नारी आरक्षण पर कितने पापड़ बेले गए, यादव-बंधु विफल रहे!

के. विक्रम राव

मशहूर लोकोक्ति है: “सफलता के बाप कई होते हैं। विफलता यतीम होती है।” अतः अब महिला आरक्षण बिल पारित होते ही, उसके दावेदार कई जन्मे हैं। गत 27 वर्षों में यह पांचवा प्रयास रहा। चार फेल हो गए थे। सात दशकों में भारत में कुल 7500 सांसद हुए। इनमें केवल 600 ही महिलाएं हुई। अभी तक गैस सिलेंडर, मुफ्त वाशिंग मशीन, गृहणी पारिश्रमिक, सरकारी नौकरियां आदि ही उन्हें दी जाती रहीं। अतः नारी शक्तिवंदन विधेयक 2023 एक ऐतिहासिक मील पत्थर है। इस पर पहली प्रतिक्रिया आयी नारीश्रेष्ठ सोनिया गांधी की। वे बोली : “राजीव गांधी का सपना साकार हुआ।” मगर राजीव के पुत्र राहुल गांधी ने अड़ंगा लगा ही दिया। वे बोले : “इसमें अन्य ओबीसी की महिलाओं के लिए अलग आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए, क्योंकि इसके बिना यह विधेयक अधूरा है।” उन्होंने सदन में सरकार से आग्रह भी किया कि तत्काल जातीय जनगणना कराई जाए और संप्रग सरकार के समय हुई जातीय जनगणना के आंकड़े जारी किए जाएं। रोड़ा अटकाने की कोशिश!

सोनिया गांधी का बयान दुतरफा था : “कांग्रेस की मांग है कि इस बिल को फौरन अमल में लाया जाए। सरकार को इसे परिसीमन तक नहीं रोकना चाहिए।” उसी सांस से कह गईं : “जातिगत जनगणना कराकर, इसमें एससी-एसटी और ओबीसी महिलाओं के आरक्षण की व्यवस्था भी की जाए। कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मापन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे ने बड़े सटीक तरीके से कहा : “सरकार चाहे तो इसे अभी लागू कर सकती है। कल करे सो आज कर और आज करे सो अब।” वाह ! खड़गे का हमलावर सवाल था : “भाजपा नौ सालों तक इंतजार क्यों करती रही ?” अब इन कांग्रेसियों से आम भारतीय महिला तो जानना ही चाहेंगी कि स्वतंत्रता के 75-वर्षों में इसी कांग्रेस की सरकार छः दशकों से अधिक रही थी। सोनिया गांधी के कठपुतली प्रधानमंत्री थे सरदार मनमोहन सिंह। दस साल पीएम रहे। तब यह महिला आरक्षण कानून क्यों नहीं बन पाया ? उसी दरम्यान कांग्रेस-समर्थित संप्रग सरकार थी। तब देवगौड़ा प्रधानमंत्री थे। कम्युनिस्ट सांसद 72-वर्षीया गीता मुखर्जी ने 12 सितंबर 1996 को यह बिल लोकसभा में पेश किया था।

मगर यह 81वां संशोधन समर्थन के अभाव में गिर गया। तब सोनिया गांधी की कांग्रेस पार्टी इसे पारित नहीं करा पायी। अभी तक 1996 से कई बार इस बिल को कानून बनाने के प्रयास होते रहे। सभी असफल रहे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था। कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा। बिल पारित नहीं हो सका। यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया। वहां यह बिल नौ मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ। बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था। मगर यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया। क्योंकि इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं। ये दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे। कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार गिर सकती है।

सोनिया गांधी से ही यह सवाल किया जाए कि उनकी सास महाबलशालिनी इंदिरा गांधी 15-वर्षों तक संपूर्ण सत्ताधारी रहीं। क्यों नहीं कर पायीं ? उनके पुत्र राजीव गांधी के लोकसभा सदस्य तो 410 थे, जितनी उनके नाना जवाहरलाल नेहरू तक कभी नहीं जीत पाये। तो यह प्रश्न सोनिया ने अपने पतिदेव से क्यों नहीं पूछा? इस बहस के क्रम में पिछड़ा जाति के नाम पर मलाई खानेवाले राजनेताओं के शोषक चरित्र को उजागर करना जरूरी है। मेरे आंकलन में डॉ. राममनोहर लोहिया के नाम पर पिछड़ा वर्ग पर एकाधिकार जमाये रखने वाले यदुवंशियों में डॉ. लोहिया की नर-नारी समानता की नीति को ही निरर्थक बना दिया था। संसद में यदि आज तक यह बिल पारित नहीं हो पाया तो तीन यादव नेताओं का ही कारण है। प्रमुख थे शरद यादव। फिर आए चारा कांड के हीरो लालू यादव। दुखद रहा लोहियावादी मुलायम सिंह यादव द्वारा विरोध। दुखद इसलिए कि लोहिया के चिंतन और नीतियों को मुलायम सिंह ने पढ़ा था, जाना था, लागू भी किया था। शरद यादव ने तो यहां तक कहा था कि परकटियों (बाब्ड हेयर वालों) को ही फायदा होगा।

इन्हीं यदुवंशी बंधुओं की गाथा अब सुनिए। साल 1998 में जब यह बिल संसद में आया तो लालू प्रसाद यादव की राजद पार्टी के एक सांसद सुरेंद्र यादव ने लालकृष्ण आडवाणी के हाथ से महिला आरक्षण बिल की कॉपी लेकर फाड़ दी थी। उसके बाद सुरेंद्र यादव कभी लोकसभा नहीं पहुंच पाए। सुरेंद्र यादव का कहना था कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर उनके सपने में आए थे और उन्हें कहा कि संविधान खतरे में है, इसलिए उन्होंने बिल की कॉपी फाड़ दी। आठ मार्च 2010 की दोपहर। राज्यसभा में अफरा-तफरी मची थी। समाजवादी पार्टी के सांसद नंदकिशोर यादव और कमाल अख्तर चेयरमैन हामिद अंसारी की टेबल पर चढ़ गए और माइक उखाड़ने की कोशिश की। राष्ट्रीय जनता दल के राजनीति प्रसाद ने बिल की कॉपी फाड़कर चेयरमैन की तरफ उछाल दी। लोकजनशक्ति पार्टी के साबिर अली और निर्दलीय सांसद एजाज अली ने भी बहस रोकने की कोशिश की। ये लोग महिला आरक्षण विधेयक का विरोध कर रहे थे। नर-नारी के मामले में डॉ. लोहिया की बात जान लें उन्होंने लिखा था : “तात्पर्य यही होता है कि नर और नारी की गैरबराबरी को खत्म किए बिना, मेरी समझ में, दूसरी भी गैर बराबरी खत्म करना असंभव है और यह गैरबराबरी खत्म तभी होगी जबकि नारी को, शायद हमेशा के लिए, संगठन के मामले में ज्यादा मौका, विशेष अवसर दिया जाए।”(“सप्तक्रांति” से)। अब नारी को अवसर मिला है।

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