के. विक्रम राव
अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस (आज : 2 अक्टूबर 2023) की भांति, हर 30 जनवरी (बापू का निर्वाण) को विश्व आतंक-विरोधी दिन मनाया जाए। संसार को यही गांधीवादी संदेश होगा। त्रस्त भूमाता को जब कश्यपपुत्र हिरण्याक्ष ने रसारतल में धकेल दिया था, तो विष्णु ने वराह बनकर उसका वध किया था। धरती को बचाया था। अतः ऐसा ही संदेश मानवता को भी अब भेजा जाए। इसी दैत्य की तरह, नाथूराम विनायक गोडसे भी केवल निकृष्टतम नरपिशाच था। एक निहत्थे, 80-वर्षीय, जर्जर कायावाले, लुकाटी लिए बापू पर गोली चला दी। भाजपाई लोकसभाई (भोपाल-सिरोही) प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने जब गोडसे का महिमा मंडन किया था, तो नरेंद्र मोदी सदन में बड़े शर्मसार हुए थे। व्यथित हुए। वेदना से ग्रसित। उस भ्रमित महिला की मूढ़ता के कारण। हर आस्थावान सनातनी भी अत्यंत शर्मसार होगा, क्योंकि इसी प्रज्ञा का प्रयागराज कुंभ के अवसर पर “भारत भक्ति अखाड़े” का आचार्य महामंडलेश्वर घोषित किया गया था। अब वे महामंडलेश्वर स्वामी पूर्णचेतनानंद गिरी के नाम से जानी जाती हैं। हालांकि प्रज्ञा ठाकुर ने लोकसभा में गोडसे वाले अपने बयान (27 नवंबर 2019) पर माफी मांग ली थी। उन्होंने कहा : “किसी को ठेस पहुंची हो तो माफी मांगती हूं।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस बयान के लिए वो उन्हें कभी दिल से माफ नहीं कर पाएंगे। प्रज्ञा ठाकुर के हमविचारवालों को गोडसे द्वारा जज आत्मा चरण के समक्ष लाल किले में सुनवाई पर दिए गए बयान को पढ़ना चाहिए।
नाथूराम गोडसे ने जज आत्मचरण की अदालत में तीन बातें खारिज की थी। पहला, उसने नकारा था कि वह हिंदू महासभा की नजरिये का अनुयाई है। दूसरा और तीसरा तथ्य अस्वीकार किया था कि विनायक दामोदर सावरकर तथा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को वह अपना नेता मानता है। अपने को उनका विरोधी बताता रहा। नाथूराम के इस विरोध का आधार यही था कि गांधीजी की हत्या के बाद से हिंदू महासभा ने अपनी संप्रदायिक नीति बदल दी थी। डॉ. मुखर्जी ने तो भारतीय जनसंघ की स्थापना कर ली थी। सावरकर रुग्णावस्था में थे। फिर उनका निधन हो गया। गोडसे का आरोप था कि सावरकर तथा मुखर्जी कांग्रेस के समर्थक हो गए थे। यह बयान जिला न्यायालय में दर्ज है।
इतिहास की एक पहेली अनबूझी रही। न जाने किन कारणों से उस संध्या (30 जनवरी 1948) अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नहीं बताया कि हत्यारे का नाम क्या था| प्रधानमंत्री के तुरंत बाद आकाशवाणी भवन जाकर सूचना मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने देशवासियों को बताया कि “महात्मा गांधी का हत्यारा एक हिन्दू था|” सरदार पटेल ने मुसलमानों को बचा लिया| वर्ना वही होता जो 30 अक्तूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिक्खों के साथ हुआ था| ऑल इंडिया रेडियो ने हत्यारे का नाम “बेअंत सिंह” बता दिया था।
कुछ माह बीते हत्यारे गोड्से की मूर्ति लगाने की मुहिम चली थी। विकृतमनवाले केवल पागलखाने में नही हैं। छुट्टा भी घूमते हैं। गोड्सेवाले उन्हीं में हैं। फिर सोचता हूँ कि बापू के पक्ष में इन सब तर्कों की जरूरत क्यों है ? वे भौतिकता से इतने परे, आध्यात्म के उस चरम पर पहुंच गये थे जहां शरीर का मोह मायने नहीं रखता है। इसका प्रमाण मेरे मित्रों ने दिया। उन लोगों ने प्लांशेट पर गांधीजी की आत्मा से संपर्क करने का प्रयास किया था। बापू नही आये। कोई दूसरी आत्मा आई। गोड्से था। उसने कहा कि गांधी जी मरणशील मानव की पहुंच से बहुत दूर हैं। वे दिव्य आत्मा हैं जो अब नहीं आयेंगे। बात सच थी। भले ही विश्वास कतिपय आधुनिक जन न करें। पूछने पर गोडसे ने प्लांचेट पर लिखा कि वह पुणे की एक मलिन बस्ती में आवारा कुत्ते के रूप में जन्मता रहा है। खुजली से पीड़ित रहा है। कारण उसने बताया की हत्या एक जघन्य और आमानुषिक अपराध है। फल भुगत रहा था।
अपनी मौत (26 नवंबर 2005) के पूर्व गोपाल गोडसे ने भी एक प्रयास किया था कि उसके हत्यारे भाई नाथूराम की छवि युगपुरुष जैसी बन जाए। चंद हिंदुओं ने उसकी मदद भी की, पर वे नाकाम रहे। गोपाल गोड्से की पत्नी को नाथूराम ने अपनी जीवन बीमा राशि का लाभार्थी नामित किया था। गांधी जी को मारने के दो सप्ताह पूर्व नाथूराम ने अपने जीवन को काफी बड़ी राशि के लिए बीमा कंपनी से सुरक्षित करा लिया था। जाहिर है उसकी मौत के बाद उसके परिवारजन इस बीमा राशि से लाभान्वित होते। पृष्ठ 18 व 19 : “गांधीवध और मैं” लेखक (गोपाल विषयक गोडसे प्रकाशक: वितस्ता प्रकाशन पुणे: 1982)। कथित ऐतिहासिक मिशन को लेकर चलने वाला व्यक्ति बीमा कंपनी से क्या ऐसा मुनाफा कमाना चाहेगा ?
मगर आज भी एक वेदना सालती रहती है। उस निहत्थे संत की हत्या करने वाला नाथूराम गोडसे जरूर कसाई रहा होगा| निर्मम, निर्दयी, जघन्य हत्यारा| उसके पाप से वज्र भी पिघला होगा| कवि प्रदीप के शब्दों में “महाकाल भी बापू की मृत्यु पर रोया होगा।” गोडसे के साथ फांसी पर चढ़ा नारायण आप्टे तो एक कदम आगे था| उसने 29 जनवरी 1948 की रात दिल्ली के वेश्यालय में बितायी थी| ऐसा आदर्श था ! गोडसे ने लन्दन-स्थित प्रिवी काउंसिल में सजा माफ़ी की अपील भी की थी, ख़ारिज हो गई थी| अलग-अलग तरीके से गोडसे की फांसी की सजा माफ कराने की कोशिशें हुईं। नाथूराम के पिता ने गवर्नर जनरल सी. गोपालाचारी के सामने दया याचिका लगाई, जो खारिज हो गई। कोएनार्ड अल्सर्ट ने अपनी किताब “व्हाई आई किल्ड द महात्मा” में लिखा है कि तत्कालीन कानून मंत्री डॉ. भीमराव आंबेडकर तो नाथूराम के वकील से भी मिले थे और कहा था कि वे फांसी की जगह आजीवन कारावास करा सकते हैं।