
- निर्जल व्रत कर होगी गौरी आराधना
- वर्ष का सबसे कठोर व्रत
- हर सुहागिन करती है व्रत,मायका करता है सहयोग
भाद्रपद शुक्ल पक्ष के तीज का व्रत सबसे कठोर व्रत है, जिसे विवाह के बाद हर सुहागिन निर्जल रह कर पति के दीर्घ, निरोग जीवन,अपने सुहाग की रक्षा के लिए करती है। चतुर्थी युक्त तीज व्रत के बारे मे कहा गया है कि हरितालिका तीज “अवैधव्यकरा स्त्रीणां पुत्र पौत्र प्रवर्द्धिनी”। पूर्व में हिमांचल पुत्री गौरी ने कठोर व्रत कर शिव का वरदान हासिल किया था। स्वयं शिवलिंग से प्रकट होकर गोरी पार्वती को वरण किया और उनकी समस्त मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया था। हजारों साल तक देवी पार्वती ने तप किया तो हरितालिका तीज के दिन ही आकाशवाणी हुई-
भयउ मनोरथ सफल तव,सुनु गिरिराज कुमारि।
परिहरु दुसह कलेस सब, अब मिलहहिं त्रिपुरारि।।
फिर शिवलिंग से शिव ने प्रकट होकर दर्शन दिया। देवी पार्वती से विवाह कर उनकी मनोकामना पूरी किया। यह कथा सर्व विदित है। तब से सभी सुहागिनें इस तिथि पर निर्जल व्रत करती हैं। भोर चार बजे सरगही खाती हैं। दिन भर उपवास के बाद सायंकाल नये वस्त्र आभूषण पहन कर सचहागिन रूप में शिव मंदिर जाकर महागौरी की अक्षत,चंदन,पुष्प,धूप दीप नैवेद्य से पूजन करती हैं। फिर घर लौटती हैं। दूसरे दिन भोर मे ब्राह्मण को सुहाग की सामग्री,वस्त्र अन्नादि और दक्षिणा दान कर जल ग्रहण करती हैं।