उनकी गाड़ी सूरत पहुंची ही थी, कि उनके मन में हलचल होने लगी। गृहस्थ जीवन या संन्यास, उनका मन दोनों में से किसी एक को नहीं चुन पा रहा था। तब थोड़ा विचार करने के बाद, उन्होंने संन्यासी बनने का निर्णय लिया, और हिमालय की ओर जाने वाली गाड़ी में सवार हो गए।
1916 में मात्र 21 वर्ष की आयु में, उन्होंने घर छोड़ दिया और साधु बनने के लिए, काशी नगरी पहुंच गए। वहां पहुंचकर, उन्होंने महान पंडितों के सानिध्य में, शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। उस समय, स्वतंत्रता आंदोलन भी अपनी चरम सीमा पर था। महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटकर भारत आ गए थे। तब विनोबा जी ने, अहमदाबाद के कोचरब आश्रम में, गांधी जी से पहली मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद, उनका जीवन बदल गया और उन्होंने अपना पूरा जीवन, गांधीजी को समर्पित कर दिया। 1921 से 1942 तक, वह अनेकों बार जेल गए। उन्होंने 1922 में नागपुर में सत्याग्रह किया, जिसके बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया। 1930 में विनोबा जी ने, गांधीजी के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह को अंजाम दिया। 11 अक्टूबर, 1940 को प्रथम सत्याग्रही के रूप में, गांधी जी ने विनोबा भावे को चुना।
समय के साथ, गांधीजी और विनोबा के संबंध काफी मज़बूत होते गए। वह गांधी के आश्रम में रहने लगे, और वहां की गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। आश्रम में ही, उनको विनोबा नाम मिला। आचार्य विनोबा भावे ने गरीबी को खत्म करने के लिए, काम करना शुरू किया। 1950 में उन्होंने, सर्वोदय आंदोलन आरंभ किया। इसके तहत, उन्होंने ‘भूदान आंदोलन’ की शुरुआत की। 1951 में, जब वह आंध्रप्रदेश का दौरा कर रहे थे, तब उनकी मुलाकात, कुछ हरिजनों से हुई, जिन्होंने विनोबा जी से 80 एकड़ भूमि उपलब्ध कराने की विनती की।
विनोबा ने, ज़मींदारों से आगे आकर, अपनी ज़मीन दान करने का निवेदन किया, जिसका काफी ज़्यादा असर देखने को मिला और कई ज़मींदारों ने, अपनी ज़मीनें दान में दीं। वहीं इस आंदोलन को पूरे देश में प्रोत्साहन मिला। 1959 में उन्होंने, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, ब्रह्म विद्या मंदिर की स्थापना की। स्वराज शास्त्र, गीता प्रवचन और तीसरी शक्ति उनकी लिखी किताबों में से प्रमुख है। नवंबर 1982 में विनोबा भावे, गंभीर रूप से बीमार हो गए और उन्होंने, अपने जीवन को त्यागने का फैसला किया। उन्होंने जैन धर्म के संलेखना-संथारा के रूप में, भोजन और दवा को त्याग दिया और इच्छा पूर्वक, मृत्यु को अपनाने का निर्णय लिया। 15 नवंबर, 1982 को विनोबा भावे ने, दुनिया को अलविदा कह दिया।