दो टूक : 2024 में सपा को यादवों से ही भिड़वाने की तैयारी में भाजपा

राजेश श्रीवास्तव

इन दिनों पूरे देश में सभी राजनीतिक दलों के बीच 2024 की लड़ाई को लेकर दंगल तेज है। ऐसे में यूपी में पिछड़े यानि OBC को लेकर भी सत्तारूढ़ दल भाजपा और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के बीच घमासान मचा है। सवर्णों के खिलाफ स्वामी प्रसाद मौर्या की जहरीली जुबान तो आग बरसा ही रही थी, अखिलेश यादव के जातीय जनगणना ने इसे और हवा दी। संकेत साफ है कि 2024 तक जातीय जहर और ज्यादा घोला जाएगा। प्रदेश की 80 सीटों की सियासत इसी के इर्द-गिदã घूमती दिखाई देगी। जातीय सियासत की इस पटकथा में भाजपा भी पीछे नहीं है। अखिलेश और मायावती को पटखनी देने के लिए पूरी जातीय रणनीति तैयार की गई है। भाजपा यादवों और मुस्लिमों पर निर्भर रहने वाली सपा को यादवों से ही भिड़वाने की तैयारी में है। इसी तरह मायावती को सिर्फ जाटव के नेता तक सीमित करने की कोशिश है।

52% OBC वोट बैंक में 32% गैर यादवों पर सीधा टारगेट किया जा रहा है, जबकि बचे हुए 20 प्रतिशत यादवों को भी अपने पाले में लाने की कोशिश होगी। दरअसल, यूपी में जातीय समीकरणों का जो अनुमानित आंकड़ा बताया जाता है, उसमें पहले नंबर पर पिछड़ा वर्ग का है। दूसरे नंबर पर दलित और तीसरे पर सवर्ण व चौथे पर मुस्लिम आते हैं। यहां OBC वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा 52%, दलित वोटरों की संख्या 22 से 23%, सवर्ण 20 से 22% और 5% अदर्स में आते हैं। सभी दलों का सबसे ज्यादा फोकस 52 प्रतिशत OBC पर रहता है। हर दल उन्हें अपने पाले में करने का प्रयास करता है।

दरअसल, यूपी में सरकारी तौर पर जातीय आधार पर कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है, लेकिन अनुमान के मुताबिक, यूपी में 52 प्रतिशत OBC वोट बैंक है। इस OBC समाज में 79 जातियां हैं, जिनमें सबसे ज्यादा यादव और दूसरे नंबर कुर्मी समुदाय है। आंकड़ों के मुताबिक, OBC जातियों में यादवों की आबादी कुल 20% है, जबकि राज्य की आबादी में यादवों की हिस्सेदारी 11 फीसदी है, जो सपा का परंपरागत वोटर माना जाता है। गैर-यादव में OBC जातियों में सबसे ज्यादा कुर्मी-पटेल 10%, कुशवाहा-मौर्या-शाक्य-सैनी 6%, लोध 4%, गडरिया-पाल 3%, कुम्हार/प्रजापति-चौहान 3 %, राजभर दो और गुर्जर 2% हैं। भारतीय जनता पार्टी अखिलेश यादव को सिर्फ यादव और मुस्लिम वोट बैंक तक समेट देना चाहती है। कुर्मी समुदाय, मल्लाह-निषाद, लोध समुदाय, राजभर, मौर्या समेत 78 OBC जातियों को अपनी ओर लाना चाहती है। अपना दल की अनुप्रिया पटेल, ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद का पार्टी के साथ गठबंधन इसी स्ट्रेटजी का हिस्सा है। इस प्रयोग से भाजपा 20% सवर्ण, 32% गैर यादव OBC 11% गैर जाटव दलितों को अपनी ओर खींचने की कोशिश करेगी। इसी के आधार पर लोकसभा चुनाव में 80 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है।

उत्तर प्रदेश में यादव समाज 80 के दशक से ही बहुत जागरूक और सत्ता में हिस्सेदारी में रहा है। यही कारण है कि अखिलेश के सत्ता से बाहर होने के बाद से यादव समाज फिर सत्ता में हिस्सेदारी तलाशने लगा। भाजपा ने इसे अवसर बनाया। 2017 से ही यादवों में पकड़ मजबूत करने की कोशिश शुरू कर दी। वर्तमान में खेल मंत्री गिरीश चंद्र यादव हों या राज्य सभा सांसद हरनाथ सिह यादव, ये यादव समाज में भाजपा के बड़े चेहरे बन गए। आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में भाजपा दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को मैदान में उतारा। उन्होंने अखिलेश परिवार के सबसे खास धर्मेंद्र यादव को चुनाव में हराया। अब भाजपा इन्हीं बड़े चेहरों के साथ 24 के चुनाव में उतरेगी ओर यादव वोट बैंक में और सेंध लगाने की कोशिश होगी। उत्तर प्रदेश में इटावा, मैनपुरी, एटा, फर्रुखाबाद, कन्नौज, आजमगढ़, फैजाबाद, बलिया, संतकबीरनगर और कुशीनगर समेत कई जिलों में यादव समाज का दबदबा रहा है। यह समाज OBC के कुल वोट बैंक में अपनी 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। इनकी सियासत की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है।

कि ब्राम्हण-ठाकुर की राजनीति से अलग और मायावती की दलितों की राजनीति को छोड़कर सिर्फ OBC और मुसलिमों के बल पर यादव समाज से यूपी में पांच बार मुख्यमंत्री रहे हैं। हालांकि 2014 में मोदी की आंधी के बाद से यादवों का दबदबा लगातार घटता चला गया है। इस दौरान यादवों की पूरी सियासत मुलायम सिह के परिवार के इर्द-गिदã ही घूम रही थी। 2017 का विधानसभा चुनाव इनके लिए सबसे खराब दिन लेकर आया। 2012 में 224 सीटें जीतने वाली सपा सिर्फ 47 सीटों पर सिमट गई। जबकि 47 सीटें जीतने वाली भाजपा 324 सीटों पर पहुंच गई। CSDS के मुताबिक, यूपी की तमाम OBC जातियों में यादव वोटर्स की हिस्सेदारी करीब 20% है। यूपी की कुल 11 प्रतिशत यादव आबादी के 90 प्रतिशत वोट समाजवादी पार्टी को पड़ते हैं। आज भी अखिलेश को एमवाई वोटबैंक के गणित पर काफी भरोसा है। लेकिन अब इस फॉर्मूले के साथ ही वह PDA  के फॉर्मूले पर भी चल रहे हैं। जिसमें वह पिछले, दलित और अल्पसंख्यक को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं।

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